Saturday, October 24, 2020

14 - परमार्थ के उद्देश्य की प्राप्ति ।

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14 - परमार्थ के उद्देश्य की प्राप्ति

      ऊपर की दफा से पता चल जाता है कि इस पुस्तक के शुरू में परमार्थ का जो उद्देश्य कायम किया गया उसकी प्राप्ति कब और कहाँ पहुँचने पर हो सकती है , क्योंकि यह दरयाफ़्त हो गया है कि सुरत जब सच्चे कुल मालिक के निर्मल चेतन - धाम में दाखिल होगी तो अजर और अमर हो जायेगी और सब प्रकार के दुःख व फ्लेश से छुटकारा पाकर कुल मालिक के दर्शन के परम आनंद में सदा मग्न व सरशार रहेगी ।

15 - सुरत और उसका भंडार

      यह मालूम होने पर कि किस गति के मिलने यानी किस देश में पहुंचने से परमार्थ के उद्देश्य की प्राप्ति जीव के लिये मुमकिन है , यह दरया : प्त करना जरूरी हो जाता है कि कुल मालिक का वह देश कहाँ पर वाकै है और सुरत अंश पानी पंथी का मौजूदा हालत में कयाम किस जगह पर है ; क्योंकि बगैर ये दो बातें तप किये जो भी यत्न या उपाय तजवीज होंगे वे मुहमल यानी अनिश्चित होंगे और उनके धन परने व न बन पड़ने को निसबत कोई राय कायम न की जा सकेगी । इस लिये पहुँचना कहाँ है और चलना कहाँ से होगा , अब इन्हीं दो पातों की निसबत तहकीकात करते हैं ।

       यह बयान किया जा चुका है कि चेतन - शक्ति ही इस रचना में आदि - शक्ति ( Prime Energy ) का मस्रजन यानी सोत है और प्रकृति की सय शक्तियाँ इसी के पासरे कायम हैं । ऐसी सूरत में यह खयाल करना गलत न होगा कि चेतन - शक्ति में और प्रकृति की शक्तियों में बहुत सी सिफतें मिलती जुलती मौजूद होंगी और यह भी मानना गलत न होगा कि प्रकृति की शक्तियों के मुबाफिक चेतन - शक्ति में उसके निज भंडार के सपास का असर मौजूद रहता है और जब चेतन - शक्ति की धार किसी मुकाम पर एकत्र हो कर कोई केंद्र या नुक्ता ( Focus ) कापम करती है तो उस मुकाम पर दशा आदि भंडार की दशा से कुछ कुछ मुशावह होनी चाहिए और अगर धार को एकत्र करने वाले शीशे या पदें का मसाला किसी तरह की रुकावट न डाले तो उस मूरत में केंद्र की दशा और श्रादि - भंडार की दशा में मुकम्मल मुशाबहत होगी । मतलब यह है कि जैसे आतिशी शीशे से गुजरने पर सूरज की किरनियाँ बाहर एक केंद्र ( Focus ) पनाती हैं और उस केंद्र की शक्ल सूरत और नोज बहुत से दूसरे अंग किरनियों के भंडार यानी सूरज से मुशावह रहते हैं और जिस कदर शीशा साफ होता है उसी कदर केंद्र मी साफ और सूरज के ठीक मुशायह होता है ; ऐसे ही चेतन - शक्ति की घारों से बने हुए केंद्र भी दरमियानी शीशे या पदं के विलकुल साफ शाकाक होने की सूरत में चेतन - शक्ति के भंडार के मुशावह होने चाहिए । लेकिन इस स्थूल सृष्टि में शीशे या पर्दे के नाकिस होने की वजह से इस तरह को मुकम्मल मुशावहत रखने वाली सूरतें बिलकुल दुर्लभ हैं । अलपना मनुष्य - चोले में , जो कि पृथ्वी पर चेतन - अंश की सबसे बढ़ कर चेतन अवस्था है , चेतन - भंडार की बहुत कुछ नकल देखने में आती है । इस लिये रचना यानी पालमे कबीर का हाल जानने और उसके मुतलिफ भागों की तकसीम समझने और परम आनंद का धाम तहकीक करने के लिये सबसे सहल और असली तरीका मनुष्य - शरीर का भेद दरयाफ्त करना करार पाता है । अगर कोई यह हौसला करे कि पढ़िया पालाजात और औजारों की मदद से पालमे कबीर की रचना का भेद जान ले तो बिलकुल येमसरफ होगा , क्योंकि भाले औजार बेचारे क्या करेंगे जब कि खुद हमारी ज्ञानेंद्रियों की , जिन पर अाले और औज़ार लगाये जावेंगे , इस रचना के नीचे ही दर्जे के बहुत से सूक्ष्म मंडलों में कोई गति यानी पहुँच नहीं है । इसलिए रचना का भेद समझने के वास्ते चेतन - भंडार से आए हुए किरणरूपी सुरत - अंश का हाल दरयाफ्त करना ही बन पड़ने वाला तरीका रह जाता है ।

16 - सुरत का निज भंडार

      यह पीछे बयान कर आये हैं कि सुरत सत् , चित् भौर भानंद रूप है । अब हम चाहते हैं कि यहाँ पर संसार के उन आला से पाला यानी हद दर्जे के आनंद वगैरह की खयाली तसवीर पेश करें जो जीव के तजरुबे में आ सकते हैं , क्योंकि इसकी मदद से चेतन - शक्ति के आदि और निज भंडार यानी सच्चे और परम समर्थ कुल मालिक की अवस्था का किसी कदर अनुमान हो सकेगा ( हरचंद यह अनुमान निहायत पोछा और स्थूल होगा ) । हम विचार सकते हैं कि परम सुहावन रूपों के खपाल में आने , महा प्रकाशवान और तीक्ष्ण पुद्धि के चमकने , अत्यंत मनोहर राग के अलापने , परम सुंदर रूप के दरसने और दूसरी इंद्रियों के मुतअल्लिक आला दर्जे के रस प्राप्त होने पर , जिनकी वजह से इंसान हर दर्जे का सरशार और अजखुदरफ़्ता हो जाता है , हमारे अंदर क्या हालत होती है । अब अगर इंसान के वजूद में मुकीम सुरत अंश के अंदर , जो कि निहायत ही कम हकीकत किरण चेतन - शक्ति की है और अंशी निज - भंडार के मुकाबिले में जिसकी कोई हैसियत नहीं है , काबिलियत इस कदर मग्न प रत होने की मौजूद है तो अंशी चेतन - भंडार के परम पानंद , परम ज्ञान और परम सत्ता की कैफियत का क्पा वार पार हो सकता है । वह चेतन - भंडार कुल - मालिक का धाम है और उसमें परम शक्ति , परम आनंद और परम मुख ही का राज्य है और किसी तरह के रह व बदल व क्षीणता का वहाँ पर दखल नहीं है और वह घाम अमर व अविनाशी है । कुल मालिक और उसके धाम का रचना के और स्थानों और उनके पासियों से क्या संबंध है यह आगे चल कर तफसील के साथ बयान करेंगे । इस वक्त सिर्फ इस कदर जतलाना चाहते हैं कि हरचंद कुल मालिक को किरनियाँ हर जगह मौजूद हैं लेकिन उसका निज धाम एक अलग ही धाम है और वह मन और माया के मंडलों से परे वाकै है । मन और मापा के मंडल कुल मालिक के घाम से अलहदा बतलाने पर अगर कोई एतराज करे कि वह मालिक अनंत व अपार नहीं रहता , तो हम सवाल करते हैं कि आकाश के अंदर बादल का एक टुकड़ा मौजूद होने से क्या आकाश की अनंतता व अपारता जाती रहती है ।

 ( मुलाहिजा करो दफा ६ ९ भाग तीसरा ) ।



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