Monday, January 11, 2021

१२० - जीवों की तरह रचना की भी चार अवस्थाएँ हैं ।

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१२० - जीवों की तरह रचना की भी चार अवस्थाएँ हैं

         

      चूंकि तमाम रचना चेतन धारों की मारफत प्रकट हुई है और वे ही रचना में हर चीज़ को अनेक शक्लों और दजों में जान दे रही हैं इस लिये यह उम्मीद करना गलत होगा कि मनुष्य - शरीर या मालमेसगीर की सी चार अवस्थाएँ मालमेकबीर के भी सब दजों के अंदर मौजूद हैं लेकिन यह भी इशारे में बतला दिया गया है कि मनुष्य शरीर में ये चार अवस्थाएँ चेतन धारों के चढ़ाव और उतार की वजह से होती हैं इस लिये आलमेकबीर में इनका इजहार सिर्फ उस हिस्से के अंदर होना चाहिए कि जिसमें इस तरह के उतार चढ़ाव की कैफियत मौजूद हो चूंकि निर्मल चेतन देश के स्थानों में रचना अविनाशी और एक रस है इस लिये वहाँ पर इन अवस्थाओं का दखल नहीं हो सकता निर्मल चेतन देश के बाद ब्रह्मांड और पिंड देश हैं चूंकि ब्रह्मांड में महाप्रलय के मौके ही पर रद्द बदल होता है और महाप्रलय कयास से बाहर जमाने के बाद होता है इस लिये ब्रह्मांड में भी इनका ज्यादा दखल नहीं हो सकता

१२१ - चार युगों का बयान

       तीसरे दर्जे यानी पिंड देश में , जहाँ कि प्रलय बार बार होता है , ये चार अवस्थाएँ , जिनका ऊपर जिक्र हुआ , निहायत प्रकट तौर पर देखने में आती हैं और इन्हीं को युग कहते हैं युगों के नाम ये हैं : सतयुग , त्रेता , द्वापर और कलियुग इन युगों के दौरान में पिंड देश के अंदर मनुष्य की चार अवस्थाओं के मानिंद मुख़्तलिफ हालतों का दौरा रहता है सतयुग के जमाने में रचनात्मक धार चेतनता से परिपूर्ण थी क्योंकि वह पिंड देश में ताजा ही उतरी थी इस लिये हर तरह की कायनातजानदार बेजान - उसकी चेतनता से तर बतर हो गई और इस वजह से उस जमाने में कुदरत का रुख बेहतरी और शिगुफ़्तगी यानी प्रफुल्लता की जानिब था गर्मी सर्दी का असर जीवों पर ज्यादा नहीं होने पाता था और जीव निहायत सुखी और खुशहाल थे शारीरिक दुःख और रोग , बुरे कर्म और गंदे खयालात , अहंकार और ग़रूर उस जमाने में करीवन् नापैद थे क्या इंसान क्या हैवान , जिस्म के पूरे तंदुरुस्त , जिंदगी का पूरा लुत्फ लेते हुए निहायत चैन के साथ जिंदगी बसर करते थे उस जमाने में मृत्यु हद दर्जे का बुढ़ापा आने पर होती थी और जैसे पके हुए फल सहज में पेड़ से अलग हो जाते हैं ऐसे ही उस जमाने में जीव निहायत युद्ध हो कर मौत पाने पर पिला किसी किस्म की तकलीफ महसूस किये शरीर से अलहदा हो जाते थे उस वक्त के जीवों की जिंदगी का पैमाना भी भाजकल के मुकाबला बहुत बड़ा था और पवजह चेतनता की विशेषता और हृदय की अधिक पवित्रता के , चे जीव भासानी से कभी कभी सूक्ष्म मंडलों में जा कर पूर्वजों यानी पितरों से मेल मुलाकात कर माते थे इस युग की उम्र दूसरे युगों के मुकाबला बहुत ज्यादा लम्बी थी और पिंड देश के वासियों ने उस वक्त रचना की दया से भारी लुत्फ उठाया ब्रह्मांड देश के वासी ( जहाँ की रौनक पिंड देश के मुकाबला बदर्जहा बढ़ कर है ) जिंदगी का जो लुत्फ उठाते हैं , उसका बयान में लाना नामुमकिन है दूसरे युग यानी त्रेता में भी करीब करीब सतयुग की सी हालत वर्तमान रही और जिंदगी निहायत चैन से गुज़री अलबत्ता नीचे की जानिब रुख वाली धार का मजमुई असर विघ्नरूप में किसी कदर जाहिर हुआ लेकिन उसके दूर करने के लिये श्रीरामचंद्रजी ने अवतार धारण किया द्वापर के ज़माने में जिंदगी के आनंद में विघ्न डालने वाली सूरतें और भी ज्यादा इकट्ठी हो गई इस लिये उनका असर दूर करने की गरज से श्रीकृष्णजी ने , जिनका दर्जा ब्रह्मांड के अवतारों में सब से ऊँचा है , यहाँ पर चरण पधारे हमारे ऊपर के बयान से जाहिर है कि इन तीन युगों में पिंड देश की जिंदगी जीवों के लिये एक भारी नेमत थी और किसी के लिये कोई मौका किसी तरह की शिकायत का नहीं या पिंड देश की उम्र का से ज्यादा हिस्सा इन तीन युगों में खतम हो जाता है

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