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43 - कामिल पुरुषों और अवतारों में फर्क ।
आपर की दकात में अमित पुरषों की ताकतों पर अगाइयों का शिक ते हुए , जो बयान अवतारों और पैगम्बरों के मोजडों व प्रेरमामूली चमत्कारों का हुआ है उसमे श्रम हो सकता है कि अनिल पुरुषों और अवतारों वगैरह में कोई फर्क नहीं होता , लेकिन यह मही नहीं है । हार्षद अंत में यानी मायुन्यगति हामिल होने पर शामिल पुरुष के अंदर जिस स्थान तक उसने रमाई हामिल की है . यहाँ के अवतार या पैग़म्बर की मी धीव धीब ममी गलियों का जाती लेकिन उन पुरुषों में और अवतारों व पैगम्बरों में बड़ा कर्क रहता है । मोटे तौर पर यह फर्क होता है कि अवतार या पैगम्बर के अंदर दो ऊँचे दर्जे की शक्तियाँ जन्म ही में मौजूद रहती है और पहुँचे हर पुरुष के अंदर वे शक्तियाँ सावन करके ऊँचे स्थानों में रमाई होने व जागती हैं ।
44 - अवतार ।
अवतारों की निमवत जो एक मारी गलतहमी लोगों में चल रही है उसको यहाँ पर दूर कर देना नामुनामिव न होगा यानी यह खयाल किया जाता है कि जब ईसान एक महद चीत है तो यह पर्वत काना निहायत लगव यानी असंगत या कम मत कम ईदुल्न ( लोकमतविरुद्ध ) यरता है कि कोई ऐसा बनी , जिसके अंदर लामहद या भारी शक्तियाँ मौजूद हैं , अपनेतई मनुष्य - शरीर के कूजे में बंद करेगा लेकिन नीचे की दलीलों पर गौर करने से इस खयाल की ग़लती साबित हो जावेगी । यह बयान हो चुका है कि जिस वक्त किसी कामिल पुरुष की सुरत मौत के मुकाम से गुजरकर ब्रह्मांडी मन के स्थानों या निर्मल चेतन मंडलों में ( जैसी सूरत हो ) प्रवेश करती है उस वक्त उसकी चेतनता का आभास ही उसके शरीर की मामूली क्रियाओं के अंजाम देने के लिए काफी होता है और सुरत की धारों का शरीर के साथ तअल्लुक कायम रहने की वजह से उसकी रूहानी गति यानी अंदरूनी चाल में कोई हर्ज वाक्कै नहीं होता । अब अगर कामिल पुरुषों की निसबत इस तरह का खयाल दुरुस्त हो सकता है तो अवतारों की निसवत यह और भी ज्यादा मजबूती के साथ सही होना चाहिए । चुनाँचे धनी तो अपने धाम में रहता हुआ अपने धाम की सँभाल बदस्तूर करता रहता है लेकिन सीधी उससे निकली हुई किरनियाँ मनुष्य - रूप धारण कर लेती हैं और इसी को धनी का अवतार धारण करना कहते हैं । यह अवतारस्वरूप धनी की खास प्रेरणा से इस किस्म की काररवाइयाँ अमल में लाता है जिनसे अवतार धारण करने की ग़रज सरंजाम पाये । जैसे बाज दरियाओं के उस हिस्से में , जो समुद्र से मिला होता है और जिसमें ज्वार का पानी आया करता है , ज्वारभाटा आने पर समुद्र से पानी आता और जाता है , हरचंद पानी का आना जाना दरिया ही के अंदर हुआ करता है लेकिन ये दोनों क्रियाएँ ज्वारभाटे की हिलोर का ही अंग होती हैं और समुद्र तो जहाँ का तहाँ ही बना रहता है लेकिन उसकी हिलोरें दरिया में ज्वारभाटे के पानी के आने जाने का इंतजाम किया करती हैं ।
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