Sunday, January 3, 2021

१११ - मनुष्य - शरीर रचना का एक छोटा नमूना है जिसमें रहकर रूहानी तरक्की बखूबी हो सकती है ।

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१११ - मनुष्य - शरीर रचना का एक छोटा नमूना है

जिसमें रहकर रूहानी

तरक्की बखूबी हो सकती है ।


       मनुष्य - शरीर के छओं चक्र , मूलाधार से लेकर आज्ञा चक्र तक , जो दोनों आँखों के मध्य स्थान में वाक़ है , सब के सब कारकुन रहते हैं इस लिये मनुष्य - शरीर के अंदर पिंड देश के छओं घाटों का नमूना कारकुन रूप में मौजूद है । चूंकि मनुष्य का वास पृथ्वी पर है , जो पिंड देश के ऊपर के तीन स्थानों में सबसे निचला स्थान है , इस लिये आम कायदे के यमूजिब , जो सभी जीवों पर घटता है , मनुष्य शरीर के अंदर सिर्फ ऊपर के तीन चक्र क्रियावान् यानी कारकुन होने चाहिए । मगर चवजह इसके कि ब्रह्मांड से और नीज चंद्र स्थान व सूर्यलोक से जो धारें पृथ्वी पर आती हैं उनका वेग यहाँ पर निहायत जबरदस्त हो रहा है , मनुष्य - शरीर के नीचे के तीन चक्र भी , जो पिंड देश के निचले तीन स्थानों से मुताबिक़त रखते हैं , आम कायदे के खिलाफ ( जो ब्रह्मांड और निर्मल चेतन देश में जारी है ) कारकुन हो रहे हैं । इस वजह से पृथ्वी के घाट पर मनुष्यों और पशुओं दोनों के अंदर नीचे के तीन चक्र बहुत ज्यादा जगे हुए हैं । मनुष्य - शरीर में , जो पृथ्वी के दूसरे जानदारों की निसबत बहुत बढ़कर चेतन है यानी जो दूसरे जीवों की निसवत बलिहाज रूहानियत के निहायत अफजल है , ऊपर के तीन चक्र नीचे के तीन चक्रों को चेतनता व ताकत देने की वजह से इतने कमजोर यानी चेतनता से हीन नहीं हो गये हैं कि वे ज्यादा शिथिल हो जायें । दूसरी योनियों में अलबत्ता यह सूरत नहीं रही है । चूंकि उनकी चेतनता कम दर्जे की है इस लिये नीचे की जानिब बहाव ने उनके ऊपर के चक्रों की चेतनता को इस कदर क्षीण यानी कमजोर कर दिया है कि उनकी दिमागी कुव्वतें और खास कर विचार शक्ति बहुत ही बिगड़ गई है । बहुत से जानवरों का तो हृदय चक्र ही उनकी सुरत की बैठक का मुकाम हो रहा है और वे दिमाग के निकाल दिये जाने पर भी घरावर जिंदा रहते हैं । नीचे की जानिब धार का बहाव , जिसका अभी जिक्र हुआ , यहाँ पर निहायत ही प्रबल वेग के साथ जारी है और किसी जीव की मजाल नहीं कि उसको उलट सके जब तक कि वह उन तमाम अंगों को , जो उस धार से सर्सब्ज हो रहे हैं , कम व वेश दमन न कर ले और संसार में व्यवहार करते वक्त लगातार निगहदारत इस बात की न रक्खे कि इन अंगों में बेमतलब या नामुनासिब परताव किसी हालत में न होने पाये । हमारे ऊपर के बयान से यह जाहिर है कि मनुष्य - शरीर के अंदर ब्रह्मांड के छः स्थानों का प्रतिबिम्ब यानी अक्स कारकुन रूप में मौजूद है और दफात २३ व २४ में दिखलाया गया है कि इस प्रतिबिम्ब के ग्रहण करने का यंत्र यानी आला मनुष्य के दिमाग के अंदर कायम है और यह भी बयान हुआ है कि मनुष्य के दिमाग के अंदर जो छिद्र मौजूद हैं उनकी मारफत ववजह इसके कि ब्रह्मांड के स्थानों का प्रतिबिम्ब उनके द्वारा आने से उनके अंदर ब्रह्मांड की शक्तियाँ कायम हैं मनुष्य की सुरत मुनासिब साधन करने पर ब्रह्मांड देश में रसाई हासिल कर सकती है और चूंकि ब्रह्मांड निर्मन चेतन देश की छाया है इस लिये जो धारें मनुष्य - शरीर के अंदर ब्रह्मांड के स्थानों का प्रतिबिम्ब पैदा करती हैं उनके अंदर निर्मल चेतन देश की छाया का असर मौजूद रहता है जिसकी वजह से मनुष्य के दिमाग में निर्मल चेतन देश के स्थानों की भी छाया मौजूद है और निर्मल चेतन देश से तअल्लुक पैदा करने और उसमें रसाई हासिल करने के लिये छिद्र बने हैं । 

           पस नतीजा निकलता है कि मनुष्य को अपने निवास स्थान को खरसियत और जाती चेतनता की विशेषता की बदौलत एक अलग सृष्टि प्राप्त है जिसके अंदर रचना के कुल स्थानों के नमूने चेतन शक्ति के निज भंडार से लेकर न्यून अंग के सब से नीचे सृष्टि रहित ( Creationless ) सिरे तक के मौजूद हैं और नीज जिसके अंदर ऐसे छिद्र और गुप्त शक्तियाँ कायम हैं कि जिनको मारफत मनुष्य की मुरत ऊँचे से ऊँचे मुकाम तक पहुँच सकती है । इस लिये मनुष्य - शरीर छोटे पैमाने पर मालमेकबीर का सच्चा नमूना है और इस अनोखी दौलत ही की वजह से मनुष्य को देवताओं और ब्रह्मांड के वासियों से अफजल यानी उत्तम गिना जाता है और यही खास वजह है कि जिससे सच्चे कुल मालिक राधास्वामी दयाल और उनके प्यारे निज पुत्रों यानी संत सुरतों ने और ब्रह्मपुरुष और उसकी कलाओं ने इस पृथ्वी पर मनुष्य - शरीर ही धारण फरमाया । ब्रह्मांड देश के वासियों को भी , जब उनके अंदर चाह निर्मल चेतन स्थानों में रसाई हासिल करने की पैदा होती है , मनुष्य - शरीर धारण करना पड़ता है ( जिसके लिये सिर्फ पृथ्वी ही के घाट पर इंतजाम है ) क्योंकि इस मुकम्मल थालमेसगीर के अंदर ही संतों के अभ्यास की चतलाई हुई युक्ति की कमाई हो सकती है । संत सुरते अक्सर ब्रह्मांड के मुख़्तलिफ स्थानों में वहाँ के वासियों को निर्मल चेतन देश और उसके आनंद की खबर जनाने के लिये जाया करती हैं और चूँकि वहाँ के वासी बहुत निर्मल हैं और विशेष चेतनता रखते हैं इस लिये उनको संतों का उपदेश समझने मे चंदाँ दिक्कत नहीं होती और उनके अंदर जल्दी ही शौक निर्मल चेतन देश में रसाई हासिल करने का पैदा हो जाता है । जब यह शौक उनका काफी तेज़ हो जाता है तो वे मनुष्य शरीर में उतर आते हैं । ब्रह्मांड देश का आनंद ऐसा ज़बरदस्त और लुभाने वाला है कि वहाँ के वासियों के अंदर केवल ज़्यादा ऊँचे दर्जे के चेतन देश का संदेश मिलने ही से उस देश को छोड़ कर ऊपर जाने का शौक पैदा हो सकता है ।





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