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वयान सच्चे परमार्थ का और उसके उद्देश्य ( गरज ) का और वर्णन उस अवस्था का कि जिसमें उस उद्देश्य की प्राप्ति हो सकती है ।
१ - परमार्थ की वैज्ञानिक रीति से तहकीकात की जरूरत ।
देखने में आता है कि इस जमाने के बढ़के समझदार लोगों और खास कर वैज्ञानिक पुरुषों को बहुत ही कम तवज्जुह परमार्थ की जानिब जाती है । चाहिए तो यह था कि जैसे संसार के अनेक पदार्थों और विद्याओं और कामों की तरफ़ तवज्जुह दे कर नई नई मालूमात की जा रही हैं और जीवों के लिए सुख के नये नये सामान बहम पहुँचने का इंतजाम हो रहा है वैसे ही परमार्थ की जानिय भी तवज्जुह दे कर नये भेद मालूम किये जाते और जीवों के लिए ऊँचे दर्जे के सुख का रास्ता खोला जाता । लेकिन जैसा कि बयान किया गया , सूरत इसके बिलकुल बरखिलाफ है । इसकी क्या वजह है ? वजह यह है कि परमार्थ का मजमून ( विषय ) उमंग व जोश की बातों , गुप्त इशारों व भेदों की उलझनों और टेक व पक्ष की अटकों से भरपूर है ; और वह करदेखी और यथार्थ जाँच व परख , जो आजकल के वैज्ञानिक निर्णय विचार की जान है , इसमें नदारद है । कुदरती तौर पर विद्यावान लोगों का मन परमार्थ के सिलसिले में उसी तरह की तहकीकात पाहता है जैसी कि और दूसरे विषयों के सिलसिले में की जाती है और ऐसा इंतजाम न होने की वजह से इन पुरुषों की तवज्जुह परमार्थ की जानिष बहुन कम जाती है । इस कसर को दूर करने यानी परमार्थ के मगपून में नई रोशनी की तहकीकात का रस पैदा करने के लिये यह आवश्यक होता है कि परमार्थ की तहकीकात आज कल की वैज्ञानिक रीति के अनुसार की जाये यानी अब्बल साफ तौर पर परमार्थ का उद्देश्य यपान किया जाये और बाद में ऐसे मुनासिब साधन तजवीज किये जायें कि जिन पर अमल करने से उस उद्देश्य की प्राप्ति हो सके । चुनांचे इस पुस्तक में हम ऐसे ही परमार्थ के सिद्धांतों और साधनों का वर्णन करेंगे कि जिसमें हर बात वैज्ञानिक रीति की जाँच य परख के बाद मानी गई है ।
२ - परमार्थ के उद्देश्य का बयान ।
गौर करने से मालूम होता है कि इस संसार में प्राणीमात्र जो भी संकल्प उठाते हैं या कर्म करते हैं उन सब की पुनिपाद किसी न किसी प्रकार के सुख की प्राप्ति या दुःख से निवृत्ति की चाह होती है । इतना ही नहीं बल्कि जो संकल्प हमारे अंदर आप से आप उठते हैं और जो कर्म विला शामिल होने हमारी मजा या इरादे के हमसे बन पड़ते हैं उनकी तह में भी इस बासना का कुछ न कुछ लेश जरूर मौजूद रहता है । पुनाँचे जो दशा हमारे भाराम व बेहतरी के लिए सहायक होती है उसके लिए हमारी जानिब से बराबर शिरकत , शमलियत या मंजूरी का इजहार होता है और जो दशा खिलाफ सूरत पैदा करने वाली होती है उसके लिए रुकावट या हटाव जाहिर होता है । मसलन् जो खाना हम खाते हैं उसमें जो कुछ हमारे लिए मुफीद मसाला होता है वह विला शिरकत हमारी मर्जी के आप से आप हजम हो कर हमारे शरीर का हिस्सा बन जाता है और किसी तरह का नाकिस मसाला अंदर जाने पर हमारे जिस्म के तमाम आजा उसको बाहर निकालने की कोशिश करते हैं । अलफाज़ " दुःख " व " सुख " इस बयान में और आईदा भी हमने इनके पसी मानी में इस्तेमाल किये हैं । मसलन् मुख के लिए यह जरूरी नहीं है कि जो काम हम करें वह इसी वक़्त या खास हमारे ही लिए मुखदाई हो । जैसे अगर कोई आदमी कोलों पर लेटा है या गर्मों के मौसम में खेत में हल चला रहा है तो सवाल हो सकता है कि इन कारवाइयों से इन लोगों को क्या सुख मिल रहा है ? इसमें शक नहीं कि जाहिरा तौर पर कीलों पर लेटना या गर्मी के मौसम में खेत में काम करना उस वक्त किसी तरह मुखदाई नहीं है लेकिन इन दोनों काररवाइयों की तह में ज़रूर बासना मुख के भोगने की मौजूद है । गुनांचे कीलों पर लेटा हुआ आदमी दिल में यह समझता है कि उसको कष्ट की हालत में देख कर लोग रुपया पैसा दान देंगे जिससे यह अपनी मर्जी के मुताबिक सुख भोग सकेगा । और दूसरा शस , जो खेत में काम करता है , जानता है कि चार छः महीने बाद फसल तैयार होने पर उसको भरपूर मौका खेत की आमदनी से मुख भोगने का मिलेगा । मतलब यह है कि " मुख की प्राप्ति " व " दुःख की निवृत्ति " की वासना से हमारी मुराद फौरन इसी समय के और खुद अपने ही भोग में आने वाले मुखों दुःखों से नहीं है बल्कि आगे पीछे आने वाले और अपने व दूसरे जीवों के संबंधी दुःख सुख भी इनमें शामिल हैं ।
जाहिर है कि इस प्रकार की बासना की पूरी शांति तभी हो सकती है कि जब जीन को ऐसी गति हासिल हो जाये कि जिसमें किसी भी तरह के दुःख व विक्षेप का लेश मौजूद न हो और परम आनंद भरपूर प्राप्त हो । मालूम हो कि परमार्थ का उद्देश्य यानी मतलब मनुष्यों के इसी ' परम अर्थ ' की प्राप्ति या सिद्धि है । चेतन - शक्ति यानी जीवात्मा के नियम क्या है ? सच्चा मालिक यानी सत्करतार किसको कहते हैं ? रचना कैसे और किस निमित्त रूपवती हुई ? जीव के लिए इस संसार में रहते हुए मुनासिब कर्तव्य क्या होने चाहिए ? ये भी ऐसे विषय है कि जिनकी निसयत सच्चे परमार्थ की जाँच के सिलसिले में गौर करना लाजिमी है ।
radhasoami
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