Thursday, October 15, 2020

जीव - चैतन्य या ज्ञानेंद्रिय की धार

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जीव - चैतन्य या ज्ञानेंद्रिय की धार


      हम हर रोज देखते हैं कि जीव को दुःख सुख का ज्ञान खास जाग्रत् अवस्था ही में होता है और स्वप्न , सुषुप्ति या सक्ते ( समाधि ) की अवस्था में प्रवेश होने पर या क्लोरोफार्म सूंघने से बेहोशी आने पर इनका कोई अनुभव नहीं होता इससे जाहिर है कि दुःख सुख के ज्ञान की प्राप्ति में ज्यादातर खेल उस कला का रहता है जो जाग्रत् भवस्था के स्वप्न , सुषुप्ति आदि अवस्थाओं में बदलने पर हमारे अंदर खिंच जाती है या निष्क्रिय हो जाती है विद्यावानों ने इस कला का नाम " ज्ञानेंद्रिय की धार " या " जीव - चैतन्य धार " रक्खा है यह मालूम होने पर कि दुःख सुख का अनुभव इस धार की मौजूदगी सहायता से ही हुआ करता है , दुःख सुख की अवस्थाओं का रहस्य समझने के लिए यह आवश्यक ठहरता है कि अव्वल इस धार की हकीकत और इसके इजहार की सूरत पूरे तौर पर समझी जावे , जैसे देखो , आग हमेशा हवा की मौजूदगी में जला करती है और ज्योंही हवा हटा ली जाती है या बंद कर दी जाती है तो यह फौरन् युझने लगती है इस लिए जो शल्स आग के जलने का भेद जानना चाहता है उसके वास्ते अव्वल हवा की हकीकत बनावट का समझना लाजिमी है जीव - चैतन्य या ज्ञानेंद्रिय को धार जब मालूम हो जाये कि हवा कैसे किन गैसों से मिल कर बनती है तभी समझ में सकता है कि भाग फैसे बला करती है

      जीव - चैतन्य धार की हकीकत के समझाने और आम लोगों को जो इसके बारे में उलझनें हैं उनको सुलझाने की गरज से हम एक मामूली वाकए की तरफ तबज्जुह दिलाते हैं जरा गौर करके देखना चाहिए कि इससे क्या नतीजा निकलता है खपाल करो कि कोई शास गणित के किसी गहरे सवाल के हल करने में लगा है , कई घंटे बीत जाते हैं , और घड़ी बजती है , लेकिन उस शरस को घंटों के बीतने और घड़ी के बजने की कोई सुधि नहीं होती इस सुधि होने की क्या वजह है ? वजह यह है कि उसकी तबज्जुह या चित्तवृत्ति सवाल के हल करने में मसरूफ होने के कारण और सब तरफों से हटी हुई है और इस हटाव के कारण उसको दूसरी बातों की सुधि नहीं होती अगर इस शख्स की तवज्जुह सवाल को जानिब यकम् होती तो उसको अपने पास पास होने वाली बहुत सी बातों की सुधि अवश्य ही रहती मतलब यह है कि जब हमारी तवज्जुह किसी एक तरफ लग जाती है तो उस तरफ के सिवाय और दूसरी तरफ का हमको मुतलक ज्ञान नहीं होता और जब तवज्जुह यका नहीं होती है तो उस वक्त हमको अपने आस पास होने वाली बहुत सी बातों का ज्ञान रहता है हमारे इस उत्तर की तह में जो भारी सिद्धांत और नियम मौजूद हैं और काम कर रहे हैं वे अभी तक ठीक ठीक तौर पर निश्चित नहीं हुए हैं और ही अभी उनको दूसरी अवस्थाओं पर घटा कर जाँचा गया है और ही विद्यावानों ने उनकी बुनियाद पर कोई आम कायदे कायम किये हैं अलबत्ता इस कदर जरूर मालूम होता है कि इंद्रिय ज्ञान की प्राप्ति की क्रिया हमेशा तवज्जुह रूप ही में होती है यानी जो कुछ भी इंद्रिय - ज्ञान हमको प्राप्त होता है वह सब तवज्जुह ही के द्वारा हाता है और तवज्जुह की कमी वेशी के अनुसार इंद्रिय - ज्ञान में मी कमी पेशी हुआ करती है और तवज्जुह के पूरे तौर पर हट जाने घरत में इसका भी सम्पूर्ण अंग में प्रभाव हो जाता है और जो कि तवज्जुह की कमी बेशी के दर्जे वेशुमार हैं इस लिए हमारे इंद्रिय ज्ञान के भी दर्जे अनेक हैं यह नियम , जो ऊपर बयान हुआ , किसी खास किस्म के इंद्रिय - ज्ञान के लिए मखसूस नहीं है बल्कि सभी प्रकार के इंद्रिय - ज्ञान के ऊपर लगता है यानी पाँचों ज्ञानेंद्रिय द्वारा प्राप्त होने वाला हर किस्म का ज्ञान तवज्जुह ही की मारफ़त हासिल होता है मोटे तौर पर इंद्रिय - ज्ञान की दो किस्में हैं यानी एक तो सुख संबंधी और दूसरे दुःख संबंधी यह बयान होने पर कि सबका सब इंद्रिय - ज्ञान कैसे प्राप्त होता है और तवज्जुह की कमी वेशी से इंद्रिय - ज्ञान में कैसे कमी वेशी हुआ करती है और इंद्रिय - ज्ञान की मोटे तौर पर कितनी किस्में हैं , अब दुःख और सुख की असल हक़ीकत यानी उनके खास खास लक्षण ठीक तौर पर आसानी से समझ में सकते हैं चुनाँचे पहले दुःख की हकीकत का बयान शुरू करते हैं

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