सतसंग का महत्व तथा असली मानी सत्तपुरुष का संग
सतसंग के असली मानी सत्तपुरुष का संग है । इसलिए जहाँ कहीं पर सच्चे संत जो अवतार सत्तपुरुष का हैं विराजमान हों या फिर उनके निज सतसंगी जो जेर निगरानी उनके प्रेम और सचौटी के साथ अभ्यास करते हों व सच्चे मालिक का निर्णय व कीर्तन और उससे मिलने के सच्चे रास्ते और जुगत का बयान करें उस संगत का नाम असल सतसंग है ।
2. कबीर साहब ने फ़रमाया है-
मैं तो आन पड़ी चोरन के नगर सतसंग बिना जिया तरसे ।
इस सतसंग में लाभ बहुत है तुरत मिलावे गुरु से ।
मूरख जन कोई सार न जाने सतसंग में अमृत बरसे ।
शब्द सा हीरा पटक हाथ से मुट्ठी भरी है कंकर से ।
कहें कबीर सुनो भाई साधो सुरत करो वाहि घर से ।
3. ऐसे संग साथ में हाजिर रह कर इन्सान सहज में अपने मन की तमाम शंकाएँ दूर कर सकता है और चित्त की किसी क़दर सफाई व निश्चलता हासिल करके सहूलियत के साथ इस संसार सागर से तरने व कुल मालिक से मिलने की युक्ति की कमाई कर सकता है ।
4. अगर वाक़ई कहीं पर सच्चे साध संत मौजूद हैं तो उनके रोम रोम से पवित्र चेतनता की धार निकलती होगी । मामूली इंसान से जो धारें निकलती हैं वह मलीन होती हैं , क्योंकि उसका हृदय मलीन है और उसमें बिकारी अंग प्रबल है । मगर साध संत का हृदय निहायत पवित्र होने के अलावा उनकी सुरत निहायत चेतन है और सत्तपुरुष से जो महा विशेष चेतन के भंडार हैं से मेल कर रही है , इसलिए उनके शरीर से जो " औरा ' निकला होगा उसकी पवित्रता का क्या अंदाजा हो सकता है । पस ऐसे महापुरुष के " औरा ' की धार ही में स्नान करते रहने से सहज में बिकारी अंगों का मर्दन हो सकता है ।
5. अगर गौर से देखा जाये तो मन की यह आदत है कि या तो परमार्थ से सोना चाहता है यानी थक थका के इधर उधर का बहाना पेश करके गाफ़िल ( बेखबर ) होना चाहता है या फिर जोश व खरोश ( अधिक आवेश ) में भरकर दौड़ धूप करना चाहता है । जाहिर है कि दोनों हालत में परमार्थ का नुक़सान मुतसविर ( ख्याल किया जाता ) है । इसलिए निहायत जरूरी है कि हर एक अनुरागी भक्त जन इन विघ्नों से बचने की फ़िक्र करे । सहज युक्ति इनसे बचने की सिर्फ़ सतसंग है । वहाँ पर हाजिरी देने और वहाँ की बातचीत सुनने से मन पर इस किस्म की चोट व रोक लगती रहेगी जिसकी वजह से यह न तो सोने ही पावेगा और न बहने ही पावेगा और सहज में मध्य की चाल जो सच्चे परमार्थ में निहायत ज़रूरी है चलता रहेगा । मन को भड़काने और संसार में बहाने वाले बहुत हैं और संसार के भोग बिलास या मान बड़ाई में उलझा कर सच्चे परमार्थ से गाफ़िल करा देने वाले भी बहुत हैं , मगर इसको जगाकर मध्य की चाल चलाना बगैर सुरतवंत पुरुष के , यानी जिसकी सुरत यानी रूह जगी है और जो खुद अपने मन पर पूरा काबू किए हुए हैं , किसी से हरगिज़ हरगिज मुमकिन नहीं है ।
।। राधास्वामी दयाल की दया ।।
🙏 ।। राधास्वामी सहाय ।। 🙏
🙏🏻🌹।।राधास्वामी ।।🌹🙏🏻
radhasoami
ReplyDeleteRadhasoami
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