Saturday, November 7, 2020

१०१ - ब्रह्मांड के नीचे के मैदान और ब्रह्मांड व व पिंड की परिक्रमा का बयान

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१०१ - ब्रह्मांड के नीचे के मैदान और ब्रह्मांड पिंड की परिक्रमा का बयान




     विष्णु , ब्रह्मा और शिव के स्थानों के नीचे महासुन्न की तरह का एक भारी मैदान है लेकिन यह मैदान महासुन की निसबत लम्बाई चौड़ाई में बहुत कम है यहाँ पर कुछ नीचे दर्जे की कायनात यानी सृष्टि भी है और रचना के दूसरे और तीसरे दजों के बीच में यह हफासिल यानी सीमा का काम देता है इस हफासिल के सबसे नीचे हिस्सों में तीसरे दर्जे यानी पिंड की चोटी का स्थान वाकै है जिसमें ब्रह्मांड देश में दाखिल होने के लिये एक रौजन यानी छिद्र है , जिसको तीसरा तिल , तृतीय नेत्र और दिव्य चक्षु कहते हैं इस छिद्र को मारफत ब्रह्मांड के नीचे हिस्सों का दूर से दर्शन किया जा सकता है और वह बतौर एक सदर दरवाजे के है जिससे हो कर सुरत यानी जीवात्मा पिंड से ब्रह्मांड में दाखिल होती है पिंट की चोटी का स्थान , जिसका ऊपर जिक्र हुआ , ब्रह्मांड की चोटी के स्थान यानी सुन्न से मिलता जुलता है पिंड देश का चंद्र स्थान इसी को कहते हैं और जितने भी स्थान इसके नीचे वाकै हैं उन सब को चेतनता इसी से पहुँचती है यह स्थान सूर्य लोक से परे वाकै है और ये दोनों ब्रह्मांड के सब से नीचे हिस्से के गिर्द गर्दिश यानी परिक्रमा करते हैं ब्रह्मांड भी कुल का कुल इसी तरीके पर निर्मल चेतन देश के गिर्द चक्कर लगाता है लेकिन निर्मल चेतन देश या उसके किसी भाग के जिम्मे चक्कर लगाने का कजिया नहीं है आगे चल कर हम दिखलावेंगे कि रचना के ये ही दो दर्जे , जिनके जिम्मे परिक्रमा करना लगा है , समय पाकर नाश को प्राप्त होते हैं निर्मल चेतन देश में किसी तरह का रद्द बदल या मृत्यु नहीं है इस लिये वह स्थान अविनाशी है ब्रह्मांड और पिंड की निसवत जो कुछ ऊपर बयान हुआ वह सिर्फ एक निजाम ( System ) के मुतमल्लिक था जिसमें हमारा सूर्य मंडल ( निजामेशम्सी ) वाकै है लेकिन कुल ब्रह्मांड देश में इस तरह के अनेक निजाम वाले हैं क्योंकि जो काल आद्या की धारें सत्यलोक से निकल कर महासुन्न के मैदान में उतरीं उनकी मारफत असंख्य ब्रह्म और उनकी अांगिनियाँ और ब्रह्मांड के धनी समुद्र के पानी के कतरों की तरह खारिज हुए और इसी तरीके पर अनेक सूर्य मंडल ( निजामे शम्सी ) , जो पिंड देश में नजराई पड़ते हैं , ब्रह्मांड देश के हर एक निजाम से प्रकट हुए

१०२ - गुणों का प्रकृतियों से मेल और चौरासी धारें

      

 तीन गुण नीचे उतरते हुए रास्ते में उन पचीस प्रकृतियों से , जिनका दफा में जिक्र हुआ , मिले और नीज़ उन्होंने आपस में संयोग किया और इस तरीके से चौरासी मुरक्कब धारें- पचहत्तर धारें प्रकृति की और नौ धारे खालिस गुणों की तैयार हो कर पिंड देश में उतरीं इन चौरासी सूक्ष्म धारों ही को चौरासी लक्ष कहते हैं पिंड देश की जितनी भी जानदार बेजान कायनात यानी सृष्टि है सब के शरीर का मसाला और सबकी क्रियाएँ इन्हीं चौरासी धारों से बरामद हुई पचहत्तर प्रकृति की धारों का इजहार यहाँ पर मूल पदार्थों ( Elements ) के भाव में देखने में आता है जिनमें से हर एक के अंदर यवजह जुदागाना होने शक्ति की धारों के और नीज़ बवजह मुख़्तलिफ होने उन आदि - तत्त्वों के , जिनका मसाला उनमें लगा है , अलहदा अलहदा सिफात कायम हैं














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