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४१ - पैग़म्बरों और अवतारों के लिये मुसीबतों का सामना ।
चेतन शक्ति के स्वाभाविक नियम यानी जाती उमूल के विरुद्ध होने की वजह से मोजजों का इजहार साधारण मनुष्य - गति के घाट पर , जो भोग विलास की वासनाओं से सना हुआ है , नहीं हो सकता था । यही वजह है कि जब जब पैगम्बरों और अवतारों ने मजबूर होकर संसारी जरूरतों के पूरा करने के निमिन अपनी रौब की शक्तियों का इस्तेमाल किया तब तब उनको मुसीबतों का सामना करना पड़ा । उन्होंने अविश्वासियों को विश्वास दिलाने के लिए भी सास कर साधारण तरीकों ही का इस्तेमाल किया यानी दलील अली व उपदेश व पाचरण की शुद्धि ही की मारफत अपने आशय या मत का प्रचार किया और मौजजात से बहुत ही कम काम लिया ।
४२ - परचे ।
मोजजों के अलावा अलबत्ता एक और तरीका है जो ऐन कुदरती है और जिसकी मारफत उन महापुरुषों ने भक्तों और शिष्यों पर अपनी असाधारण शक्तियों का इजहार किया । हमारा मतलब उन बार बार बाके होने वाले इत्तिफाकात यानी आकस्मिक घटनाओं से है जिनका कारण मामूली तौर पर मनुष्य के खयाल में नहीं आता और जिनके जैल में निहायत गैरमामूली नतीजे जहूर में आया करते हैं और ऐसी सूरतें पैदा हो जाती हैं कि जिनकी निसबत पहले से किसी को शान व गुमान भी नहीं हो सकता । मालूम हो कि ये इत्तिफाकात या आकस्मिक घटनाएँ , जैसा कि आम तौर पर खयाल किया जाता है , बेउसूल यानी येठिकाने यातें नहीं होतीं बल्कि जैसा कि हम आगे चल कर दिखलायेंगे ये भी कुदरती यानो नियमानुसार होने वाली बातों की तरह खास कायदों के मुताबिक ही जहूर में आती हैं और जोकि भाम तौर पर रोजाना जिंदगी में इनके कायदों का इस्तेमाल जारी है इस लिये इनके अमल में लाने से ऊँचे दर्जे के किसी कायदे या नियम का उल्लंघन नहीं होता और इसी वजह से सच्चे साध , संत , महात्मा अपने शिष्यों को खास कर परमार्थी नफा पहुँचाने की गरज से इनके कायदों का जब तब इस्तेमाल करते हैं । चुनाँचे शिष्यों की ऐसी मुश्किलें और कठिनाइयाँ , जिनको ये निहायत दुश्वार या अपने बस से बाहर की समझते हैं , साधना के जमाने में अक्सर औकात अचानक गायब हो जाती हैं और उस वक्त इस किस्म की आकस्मिक बातें जहूर में आती हैं कि जिनके अंदर उनको गुरु महाराज की दया का हाथ साफ नजराई देता है । इस किस्म के परचे बार बार मिलने से शिष्यों के दिल से गुरु महाराज की असाधारण शक्तियों की निसबत सब शंकाएँ दूर हो जाती हैं और शुकरगुजारी का अंग लिये हुए सच्चा विश्वास उनके चरणों में कायम हो जाता है । मालूम होवे कि इस किस्म की दया सिर्फ तभी होती है जब शिप्प की सुरत की चढ़ाई के सिलसिले में कोई मुश्किलें या कठिनाइयाँ वाकै हों और सच्चे परमार्थ की रीति के विरुद्ध यानी खिलाफ संसारी वासनाओं के पूरा करने के लिए हरगिज़ नहीं होती । अगर कोई इस किस्म की संसारी दिक्कत पेश आ रही है कि जिससे शिष्य के लिए अभ्यास का बनना नामुमकिन हो रहा है तो वह हटा दी जाती है या हलकी कर दी जाती है लेकिन स्वार्थ से मुतमल्लिक निरी संसारी वासनामों के पूरा करने के लिए कोई सहायता नहीं दी जाती ।
फारसी ज़बान में किसी महात्मा ने कहा है :-
" तालिबाने दुनिया मकहूर अंद , तालिबाने उकया मज़दूर अंद , तालिबाने मौला मसरूर अंद ।
" यानी दुनिया के चाहने वाले मालिक के कहर या नाराजगी के भागी होते हैं और मरने के बाद बहिश्त वगैरह के चाहने वाले मजदूर होते हैं और सच्चे मालिक के चाहने वाले परम आनंद के भागी होते हैं ।
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