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भाग दूसरा
बयान सुरत के जगाने और उसे अंतर में
चढ़ाने के साधनों का
२६ - सुरत के जगाने की जरूरत ।
आलमे सगीर और पालमे कबीर की बाहम मुताविकत की निमयत जो कुछ तहकीकात हम करना चाहते थे वह हो चुकी है और हालत मौजूदा में मुरत की बैठक कहाँ पर है और उसको किस मंडल में पहुँचने पर परम और अविनाशो आनंद प्राप्त हो सकता है इन बातों का भी पता लगा लिया गया है । अब दरयाफ़्ततलब यह रह जाता है कि वे साधन और उपाय क्या हैं जिनको अमल में लाने से सुरत बीच के यानी रास्ते के मंडलों से पार हो कर उस परम और अविनाशी आनंद के मंडल में दखल पा सकती है । चुनाँचे अब उन साधनों ही का वर्णन करते हैं ।
यह सफर इख्तियार करने के लिये सबसे अव्वल यह लाजिमी मालूम होता है कि सुरत की अंतरी शक्तियाँ जगाई जावें क्योंकि इनके जागने ही पर वह निर्मल चेतन धाम तक पहुँचने के काबिल हो सकेगी । चूंकि मुरत हालत मौजूदा में रचना के मायिक मंडलों में आकर ठहरी हुई है इस लिए जो संस्कार याहर से जीव पर पड़ते हैं और जो फुरनाएँ इनकी वजह से जीव के अंदर उठती हैं उन सब का ताल्लुक मायिक यानी नीचे दर्जे के स्थानों से रहता है इस वजह से सुरत की बहिर्मुखी यानी मन और स्थूल प्रकृति से ताल्लुक रखने वाली पार प्रबल और वेगवती हो गई है और उसकी अंतरी चेतन - शक्ति बिलकुल शिथिल या अचेत पड़ी है । जिस किस्म के संस्कारों के जरिये से मुरत को बहिर्मुखी धारें चेतन हो गई हैं अगर उसी किस्म के अंतरी संस्कार सुरत की बैठक के मुकाम पर डाले जायें तो मुरत की गुप्त यानी अचेत शक्तियाँ जरूर ही जाग उठेगी और ऊँचे मुकामों की जानिय रवाना होने के लिये जो वेग व बल दरकार है वह भी आप से आप पैदा हो जावेगा ।
२७ - श्रवण , दर्शन और बचन मनुष्य - जीवन के जरूरी अंग हैं ।
पेश्तर इसके कि हम सुरत - शक्ति के समेटने या जगाने और ऊँचे मंडलों में चढ़ाने के साधनों के उमूल वपान करें यह जरूरी मालूम होता है कि अपने मतलब को वाजह करने के लिये दो एक खारिजी ( बाहरी ) बातों का तजकिरा करें ।
सब कोई जानता है कि संसार के पदार्थों का ज्ञान लेने और अपने ज्ञान या तजरुषों का इजहार करने के लिये हम खास कर सुनने , देखने और बोलने की इंद्रियों हो का इस्तेमाल करते हैं यानी मनुष्य शरीर की जरूरियात अव्वलन् इन तीनों द्वारों ही की मारफत पूरी होती हैं और अगर इन तीन इंद्रियों का इस्तेमाल बंद हो जाये तो मनुष्य की चेतन यानी मानसिक ताकतें या तो बिलकुल ही जाती रहेंगी या इस कदर नाकारा हो जायेंगो कि जिंदगी ज्यादा असे तक कायम न रह सकेगी क्योंकि जब आँख कान से कुछ देखा सुना ही न जायेगा तो चिंतपन और मनन किस बात का किया जायेगा और जब मुख से कुछ बोला ही न जावेगा तो हमारे मन का हाल किसी को क्या मालूम होगा और हमारी जरूरियात कैसे पूरी होंगी । ऐसी हालत में हमारी दिमागी ताकतें कैसे जिंदा रह सकती हैं और हम कितने दिन तक जी सकते हैं ।
हरचंद यहाँ पर जिक्र सिर्फ स्थूल घाट यानी देह की इंद्रियों के मुतमल्लिक किया गपा है लेकिन ये उमूल सूक्ष्म और परे के घाटों को इंद्रियों और चेतन - शक्तियों के ऊपर भी प्रायद होते हैं यानी उन पार्टी की इंद्रियों के वेकार रहने से वहाँ की देह की चेतन - शक्तियाँ भी मुर्दा हो जाती हैं , मगर चूंकि उन इंद्रियों के जिम्मे स्थूल शरीर के जिंदा रखने के मुतअल्लिक कोई खास काम नहीं है इस लिये उनके शिथिल रहने से मनुष्य - जीवन में कोई हर्ज नहीं होता । मगर चूंकि आम तौर पर मनुष्य उन इंद्रियों को इस्तेमाल में लाने के मुतअल्लिक कोई बाकायदा साधन या कसरत नहीं करते इस लिए वे सब बेकार रहती हैं और जिस मतलब से उनको मनुष्य - शरीर के अंदर कायम किया गया है वह सब कौत हो रहा है । राधास्वामी मत में जो भक्ति और साधन के तरीके सिखलाये जाते हैं ये इन्हीं तीन खबास या अंगों को जगाने वाले अलहदा अलहदा आध्यात्मिक साधन यानी रूहानी अमल हैं । उनकी तफसील यह है : -अब्बल सुरत की जबान यानी तवज्जुह की धार से चेतन नाम का उच्चारण करना , दूसरे चेतन रूप का ध्यान यानी चितवन करना और तीसरे चेतन शब्द का तवज्जुह के साथ श्रवण करना ।
घेत - योनि के जीव स्थूल शरीर के घाट पर जाहिर होने के समय तीनों क्रियाएँ बोलने , मुनने और देखने की करते हैं । इससे जाहिर होता है कि इस योनि में इन क्रियाओं के करने के लिये सूक्ष्म इंद्रियाँ मौजूद रहती हैं और इन सूक्ष्म इंद्रियों ही की मारफत प्रेत - योनि को स्थूल इंद्रियों की गम्प से परे के वाक्रमात की खबर हो जाती है और यह भी साबित होता है कि देखने , सुनने और बोलने की क्रियाएँ स्थूल घाट हो पर खतम नहीं हो जाती बल्कि सूक्ष्म घाटों पर भी इनका इजहार बराबर मौजूद है और वहाँ पर इनका दायरा स्थूल घाट के मुकाबिले में बहुत ज्यादा पसी है । इससे मालूम होना चाहिये कि चेतन शक्ति के जगाने के मुतमल्लिक साधन , जिनका बयान हम मागे चल कर करेंगे , महत सपाली पातें नहीं है इस लिये मुनासिब है कि जिस आदर भाव के साथ वैज्ञानिक सिद्धांतों को जाँच की जाती है उसी आदर भाव के साथ इनकी मी जाँच की जाये ।
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Radhasoami
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