Wednesday, September 23, 2020

परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज के बचन { बचन नं 6 }

परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज के बचन

बचन नं 6

9 जुलाई , 1944 को लड़कों के सतसंग में हुजूर कुछ उपयोगी बातें आप लोगों के सामने पेश करता हूँ विश्वास है कि आप उनसे लाभ उठायेंगे आपको चाहिए कि जब आप अपनी क्लास में बैठे तो कभी झुक कर बैठे , सदा सीधे बैठें , चलते समय भी झुक कर चलने की आदत डालें ढीले होकर या झुक कर कभी चलना चाहिए बल्कि चुस्त सीधे रहना चाहिए जब पढ़ना हो तब लेट कर पढिए बल्कि कुर्सी या स्टूल पर बैठ कर आपको पढ़ना चाहिए आपको चाहिए कि अपना शरीर , मन , मस्तिष्क , कपड़े निवास स्थान सदा स्वच्छ रखें निर्मल रखें मस्तिष्क के निर्मल रखने का अभिप्राय यह है कि आप व्यर्थ बुरे विचार उठावें और हृदय के निर्मल रखने का मतलब यह है कि आप किसी के लिए दिल में द्वेष ईर्षा रखें खाना सदा समय पर और भूख से कुछ कम खाना चाहिए

                   खराब या सड़ा हुआ खाना स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है उसे नहीं खाना चाहिए आप कोई भी काम मनसा - वाचा - कर्मणा से बुरा करें किसी वस्तु को चाहे कपड़ा हो या कागज , स्टेशनरी या खाने पीने का सामान , व्यर्थ नष्ट या अपव्यय ( waste ) करें और अपने विचारों का अपव्यय करें चूँकि आजकल कागज महँगा है इसलिए दोनों ओर लिखें , हाशिया कम छोड़ें अपनी कापी बुक से कागज फाड़ें अपना पैसा होस्टल में या जेब में रखें या तो उसे पास बुक में रखें या दफ्तर में जमा करा दें प्रतिदिन सुबह उठने पर व्यायाम अवश्य करें अपने मेस के सेक्रेटरी पर निगाह रखें कि वह आपके पैसे को आपके खाने पीने पर ठीक तौर पर खर्च करता है या नहीं जिस उद्देश्य से आप यहाँ पर आए हैं उसे सदैव अपने सामने रखें और उसके अनुसार अपना प्रोग्राम बनावें जिससे  आप अपना अधिक से अधिक समय उसमें दे सकें प्रकट रूप से देखने में यह बात सहज मालूम होती है परन्तु इसके लिए आपको कोशिश करनी होगी अभिप्राय यह है कि खेलने के समय के अलावा अपना समय पढ़ने में लगावें व्यर्थ बातों जैसे सिनेमा , थियेटर या आवारागर्दी में अपना समय कदापि नष्ट करें सिनेमा जाने की बिल्कुल मनाही है जो लड़के सिनेमा जायेंगे उनके नाम नियमपूर्वक नोट कर लिए जायेंगे आपको यहाँ का बना हुआ कपड़ा पहनना चाहिए और यहाँ की वस्तुएँ उपयोग में लानी चाहिए इससे मेरा अभिप्राय केवल यह ही नहीं है कि यहाँ की वस्तुओं की बिक्री हो बल्कि अभिप्राय यह है कि हम लोगों के विचार , बातचीत , पोशाक और ढंग एक प्रकार के होने चाहिए तभी हमारा प्रभाव और लोगों पर पड़ेगा ये सब बातें बिना एक प्रकार की पोशाक सम या ड्रेस के नहीं हो सकती हैं

1 comment:

१२४ - रचना की दया किस रारज से हुई

     १२४ - रचना की दया किस रारज से हुई ?   कुल मालिक एक ऐसा चेतन सिंधु है कि जिसके परम आनंद व प्रेम का कोई वार पार ...