Friday, January 1, 2021

११० - ब्रह्मपुरुष और कुल मालिक के अवतार ।

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११० - ब्रह्मपुरुष और कुल मालिक के अवतार ।


          ब्रह्मपुरुप को अपने देश के ऐसे वासियों को , जो ऊपर के बयान के बमुजिब नीचे स्थानों में उतर आते हैं , वापिस ले जाने की गरज से और नीज़ पिंड देश की दशा के सुधारने के मतलब से अक्सर इस पृथ्वी पर अवतार धारण करना पड़ता है । कभी कमी ब्रह्मपुरुष के निज पुत्र व पैग़म्बर भी यानी ऐसी सुरतें , जिनकी शक्ति ब्रह्मपुरुष अपनी चेतनता से खास तौर पर जगा देता है , इसी मतलब से संसार में भेजी जाती हैं । इसी तौर पर सत् - करतार भी , जो चेतन शक्ति का अपार सोतपोत है , जो अगम्य है और जो सब से ऊँचे और अनंत चेतन धाम का धनी है , अवतार धारण फरमाता है । उसकी पृथ्वी पर तशरीफ़ आवरी उस वक्त होती है जब यह त्रिलोको निर्मल चेतन देश के सम्मुख यानी मुकाबिल आ जाती है । ऐसे मुबारक भवसर पर निर्मल चेतन देश से जो भारी चेतनता उतर कर आती है उसका कुछ बार पार नहीं है और निर्मल चेतन देश के नीचे की कुल रचना उससे फैजयाब होती है । इसी समय में सब जीवों को अवसर उस आध्यात्मिक शिक्षा के हासिल करने का मिलता है जिसके प्रताप से वे सच्चे कुल मालिक के देश और निज महल में वास पा सकते हैं । कुल मालिक की भामद से सबसे ऊँचे दर्जे की चेतनता ब्रह्मांड व पिंड दोनों में भर जाती है और एक धार ऊपर की जानिब रुख बाली कायम हो जाती है । यह धार ही बह पंथ या मार्ग है जिस पर चलकर प्रेमीजन रचना के पहले दर्जे यानी निर्मल चेतन वेश में रसाई हासिल करते हैं और अमर अविनाशी आनंद को प्राप्त होते हैं । कुल मालिक राधास्वामी दयाल की तशरीफआपरी के सुनहले मौके का ऊँचे स्थानों के वासी , खासकर प्रांड के रहने वाले , अक्सर फायदा उठाते हैं और उनकी सवारी के हमरकाप इस संसार में उतर आते हैं । 

        संसार में ये ही जीव सत्तलोक और उसके परे के धामों की चेतनता का बीज ग्रहण करने के लिये सबसे ज्यादा अधिकारी होते हैं जिसके बगैर वे निर्मल चेतन देश की तरफ रुख बाली चेतन धार पर चढ़ने के काबिल नहीं हो सकते । ऐसे जीवों को अभ्यास की युक्ति की कमाई निहायत रसीली मालूम होती है और उनका अभ्यास हमेशा दुरुस्ती से बन पड़ता मालूम होवे कि इस तरीके से सत्तलोक में पहुँचने का इंतजाम सिर्फ मनुष्य - योनि के लिये महदूद नहीं है बल्कि ऊँचे दर्जे की चेतनता का बीज पिंड देश के मुख़्तलिफ स्थानों के सभी अधिकारी जीवों के अंदर बोया जाता है , चाहे वे मनुष्प - योनि में हों या किसी और योनि में | रफ़्ता रफ़्ता इन सबके अंदर राधास्वामी दयाल की बतलाई हुई अभ्यास की युक्ति कमाने के लिये मुनासिब आत्मबल और शक्ति पैदा हो जाती है और बिलाखिर ये भी सच्ची मुक्ति और अविनाशी गति के मागी हो जाते हैं । संत सुरतें , जिनका दफा ५२ में जिक्र हुआ , राधास्वामी दयाल के निज पुत्र होती हैं क्योंकि इनका चेतन जौहर उन्हीं का अंश होता है । त्रिलोकी के निर्मल चेतन देश के सम्मुख पाने के मुबारक अवसर पर संत मुरतें भी इस संसार में अक्सर तशरीफ़ लाती हैं और यहाँ आकर वे कुल मालिक राधास्वामी दयाल की तरह दया की दात और उद्धार की काररवाई का सिलसिला जारी फरमाती हैं । जब त्रिलोकी के सम्मुख रहने का समय खतम होने पर आता है तो हस्त्र बयान दफा १०८ के महाप्रलय हो जाता है और उस वक्त तक उद्धार व जीवों को चेतनता बशने की कारवाई भी मुकम्मल हो चुकती है ।


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