HISTORY OF DAYALBAGH
Early History and Progress
of Dayalbagh
Param Purush Puran
Dhani Soamiji Maharaj after He had shifted His residence to what is now
Soamibagh used to go out for a stroll every morning and sat for ablutions on
the parapet of a well some distance from Soamibagh while Huzur Maharaj gave
water from the well for His use. Once Soamiji Maharaj was pleased to observe
that "a big town of the Satsang community would arise near that
well." This well is now popularly called Mubarak Kuan Maharaj Sahab had
also mentioned that after retirement He would stay in Dayalbagh He was 47 years
old when he departed from this world in 1907 and He would have retired in 1915,
Sarkar Sahab had also remarked that "We shall stay permanently in Agra
now.”
2. After the departure of Huzur Sarkar Sahab, Huzur Sahabji Maharaj
held a meeting of the Executive Committee of the Sabha on 7" June 1914 at
Solan, in which it was decided that a permanent headquarter of Satsang be
established at Agra. Huzur Sahabji Maharaj came to Agra on 4" October 1914
with a small party of Satsangis and Rs 5.000 in cash A plot of land which was
full of mounds and where the REI building stands was purchased for Rs 1975 and
subsequently 9 bighas of land were purchased on 9h June 1915. After some
levelling and cleaning, Huzur Sahabji Maharaj laid the foundation of Dayalbagh
on Basant Day - 20 January 1915 by planting a mulberry tree near the Mubarak
Kuan and the name 'Dayalbagh was given to it.
3. Construction of a school building which later came up to be known
as Radhasoami Educational Institute was laid the next day. There was no plan,
no design and Huzur Sahabji Maharaj drew a long line with his walking stick on
the ground and directed that foundation of the specified length and breadth be
dug there When the construction work started, Huzur Mehtaji Maharaj was also
present and Sahabji Maharaj asked Mehtaji Maharaj to see that the work was
going on properly.
4. At the 9h session of
Radhasoami Satsang Sabha on 30 December 1915 a proposal for starting a small
manufacturing workshop was taken up in order to generate some income from
industry and to provide employment to Satsangis who came to stay in Dayalbagh.
The workshop with three mistries started functioning on 1" April 1916. A
Toom was constructed south-cast of the school building and a beginning was made
with manufacture of leather buttons Money for the venture was provided - 50% by
grant from Sabha and the rest through shares purchased by 12 Satsangis. Soon
after, it was also decided to manufacture new products like knives, scissors,
pens, etc.
5. During all this period, Huzur Sahabji Maharaj was staying in a
Kothi near Hari Parbat and used to come to Dayalbagh in a bullock tonga.
Construction of 4 quarters south of the REL. building was taken up and when it
was ready, Sahabji Maharaj moved to the western-most quarters. Satsang was held
in the space in front of it morning and evening.
6. Since construction
was progressing smoothly, Huzur Sahabji Maharaj desired to visit some places in
eastern and southern India in October-November 1916. While on tour, a circular
letter dt. 5" November 1916 was sent from Visakhapatnam to different
Branches all over the country announcing that Headquarters of Radhasoami
Satsang would start functioning from 15" November 1916 at Dayalbagh and
intimating the address for communications. A copy of this circular is at
Appendix I to this note.
दयालबाग का प्रारम्भिक इतिहास और प्रगति
जब परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज उस स्थान पर रहने लगे जो अब स्वामीबाग का नाम से जाना जाता है तो वह रोजाना सुबह टहलने जाया करते थे । और स्वामीयाग से कुछ दूर स्थित एक कुर की जगत पर बैठ कर स्नान करते और हुजूर महाराज उनके इस्तेमाल के लिए कर से पानी निकाल कर देते थे । एक बार स्वामीजी महाराज ने दया करके फरमाया कि इस कुएँ के पास सतसंग संगत ( community ) की एक बड़ी नगरी बसेगी अब यह कुओ मुबारक कुओं के नाम से जाना जाता है । महाराज साहब ने भी जिक्र किया था कि अवकाश ग्रहण करने के बाद वे आगरा में रहेंगे । 1907 में जब उन्होंने इस संसार से प्रस्थान किया तब उनकी आयु 47 वर्ष थी । वे 1915 में अवकाश ग्रहण करते । सरकार साहब ने भी फरमाया था कि अब हम आगरा में ही स्थाई रूप से रहेंगे ।
2. हुजूर सरकार साहब के प्रस्थान के बाद हुजूर साहबजी महाराज ने सोलन में 7 जून 1914 को सभा की एग्जीक्यूटिव कमेटी की एक मीटिंग आयोजित की जिसमें यह तय हुआ कि आगरा में सतसंग का स्थाई हेडक्वार्टर स्थापित किया जाए । हुजूर साहबजी महाराज 4 अक्टूबर 1914 को सतसंगियों की एक छोटी सी पार्टी और 5000 रुपये नकद धनराशि ले कर आगरा आए । एक जमीन जो मिट्टी के टीलों से भरी पड़ी थी और जहाँ अब आर.ई .आई . की इमारत स्थित है , 1975 रुपये में खरीदी और उसके बाद 9 जून 1915 को 9 बीघा जमीन खरीदी गई । जमीन को कुछ समतल और साफ़ करने के बाद 20 जनवरी 1915 को बसंत के दिन हुजूर साहबजी महाराज ने ' मुबारक कुएँ " के निकट शहतूत का पेड़ लगा कर दयालबाग की नींव डाली और उसका नाम दयालबाग ' रखा
3. दूसरे ही दिन स्कूल जो बाद में राधास्वामी एजूकेशनल इंस्टीट्यूट के नाम से जाना गया , की इमारत के निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ । इमारत की न तो कोई योजमा थी , न ही कोई नक्शा था और साहबजी महाराज ने अपनी छड़ी से एक लम्बी रेखा खींच दी और वहाँ निर्दिष्ट लम्बाई व चौड़ाई की नींव खोदने का निर्देश दिया । जब निर्माण कार्य शुरु हुआ , हुजूर मेहताजी महाराज भी वहाँ विद्यमान थे तब साहबजी महाराज ने मेहताजी महाराज से फ़रमाया कि वे देखें कि काम सही तौर पर हो ।
4. 30 सितम्बर 1915 को राधास्वामी सतसंग सभा के नवें सत्र में इंडस्ट्री ( उद्योग ) द्वारा आमदनी अर्जित करने और सतसंगियों के लिए , जो दयालबाग में रहने के लिए आए थे , रोजगार मुहय्या करने हेतु एक उत्पाद कार्यशाला खोलने का प्रस्ताव रखा गया । 1 अप्रैल 1916 को कारखाने में तीन मिस्त्रियों के साथ कार्य प्रारम्भ हो गया । स्कूल की इमारत के दक्षिण - पूर्व में एक कमरा बनवाया गया और चमड़े के बटनों का उत्पादन शुरू किया गया । इस साहसिक उद्यम के लिए 50 % रक्रम सभा द्वारा तथा शेष धनराशि 12 सतसंगियों द्वारा शेयर खरीद कर उपलब्ध कराई गई । शीघ्र ही कुछ नई चीजों जैसे चाकू , कैंची , कलम आदि के उत्पादन का निर्णय भी लिया गया ।
5. इस अवधि के दौरान हुजूर साहबजी महाराज हरीपर्वत के पास एक कोठी में रहते थे और बुलॉक ताँगा ( बैलगाडी ) से दयालबाग आया करते थे । आर 0 ई 0 आई 0 की इमारत के दक्षिण में 4 क्वार्टरों का निर्माण प्रारम्भ किया और जब वे तैयार हो गए तब साहबजी महाराज पश्चमतम मकान में रहने लगे । सुबह व शाम का सतसंग इन मकानों के सामने की जगह में होता था ।
6. जब कि निर्माण कार्य संतोषजनक ढंग से चल रहा था , हुजूर साहबजी महाराज ने अक्टूबर / नवम्बर 1916 में पूर्वी तथा दक्षिणी भारत के कुछ स्थानों का दौरा करना उचित समझा । इस दौरे के दौरान विशाखापट्नम से एक गश्ती चिट्ठी ( circular letter )
दिनांक 5 नवम्बर 1916 को देश भर की विभिन्न ब्राँचों में भेजी गई जिसमें यह घोषणा की गई कि राधास्वामी सतसंग का हेडक्वार्टर 15 नवम्बर 1916 से दयालबाग में कार्य करना शुरु कर देगा तथा उसमें पता भी बताया गया जहाँ पत्र भेजा जा सकता था । परिपत्र की कॉपी परिशिष्ट 1 में है ।
{ RADHASOAMI }
Radhasoami 🙏🙏
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