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और
रचना ( आलमे कबीर ) का परस्पर मेल ।
मनुष्य - शरीर के अंदर ऐसे छिद्र या सूराख बने हैं जिनकी मारफत शरीर का रचना से तअल्लुक यानी मेल होता है । इस क्रिया में ज्यादातर खेल छिद्रों के अंदर मौजूद चेतन यानी ज्ञानेंद्रिय की धार का रहता है । यह क्रिया किस प्रकार से होती है और मेल होने पर मनुष्य को संसार का ज्ञान किस रीति से होता है अब इसकी तशरीह करते हैं । पहले त्वचा - इंद्रिय को लेते हैं । इस इंद्रिय का औजार यानी द्वारा मनुष्य के स्थूल शरीर का मसाला है ( शरीर के मसाले के अंदर हड्डी , चमड़ा , खाल , रग , नस वगैरह सब शामिल हैं ) । जब इस पर कोई असर पहुँचता है तो हमको खुशगवार या नाखुशगवार स्पर्श का शान होता है । बाहर से असर आने पर इसके मसामों यानी छिद्रों के अंदर जो ज्ञानेंद्रिय की धारे व्यापक हैं वे इस असर को ज्ञाता तक पहुँचा देती हैं । अगर ये छिद्र बंद कर दिये जावें या इनसे ज्ञानेंद्रिय की धारें हटा ली जायें तो फिर मनुष्य को स्पर्श का कुछ ज्ञान नहीं हो सकता । जो हाल त्वचा - इंद्रिय का है वही हाल दूसरी इंद्रियों का भी है यानी हर एक इंद्रिय का अपना अपना खास औजार या द्वारा है और उसके विषय से मिलता जुलता मसाला उस औजार के अंदर मौजूद है और ज्ञानेंद्रिय की धारें उस अंदरूनी मसाले से मेल किये हुए हैं । अब दर्शन - इंद्रिय यानी आँख को लेते हैं । भाँख के अंदर की रग ( Optic Nerve ) में जो रोशनी मौजूद है वही दर्शन - इंद्रिय का खास मसाला है जिसकी मारफत बाहर के प्रकाश से मेल हो कर उसका ज्ञान हासिल होता है ।
इस बयान की सराहत ( स्पष्टता ) के लिए हम दर्शन - इंद्रिय पर बाहरी प्रकाश का जो असर पड़ता है उसकी जाँच करते हैं । बाहरी प्रकाश अब्बल अक्षिमुकर यानो आँख के लेन्ज ( Lens ) से गुजर कर आँख के पर्दे ( Retina ) पर बाहर की चीजों का प्रतिबिम्ब यानी अक्स डालता है । बाद में इसका ज्ञान आँख की रंग ( Optic Nerve ) और उसके अंदर मौजूद ज्ञानेंद्रिय की धारों की मारफत दृष्टा तक पहुंचता है । यह रंग चमकीली है और इसके अंदर रोशनी मौजूद है । इस रोशनी ही की मारर्फत ज्ञानेंद्रिय का बाहर के प्रकाश के साथ मेल होता है जिसके बाद ज्ञानेंद्रिय की धारें दर्शन क्रिया को पूरा कर देती हैं । दर्शन - इंद्रिय की निसबत जो कुछ बयान हुआ वह दूसरी इंद्रियों की क्रियाओं को निसयत भी मुनासिब रद्द व बदल के साथ देखने में आता है ( देखो दफा ९ ७ भाग तीसरा ) । इससे साबित होता है कि आलमे कबीर का ज्ञान हासिल होने के लिये यह लाजिम होना चाहिये कि सुरत की धार का पालमे कबीर से मिलते जुलते मसाले और शक्तियों के साथ , जो मनुष्य - शरीर के छिद्रों के अंदर मौजूद हैं , मेल हो । चुनींचे मनुष्य - शरीर के चक्रों का उनसे मुताविकत रखने वाले आलमे कबीर के मुख्तलिफ स्थानों के साथ मेल इसी प्रकार होता है । लेकिन यह मेल कायम करने के लिये खास तरह के साधन की जरूरत है क्योंकि साधन ही से चक्रों के अंतरी खवास जागते हैं और वे चक्र इस काबिल होते हैं कि उनका बाहरी स्थानों से मेल हो सके । मालमे कबीर में रचना के सब से नीचे स्थान के धनी का नाम ' गणेश ' है जो शिव यानी संहार - शक्ति का पुत्र है ।
अगर इस स्थान से मुताबिकत रखने वाले मनुप्प - शरीर के सब से नीचे चक्र के अंदरूनी छिद्र और उसके खवास को जगाया जाये तो गणेश और उसके स्थान से मेल कायम हो जायेगा और अम्पासी के अंदर गणेश के खबास और शक्तियाँ किसी कदर आ जायेंगी । इसी तरीके पर शरीर के दूसरे पाँच चक्रों का भी मालमे कबीर के पाँच स्थानों के साथ मेल कायम किया जा सकता है । यह सृष्टि जो हमको आँखों से दिखलाई देती है और जिसमें सूर्य , नक्षत्र , तारागण वगैरह शामिल हैं , छः उपभागों में मुनकसिम है और ये उपभाग मनुष्य - शरीर के छः चक्रों से मुताविकत रखते हैं । इस सृष्टि के परे ब्रह्मांड देश वाकै है मगर स्थूल इंद्रियों या उनके संबंधी आला औजारों के ज़रिये से उसका कोई इल्म हासिल नहीं किया जा सकता । ब्रह्मांडी मन के देश के स्थानों और निर्मल चेतन देश के मुक़ामों की तशरीह इस पुस्तक के तीसरे भाग में की जावेगी इस लिए इनकी तफसील में न जाते हुए हम फिलहाल यह बयान करेंगे कि ब्रह्मांड और निर्मल चेतन देश के स्थानों के साथ किस तरीके से मेल कायम हो सकता है ।