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८ - देह और मन की साधारण क्रियाओं से चेतन - शक्ति का हाल मालूम नहीं हो सकता ।
देखने में आता है कि अगर सुरत या रूह पानी जीवन - शक्ति को , जो तमाम प्राणिपों और वनस्पतियों की जान है , शरीर के किसी हिस्से में बार बार बाकायदा रखाँ किया जावे तो वह हिस्सा मजबूत हो जाता है । मसलन् छोटे बच्चे दूध पिला कर जब चारपाई पर लिटा दिये जाते हैं तो ये अर्से तक रोजाना अपने हाथ पैर मारा करते हैं । हाथ पैर मारने में वे अपनी सुरत को घार हाथ पैरों में बार बार रवाँ करते हैं जिसका नतीजा यह होता है कि उनके हाथ पाँव में अच्छी तरह जान या जाती है । और यह भी देखने में आता है कि अगर बरखिलाफ इसके जिस्म या रगों के किसी हिस्से में सुरत को धार का गुजर कम हो जाये या बिलकुल बंद हो जाये तो जिस्म या रगों का वह हिस्सा सूख जाता है या बेकार हो जाता है । अपने जिस्म को इस तरीके से जान देना सुरत यानी चेतन - शक्ति के लिए कोई अस्वाभाविक क्रिया या वेगार नहीं है , जिसे किसी और ने उसके जिम्मे डाल दिया हो , बल्कि बरखिलाफ इसके सुरत का यह स्वाभाविक धर्म ही है , और जब से यह रचना में भाई है तब से परायर मुल्तलिफ शक्लों में इस धर्म का पालन कर रही है । मनुष्य का शरीर और उसके मुतमल्लिक दसों इद्रियाँ और मन के चारों खवास यानी मन , चित्त , पुद्धि और अहकार , कोई भी बगैर मुनासिब वर्जिश यानी कसरत के न तो ठीक तौर पर जग सकते हैं यानी चेतन हो सकते है , और न ही चुस्त व चालाक रह सकते हैं । वर्जिश पानी कसरत से हमारी मुराद उस किस्म की काररवाइयों से नहीं है जो अखादों या स्कूलों में बच्चों से कराई जाती हैं बल्कि प्रकृति यानी कुदरत के सामान देखने पर जो हिलोरें हमारे मन के अंदर उठती हैं और दौड़ धूप हमसे बन पड़ती है वे , और हमारे मन की बासनाएँ , और हमारी देह की जरूरियात , ये सब सुरत के लिए कुदरती कसरतें हैं जिनकी मदद से हमारा शरीर , मन और बुद्धि वगैरह चेतन हो जाते हैं । इन कसरतों का परिणाम सिर्फ यह होता है कि हमारी सुरत हमारे शरीर और मन के जड़ मसाले में पैवस्त हो जाती है । लेकिन मन और इंद्रियों वगैरह के इस तौर पर चेतन होने से यह सयाल नहीं करना चाहिए कि संग संग हमारी सुरत के जौहर के अंदर भी चेतनता जग रही है । हमारे शरीर का चेतन होना और इंद्रियों मन , बुद्धि वगैरह का जग जाना एक बात है , और सुरत के जौहर का चेतन होना दूसरी बात है । इस से जाहिर है कि साधारण तौर पर जो ज्ञान मनुष्य लेता है और जो कर्म वह करता है उनसे यह पता नहीं चल सकता कि हमारे अंदर की चेतन - शक्ति पानी सुरत की असलियत क्या है , और शरीर में उसका निवास स्थान कहाँ पर है , और शरीर और मन के घाटों पर किस प्रकार से उसका प्रकाश होता है । इन बातों को जानने के लिए हमको जरा गहरा गोता लगाना होगा ।
७ - परम आनंद ।
दुःख और सुख को अवस्थाओं पर , जिनका बयान दफात ५ व ६ में हुआ , गौर करने से स्पष्ट हो जाता है कि जब तक जीव का शरीर और मन से तअल्लुक रहेगा उसको संसार के दुःख सुख का असर जरूर भोगना पड़ेगा । और इस लिए परम आनंद की प्राप्ति और दुःख व क्लेश रो सम्पूर्ण रूप में निवृत्ति सिर्फ ऐसी अवस्था में प्रवेश होने पर मुमकिन होगी कि जिसमें शरीर व मन का लेश न रहते हुए चेतन - शक्ति के निर्मल जौहर का प्रकाश हो ।
क्या परम आनंद की अवस्था मुमकिन भी है और अगर मुमकिन है तो सचमय मौज्द भी है ? और अगर मौजूद है तो किस प्रकार से पानी किस साधन व उपाय की मदद से उसकी प्राप्ति हो सकती है ? इन प्रश्नों का ठीक ठीक उत्तर हासिल करने के लिए , लाजिमी है कि चेतन - शक्ति की हकीकत और उसके नियम निश्चित किये जायें ।
radhasoami
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