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प्रेम बिलास
शब्द २
सावन मास सुहागिन आया ।
रोम रोम अंग अंग हरपाया ॥
प्रेम घटा के बदला छाये ।
रिमझिम रिमझिम बरपालाये ॥1 ॥
भक्ति प्रेम की गहरी नदियाँ ।
बहन लगी सब ताल तलैयाँ ॥
लाल हुईं सब सखियाँ प्यारी ।
भूल गईं तन मन सुधि सारी ॥2 ॥
संत अनुराग यह औसर पाया ।
प्रेम संजोग मन अधिक सुहाया ॥
चरन अधीन सुरत रंगीली ।
गुरु अधार से भई सजीली ॥3 ॥
सरन अधीन गहे गुरुचरना ।
नाम रसायन हुआ मन मगना ॥
प्रेमदुलारी सुरत शिरोमन ।
नाम अधार रहे स्वामी चरनन ॥ 4 ॥
नामप्रताप की महिमा भारी ।
चरनप्रसाद हिये विच धारी ॥
सतगुरुप्यारी सुरत अलबेली ।
हुई अचिन्त अब सन्तसहेली ॥5 ॥
प्रेमभरी हुई नाम की लोई ।
सुरत निरत दई चरन समोई ॥
प्रेमसरूप शब्द की छुनछुन ।
साहबगोद मगन रहे सुन सुन ॥6 ॥
प्रेम की धारा बही अस भारी ।
भींज गई रचना सब सारी ॥
साहवदास मगन होय खेलें ।
नाम अधीन सुरत को मेलें ॥7 ॥
करम भरम घर अगिनी लागी ।
संत विश्वास प्रीति हिये जागी ।।
सतसंगी सब जुड़ मिल आये ।
सत्तपुरुष डिंग आरत लाये ॥8 ॥
अरव खरव का मरम पिछाना ।
राधास्वामी पद को किया पयाना ।
चरनअम्बु में गोता मारा ।
हैरत हैरत वार न पारा ।।9।।
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radhasoami
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