👇👇👇👇👇👇👇👇👇
११० - ब्रह्मपुरुष और कुल मालिक के अवतार ।
संसार में ये ही जीव सत्तलोक और उसके परे के धामों की चेतनता का बीज ग्रहण करने के लिये सबसे ज्यादा अधिकारी होते हैं जिसके बगैर वे निर्मल चेतन देश की तरफ रुख बाली चेतन धार पर चढ़ने के काबिल नहीं हो सकते । ऐसे जीवों को अभ्यास की युक्ति की कमाई निहायत रसीली मालूम होती है और उनका अभ्यास हमेशा दुरुस्ती से बन पड़ता मालूम होवे कि इस तरीके से सत्तलोक में पहुँचने का इंतजाम सिर्फ मनुष्य - योनि के लिये महदूद नहीं है बल्कि ऊँचे दर्जे की चेतनता का बीज पिंड देश के मुख़्तलिफ स्थानों के सभी अधिकारी जीवों के अंदर बोया जाता है , चाहे वे मनुष्प - योनि में हों या किसी और योनि में | रफ़्ता रफ़्ता इन सबके अंदर राधास्वामी दयाल की बतलाई हुई अभ्यास की युक्ति कमाने के लिये मुनासिब आत्मबल और शक्ति पैदा हो जाती है और बिलाखिर ये भी सच्ची मुक्ति और अविनाशी गति के मागी हो जाते हैं । संत सुरतें , जिनका दफा ५२ में जिक्र हुआ , राधास्वामी दयाल के निज पुत्र होती हैं क्योंकि इनका चेतन जौहर उन्हीं का अंश होता है । त्रिलोकी के निर्मल चेतन देश के सम्मुख पाने के मुबारक अवसर पर संत मुरतें भी इस संसार में अक्सर तशरीफ़ लाती हैं और यहाँ आकर वे कुल मालिक राधास्वामी दयाल की तरह दया की दात और उद्धार की काररवाई का सिलसिला जारी फरमाती हैं । जब त्रिलोकी के सम्मुख रहने का समय खतम होने पर आता है तो हस्त्र बयान दफा १०८ के महाप्रलय हो जाता है और उस वक्त तक उद्धार व जीवों को चेतनता बशने की कारवाई भी मुकम्मल हो चुकती है ।
👇👇👇👇👇👇👇👇👇
No comments:
Post a Comment