Tuesday, January 12, 2021

१२२ - कलियुग का दौर , मुसीबतों की भरमार और जगत - उद्धार की दया ।

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१२२ - कलियुग का दौर , मुसीबतों की भरमार और जगत - उद्धार की दया


     
       मालूम
हो कि दफा ११० में संतों की संसार में तशरीफ़ आवरी के समय की निसबत जो कायदा बयान किया गया है उसकी रू से कुछ अरसा हुआ कि चौथे युग की शुरूआत हो गई बार बार भूचालों का आना , कसरत से जान माल के लिये भारी नुकसानदेह हादिसों यानी दुर्घटनाओं का होना , प्लेग सी जबरदस्त और खौफनाक वबा का फैलना , कहतसालियों के जल्द जल्द नमूदार होने से खुशहाली का खातमा हो कर लाखों जीवों का फाके बेसामानी की दिलसोज यानी हृदय - विदारक भयानक मुसीबतों में गिरफ़्तार होना और सूर्य में पहले की निसवत ज्यादा मरतबा हलचल का मचना , ये सब बातें निहायत वाजह तौर पर जाहिर करती हैं कि हमारा पिंड देश अब अपनी चौधी यानी वृद्धावस्था को प्राप्त हो गया है जैसे पृथ्वी के मुख़्तलिफ हिस्सों की आव हवा का उनके वासी मनुष्यों और दूसरे जानदारों के शरीरों की बनावट , शक्ल सूरत और आदतों पर मारी असर पड़ता है ऐसे ही कलियुग की तासीर का भी पिंड देश की तमाम जानदार कायनात पर भारी असर पड़ता है चुनाँचे पिंड देश की मुख्य चेतन धार का ब्रह्मांड को जानिय खिंचाव हो जाने से उसके शरीर यानी स्थूल हिस्से में जो बीमारी और सुकड़न को कैफियत व्याप रही है उसी की वजह से ऊपर बयान की हुई तमाम मुसीबतें और बलाएँ इस जमाने में जीवों पर नाजिल हो रही हैं लेकिन परमार्थी नुक्तए निगाह से कलियुग का जमाना आला दर्जे के अंतरी साधन की कमाई के लिये निहायत ही मौज है क्योंकि इस वक़्त पिंड और ब्रह्मांड दोनों निर्मल चेतन देश के ज्यादा से ज्यादा नज़दीक होते हैं वे मुश्किलें और तकलीफें , जिनका ऊपर जिक्र हुआ , आइंदा कुछ वक्त तक अब से भी ज्यादा तेजी के साथ नमूदार हो सकती हैं लेकिन उनका अंदरूनी असर ( जो जीवों को भुगतना पड़ता ) बबजह संतों की आमद के पहले ही हलका हो गया है अलावा इसके ये खराब हालतें एक तरह कल्याणकारक यानी मुफीद भी हैं क्योंकि दुष्कालों , ययाओं , भूचालों और हादिसों की वजह से जीवों के मन पर जबरदस्त अंकुश या रोक लगती है और जो जीव इन मुसीबतों के पंजे में जाते हैं ये संसार से कोई सहायता पाकर या सहायता पाने पर उसके बेकार साबित होने से कुदरती तौर पर अपने करतार की जानिब दृष्टि फेरते हैं और दूसरे लोग जो इन मुसीबतों की गिरफ्त से बचे रहते हैं वे औरों का हाल देख सुन कर संसार को धार में बेतकल्लुफ बहने के बजाय थोड़ी देर के लिये रुक जाते हैं और दुनिया के सुखों और भोग विलासों की नाशमानता और जिंदगी की नापायदारी या प्रसारता जोर के साथ उनकी आँखों के सामने आती है

           इस किस्म के खयालात खुद अपने मन में जगने से , हरचंद वे निहायत कड़वे तजरुयों के बाद पैदा होते हैं , जीव का अंतर का अंतर - जहाँ आगे ही पिंड की चेतन धार के सिमटाय की वजह से ऊपर की तरफ कशिश हो रही है किसी कदर हिल जाता है आजकल यह जो दुनिया की हर कौम के हृदय में परमार्थ के लिये प्यास प्रकट हो रही है वह सप पेतन धार का ऊपर की जानिष खिंचाव होने ही का नतीजा है और यह जो अजीप परीष रूहानी शक्तियों अवस्थामों का इजहार देखने में भा रहा है वह उसी की वजह से है हमारे मंतव्य ( दावा ) के अनुसार थोड़े ही अरसे में यह त्रिलोकी निर्मल चेतन देश के ठीक सम्मुख पा जावेगी तो निर्मल चेतन देश की चेतन धार संसार के अंदर सालिप हो जावेगी और उस वात ये तमाम मुसीपतें , जो इस पस्त जीव झेल रहे हैं , गायब हो जायेंगी और सतयुग से भी पढ़ कर गुख चैन की दशा वर्तमान होगी रूहानी शक्तियाँ , जो इस वक्त इस कदर पोशीदा हैं , उस वक्त कसरत से प्रकट होंगी और अंतरी अम्पास पर ज्यादा तकलीफ तरतूद के , कामयाबी के साथ पनने लगेगा और अभ्यासियों को अंतरी रूहानी तजरुचे इस कसरत से और पार बार होंगे कि उनको दौराने जिंदगी में ही अपने सच्चे उद्धार के होने और निर्मल चेतन धामों में वास मिलने को निसयत पक्का मुबूत मिल जावेगा  

           पिंड और ब्रह्मांड देशों में जीवों के चिताने और चेतनता के जगाने का इंतजाम इस तौर से मुकम्मल हो जाने पर महाप्रलप का यात या जायेगा लेकिन महाप्रलय होने से पेश्तर हो मारी तादाद में सुरतें निर्मल चेतन देश में पहुँच कर अमर हो जायेंगी और पाको की मुरतों को और प्रांड पिंड की रचना को महाप्रलय होने पर फायदा पहुँचेगा महाप्रलय के बाद रचना का नया दौर शुरू होगा और उसमें ब्रह्मांड और पिंड की रचना के रूहानी नफे और फायदे की पहले की तरह रक्षा होगी

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