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12 - सुरत यानी चेतन - शक्ति ही आदि - शक्ति है ।
अब हम लौट कर चेतन - शक्ति की तरफ आते हैं और उसकी परीक्षा शुरू करते हैं । मुनासिब होगा कि जो अमल पर्दे यानी शिलाफ दूर करने का प्रकृति की शक्तियों पर लगाया गया था यह चेतन - शक्ति पर भी लगा कर देखा जाये कि ऐसा करने से चेतन - शक्ति का क्या हाल होता है । इसके लिये मौत और सक्ते या मूर्छा वगैरह की अवस्थाओं की जाँच करना मुनासिप होगा क्योंकि इनमें से पहली पानी मौत की अवस्था में स्थूल शरीर का पर्दा बिलकुल अलहदा हो जाता है और बाकी की अवस्थाओं में यह बेकार रहता है । मनुष्य के मंदर मामूली तौर पर गुरत के चार सपास देखने में आते हैं अव्वल ज्ञान लेना , दूसरे दुःख सुख का अनुभव करना , तीसरे संकल्प विकल्प पानी सपालात उठाना व दूसरी मानसिक क्रियाएँ करना और चौथे ताकत पा जान देना , जिसकी मदद से खाना हजम हो कर शरीर तैयार होता है । लेकिन ये चारों सवास प्रेत - योनि के अंदर भी दिखलाई पड़ते हैं और सक्ते की हालत हो जाने पर भी देखने में भाते हैं बल्कि स्थूल देह की क्रिया हटने या बंद होने पर अलावा इन खवास के कायम रहने के मनुष्य के अंदर मान लेने की ऊँचे दर्जे की शक्तियाँ और आगामी पानो होनहार पातों के जानने व साधारण मनुष्य - गति से परे के पाट में प्रवेश करने वगैरह की ताकतें जाग उठती हैं । इससे लाजिमी तौर पर नतीजा निकलता है कि प्रकृति की शक्तियों के दस्तूर के खिलाफ चेतन शक्ति के शिलाफ पानी पर्दै दूर होने पर उसके सब के सब खवास परापर कायम रहते हैं । इस लेख में प्रेत - योनि का जो हमने जिक्र किया है उससे यह नहीं समझना चाहिए कि देह छोड़ने पर सभी जीव प्रेत - योनि को प्राप्त होते हैं । इस पुस्तक के तीसरे माग के दफा ११४ में हम बयान करेंगे कि देह छोड़ते यात जीव पर क्या हालत गुजरती है और अनेक दजों के जीव जो इस रचना में विचर रहे हैं उनके लिपे मौत के बाद का इतनाम फिन नियमों के अनुसार होता है । यहाँ पर प्रेत - योनि का जिक्र सिर्फ इस रारत से किया गया है कि प्ररपक्ष गुप्त पेश करके यह साबित किया जाये कि स्थूल शिलाफों के अलहदा होने पर गुरत के निज खपास न सिर्फ बदस्तूर कापम रहते हैं पल्कि उनका इजहार पादा वेग के साथ होने लगता है ।
पीछे दफा ९ मे बयान किया गया है कि हमारा मन एक ऐसा भौशार है कि जिसके द्वारा सुरत अपनी मालिक मानसिक क्रियाएँ करती है । जब मन को मानसिक क्रिया करने का औजार कहा तो मानना होगा कि मन भी एक पर्दा ही है जिसकी मारफत मानसिक क्रियाओं का इजहार होता है । दफा २१ में आगे चल कर हम दिख लायेंगे कि चेतन - शक्ति कैसे मन को मदद के बगैर अपने निज खवास का इजहार कर सकती है । इस वक्त सिर्फ इस कदर जतला देना काफी होगा कि मुरत के ऊपर से दर्जे बदजें स्थूल व सूक्ष्म पर्दे हटने पर इसके निज खवास ज्यादा ही ज्यादा रोशन होते जाते हैं और अगर इसके ऊपर से तमाम के तमाम पदें स्थूल व सूक्ष्म दूर कर दिये जावें तो प्रास्त्रीर में सुरत यानी चेतन - शक्ति शुद्ध - स्वरूप हो जावेगी और उस अवस्था में यह शक्ति आदि - शक्ति , ज्ञान और आनंद का मखजन यानी सोत नमूदार होगी ।
अगर ऊपर को सब दलीलें दुरुस्त हैं तो नतीजा निकलता है कि प्रकृति की तमाम शक्तियों का वजूद चेतन - शक्ति के आधार ही पर कायम है और इस नतीजे की दुरुस्ती जानवरों व वनस्पतियों के बीजों के उगने व परवरिश पाने को निमबत जो कुदरत में इंतजाम है उस पर निगाह डालने से साबित होती है । चुनाचे देखने में आता है कि जब तक मुरत यानी रूह का किसी देह के अंदर निवास रहता है सब तत्व और प्रकृति की शक्तियाँ बाहम ( परस्पर ) मेल से काम करती हैं और उस देह के कायम रखने और बढ़ने में मददगार रहती हैं , लेकिन जिस दम सुरत देह से अलहदा हो जाती है , सब का सब कारखाना उलट जाता है और ये शक्तियाँ और तस्त्र तोड़ फोड़ की काररवाई शुरू कर देते हैं और अंत में जहाँ से वे आये थे वहाँ लौट जाते हैं । अगर मुरत अंश की निसवत यह उसूल दुरुस्त है कि उसके स्थूल देह का वजूद गुरत अंश की मदद से कायम होता है और उसी के आसरे कायम रहता है तो उसके अंशो यानी सुरत के मंडार सत् - करतार की निसवत इस उसूल का दुरुस्त होना और भी ज्यादा लाजिमी ठहरता है और इससे सावित होता है कि उस सत् - करतार हो को चेतन धारों के प्रताप से यह तमाम रचना रूपवती हुई है और इसके कपाम और इंतजाम के लिये अटेल और दानाई में मुकम्मल नियम उसी आदि कारण ने कायम किये हैं ।
13 - पुराने जमाने के पाँच मूल तत्त्व
परमाणुओं की जिस विभक्त दशा का ऊपर वर्णन हुआ पुराने जमाने में उस अवस्था को प्राप्त प्रकृति को बुजुर्ग लोग अग्नि तत्व कहते थे । इसी तरह पर पाकी के और चार तत्व भी प्रकृति की दूसरी चार ( ठोस , तरल , वायव्य और आकाशीय ) अवस्थाओं के नाम थे । लोगों का यह खयाल ग़लत है कि साधारण मिट्टी और पीने के जल वगैरह को वे लोग इन नामों से पुकारते थे । घरखिलाफ इसके जैसा कि बयान किया गया प्रकृति यानी माद्दे की ठोस , तरल वगैरह अवस्थाएँ ही मूल तत्व कहलाती थीं यानी कदीम बुजुर्गों का मतलब पाँच मूल तत्वों से उन पाँच अवस्थाओं को प्राप्त प्रकृति से था जो निहायत उत्तम वैज्ञानिक रीति से दर्जे बदर्जे कायम हैं
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radhasoami
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