१२४ - रचना की दया किस रारज से हुई ?
इस देश के वासी भी , जिनकी तादाद बाकी दों के वासियों की निसबत बेरूँ अजकयास यानी अंधाधुंद ज्यादा है , वाये राफलत से बेदार हो कर अविनाशी और एकरस कायम रहने वाले परम सुखदायक जीवन को प्राप्त हो गये कि जिससे स्त्रफीफ से खफीफ किस्म के दुःख की अवस्था भी अब उनको छू नहीं सकती है । मालूम हो कि इस दया से निज भंडार से निचले देश का कसीर हिस्सा ऐसे फैज से बहराबर या कृतार्थ हुआ कि जिसका बयान नहीं हो सकता । यह लिखने की जरूरत नहीं है कि इस देश के अंदर रचना करने में जो भारी दया मुतसब्बर थी वह मनुष्य के वहम और कयास से बाहर है और सिर्फ सच्चा कुल मालिक ही , जो परम आनंदस्वरूप है , ऐसी दया चित्त में ला सकता था । रचना के बाको दर्जे रूपवान करने में जो दया मुतसम्बर थी वह भी किसी तरह से कम जबरदस्त न थी लेकिन बवजह अपनी आदि घेतनता की कमी के , ये दर्जे उस दया का पूरा फायदा नहीं उठा सकते थे । मगर दया ने बावजूद इस कसर की मौजूदगी के अपना काम हत्तुलइमकान ( पथासंभव ) पूरा कर ही डाला । चेतनता की कमी के नुक्रस बहुत ही हलके और कम कर दिये गये और कम चेतनता वाले हिस्सों को रचना के इंतजाम में ऐसी जगह पर ठहराया गया कि जिससे बिलयास्त्रिर उनके नुक्स हमेशा जिंदगी के आनंद में तरक्की का बायस बन जाते हैं । यह कमी , जिसकी निसयत ऊपर इशारा किया गया , रचना के दूसरे भाग यानी ब्रह्मांड देश में नाममात्र के लिये है और जब यह अपना रंग लाने को होती है तो महाप्रलय हो जाता है जिससे इसका असर व्यापने नहीं पाता । इस लिये रचना के इस भाग यानी दूसरे दर्जे के रचने में भी जिसके अंदर निर्मल चेतन देश के रचे जाने के बाद जो जुज्ची रचना बची थी उसका भारी हिस्सा शामिल है- पहले दर्ज यानी निर्मल चेतन देश की तरह अविनाशी सुख और आनंद की परिशश मुतसब्बर थी । तीसरे दर्जे यानी पिंड देश की चेतनता सबसे अदना दर्जे की है और इस वजह से इस देश की कायनात के संग मलिन वासनाओं , दुःखों और क्लेशों का बहुत कुछ झगड़ा लग रहा है । लेकिन पहले तीन युगों में इनका फसाद वरपा नहीं होने पाता इस लिये उन युगों के दौरान में जिंदगी और जिंदगी के मुख घमुकाविले आदि अचेत दशा के भारी परिशश करार पाते हैं । इस देश की उम्र के करीबन आठवें हिस्से में यहाँ के वासियों के ऊपर मायिक और मलिन वासनाओं का ग़ल्या रहता है और उनको अनेक प्रकार की तकलीफें , रोग शोक और भय सहने पड़ते हैं और इस जमाने के अंदर उनको नरक - निवास करके अपने पुरे कर्मों का दंड भी सहना पड़ता है । लेकिन इन दुखदायी अवस्थाओं ने यहाँ पर आवागमन का एक ऐसा सिलसिला कायम कर दिया है कि जिसके प्रताप से मायिक पर्दो का नाश हो जाता है और थोड़े ही अरसे तक इन अवस्थाओं में रहने पर जीव उस भारी दया के अधिकारी बन जाते हैं जो कामिल पुरुषों की आमद के सिलसिले में प्रकट होती है । अगर वक्त महाप्रलप के बरपा होने का आ गया है तब तो यह दया खुद परम दयाल सच्चे कुल मालिक के हुजूर से आती है वरना ब्रह्मांड से नाजिल होती है ।
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