Thursday, October 29, 2020

२० - ब्रह्मांडी मन का देश और उसके छः उपभाग ।

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२० - ब्रह्मांडी मन का देश और उसके छः उपभाग ।

 
        मन के स्नयालात और राग द्वेष का हमारे शरीर पर भारी असर पड़ता है यानी हरचंद खयालात और राग द्वेष मन के अंदर व्यापते हैं लेकिन शरीर पर भी उनका भारी प्रभाव पड़ता है । इसके समझाने के लिये हम एक दृष्टांत देते है । सवाल करो कि कोई चिड़चिड़े मिजाज वाला शाम है जो छोटी छोटी पातों पर वक्त बेवव्रत क्रोध में आ जाता है । क्रोधवश होने पर उसके चेहरे की रगें खास तौर पर खिंच जाती हैं कि क्रोध अंग उसके अंदर बार बार प्रकट होता है इस लिए नसें बार बार एक ही तौर पर खिंचती हैं । बार बार खिंचाव होने से चेहरे की नसों का तनाव मुस्तकिल तौर पर कायम हो जाता है ; यहाँ तक कि उसकी मौलाद के अंदर भी वह अंग पहुँच जाता है । इस दृष्टांत की बुनियाद पर कहा जा सकता है कि मनुष्य के मन के अंदर जो भाव प्रबल होता है उसका अक्स उसके शरीर पर जाहिर हुआ करता है और उसके बीज की मारफत ऐसे भाव उसकी नसल के अंदर प्रवेश कर जाते हैं । लेकिन अगर यह उसूल मनुष्य के अंशरूप मन व सुरत के घाटों पर थोड़ी देर ब्यापने वाली अवस्थाओं की निसबत दुरुस्त है तो पालमे कबीर के घाटों और मन व सुरत के सब केंद्रों की निसयत भी दुरुस्त होना चाहिए । इस लिए इस उपल से और मनुष्य शरीर की निसवत जो भेद पीछे दरपात हुआ उसकी रू से नतीजा निकलता है कि पालमे कबीर में मनुष्य शरीर के छः चक्रों के मुताविक छः स्थान मौजूद हैं और उनके परे मुरत के भंडार से मिला हुआ प्रमांटी मन का एक भारी देश है , जिसमें मनुष्प शरीर के अंदर निवासी अंशरूप मन के स्थानों के मुवाफिक छः स्थान कायम हैं ।

      संतमत में ब्रह्मांडी मन के इस देश को ब्रह्मांड कहते हैं , जिसके लफ़्जी मानी ब्रह्म यानी ब्रह्मांडी मन का अंडाकार देश है । इस ब्रह्मांड देश में परब्रह्मपद ( अझ से परे का मंडल ) भी शामिल है । बगैर इस पद के शामिल किये ब्रह्मांड के छः उपभाग पूरे नहीं होते और ऐसी सूरत में मनुष्य - शरीर के छः चक्रों और ब्रह्मांड के स्थानों में ( जिनकी कि छ : चक्र छाया है ) पूरी मुतायिकत नहीं होती । 

     दफा १८ में यह बयान हुआ था कि मनुष्य - शरीर का छठा चक्र सुरत की बैठक का स्थान है और पाँचवें चक्र में सूक्ष्म प्राण का और चौथे चक्र में मन का निवास है । इन मुकामों पर और नीज़ बाकी ' के और चक्रों के मुक्कामों पर जो रगों के केंद्र ( Nerve Centres ) दिखलाई देते हैं वे सब स्थूल मसाले से बने हैं लेकिन शक्ति के केंद्र ( Force Centres ) , जो उन चक्रों के मुतअल्लिक हैं , निहायत सूक्ष्म हैं और उनका रचना यानी पालमे कबीर के अंदर अपने संबंधी सूक्ष्म मंडलों से बरावर तअल्लुक यानी मेल रहता है और यह भी देखने में आता है कि इन रगों के केंद्रों में सुरत की ताकत मन के पर्दे की मारफत आती है क्योंकि चौथे चक्र की ( जोकि मन की बैठक का स्थान है ) क्रिया बंद होने पर तमाम शरीर की काररवाई मुलतवी हो जाती है । इससे जाहिर है कि छः चक्रों की कारवाई सुरत और मन दोनों मिलकर करते हैं और ब्रह्मांड के छः उपभागों का भी यही हाल है । इस बयान की रू से ब्रह्मांड देश में अमांडी मन से मिला हुआ कोई भारी सुरत का केंद्र होना चाहिए जिसकी मदद से ब्रह्मांडी मन ब्रह्मांड की संभाल करता है । वैदिक धर्म या वेदांत - फिलॉसफी को इस केंद्र की निसचत इसके वजूद की हस्ती के सिवाय और कुछ तहकीक मालूम नहीं है । चुनाँचे इसने " नेति " ," नेति " यानी “ यह नहीं है " , " यह नहीं है " कह कर ही इसकी तरफ इशारा किया है । संतमत में इसी को परब्रह्मपद कहते हैं मगर मालूम हो कि यह पद ब्रह्म से ऐसा ही अलहदा है जैसा कि हमारी मुरत का केंद्र हमारे मन से मलहदा है और इन दोनों का आपस में संबंध भी उसी तरह पर है जैसा कि हमारी सुरत का हमारे मन के साथ है । एतराज किया जा सकता है कि जब इन दोनों ( ब्रह्म और परब्रह्म ) पदों को अलग अलग कहा जाता है तो इनमें बाहमी संबंध कैसे हो सकता है । जवाब में हम पूछते हैं कि दुनिया को हर चीज़ के अंदर तीन नापों में वाहमो तफावत व मेल दोनों मौजूद है या नहीं ? मसलन् मोटाई का नाप और चौड़ाई का नाप दोनों अलग अलग चीजें हैं लेकिन मोटाई और चौड़ाई दोनों हमेशा इकट्ठी हो देखने में आती हैं यानी जहाँ पर मोटाई है वहाँ चौड़ाई भी है और जहाँ पर चौड़ाई है !!



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