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३८ - मोजजे या करामात ।
पश्तर इसके कि ऊपर के सवाल का जवाब देने की कोशिश की जावे हम मुनासिब समझते हैं कि मुख्तलिफ अवतारों और पैगम्बरों वगैरह की निसबत जो मोजजे बयान किये जाते हैं उन पर सरसरी नजर डाली जावे । मसलन् रामचन्द्र महाराज , श्रीकृष्ण , गौतम बुद्ध , हजरत मसीह और हजरत मुहम्मद वगैरह की निसबत बहुत सी ऐसी करामात बयान की जाती हैं जिनसे साफ जाहिर होता है कि उनके अंदर असाधारण यानी रौर मामूली शक्तियाँ मौजूद थीं । अगर इन सब करामात के अंदर बाहम मुशावहत रखने वाले नुक्तं या लक्षण तलाश किये जायें तो मालूम होगा कि कष्ट का निवारण करना या शरणागत भक्तों की रक्षा करना या अविश्वासी मनुष्यों को विश्वास दिलाना या उनका पराजय करना वगैरह ही ऐसी बातें हैं कि जो अक्सर करामात के अंदर यकसा देखने में आती हैं लेकिन किसी तरह की बाकायदगी या किसी खास उसूल की पाबंदी इन करामात के सिलसिले में मालूम नहीं होती यानी ऐसा नहीं है कि लगातार या किसी खास उसूल या नियम की पाबंदी में ये करामात दिखलाई गई बल्कि यही देखा जाता है कि सिर्फ खास मौकों पर इनका इजहार किया गया और हमेशा और हर वक़्त इनसे काम ले कर ऊपर वयान को हुई अशराज हासिल नहीं की गईं । घरअक्स इसके अक्सर मरतबा हजरत मसीह व पैग़म्बर साहब व अवतारों ने खुद अपनी और अपने भक्तों की हार और अविश्वासी लोगों की जीत होने दी । इससे जाहिर होता है कि रक्षा करने , दुःख दर्द हटाने या काम काज में कामयाबी हासिल करने के लिये मोजते या करामात रोजाना इस्तेमाल के जरिये नहीं हो सकते । यह नतीजा हमारे लिये बड़े काम का है क्योंकि इसमे हमको दफा ३७ के अखीर में जो सवाल उठाया गया था उसका जवाब मिल जाता है और नीश हम इस काबिल हो जाते हैं कि बतौर तमाशा के जो लोग गैरमामूली शक्तियाँ दिखलाया करते हैं उनकी असल हकीकत बयान कर सकें ।
३६ - आध्यात्मिक शक्तियों के इस्तेमाल के कायदे ।
यह बयान कर चुके हैं कि चेतन शक्ति में बमुकाबिले दूसरी शक्तियों के बड़ा फर्क यह है कि चेतन शक्ति के अंदर सत्ता , चेतनता और मानंद खवास मौजूद हैं और यह भी जाहिर कर चुके हैं कि चेतन शक्ति का सोतपोत और भंडार , जिसको सच्चा कुल मालिक कहते हैं , परम सत्ता , परम चेतनता और परम आनंद का अपार सिंधु है । कुल मालिक में ये खवास मानने पर भाप से आप मानना पड़ता है कि जो कुछ उसने किया है , जो कुछ बह कर रहा है और जो कुछ वह करेगा उस सब के अंदर माला से माला दर्जे की दानिशमंदी मौजूद होगी और उस सबमें मंशा सिवाय सब पर दया करने के दूसरी कुछ नहीं हो सकती । उसके कानून या नियम भी , जो वर्तमान , भूत और भविप्प तीनों कालों पर लगते हैं और जिनके दायरे से उस नियंता या सच्चे मालिक के सर्वज्ञ होने के कारण कोई भी बात चाहर नहीं रह सकती , बिलकुल मुकम्मल या निदोष हैं और इंसान के बनाये हुए कायदे कानून के मुवाफिक उनमें रह व बदल या इधर उधर होने के लिये कोई गुंजाइश नहीं है । इस लिये पहुँचा हुआ पुरुष , जो कुल मालिक के इन कायदों से वाकिफ हो गया है या जो किसी हद तक इनको अपने इस्तेमाल में लाता है , लालिमी तौर । उनका पालन करने वाला होना चाहिए , न कि भंग करने वाला । यहाँ पर यानी इस मलिन माया देश में चेतन शक्ति का जो व्यवहार है अगर उस पर खपाल किया जाये तो मालूम होगा कि चेतन शक्ति सदा पोशीदा यानी लिपी हुई रहती है , यहाँ तक कि इंसान को माला से पाला दर्जे की बुद्धि को भी अपने अंदर मौजूद चेतन शक्ति की क्रियाओं का कुछ पता नहीं है । चेतन शक्ति के केंद्र यानी सुरत से निकल कर जो चेतन घारे जानदारों के अंदर मुसलिफ घाटों पर पहुँचती हैं उन्हीं की मारफत इन पार्टी के खवास चेतन होते हैं और इंसान को संसार का किसी कदर तजरुवा और शान हासिल होता है जिसके सहारे दुनिया का रोजाना काम चलता है । यह चेतनता , जो जानदारों के अंदर इस तरीके से सुरत की धारों की मारफत जागती है , प्रकृति की जड़ शक्तियों के भेदों में किसी हद तक गोता लगाने की भी ताकत रखती है और इसी के जरिये से इंसान नई नई मालूमात व ईजादें करता है जिनसे मनुष्य - जाति के मुख व आराम में तरक्की होती है और जिनको देख कर आम लोगों की आँखें खुलती हैं । मालूम होवे कि इन सब बातों को , जो साधारण चेतनता से ताल्लुक रखती हैं , चेतन शक्ति को धारें खुद गुप्त रह कर जाहिर करती हैं और इनका इजहार करते हुए धारों का रुस परावर अंतर्मख बना रहता है । इनके अलावा जो रीरमामूली हालते चेतनता की होती हैं , जैसे सक्ते या हिप्नॉटिग्म की हालत , जिनमें अंतरी प्रकाश और चेतन शक्ति का कोई असाधारण अंग कभी कभी जाहिर होता है , उनके दौरान में मामूल पानी वह शख्स , जिस पर हिप्नॉटिएम की नींद या सक्ते की हालत तारी है , बेहोश रहता है और उसका अपने ऊपर कोई कायू नहीं रहता और उसकी सब काररवाई या तो ामिल यानी हिप्नॉटिम करने वाले की मर्जी के मुताविक हुमा करती है या ठिकाने होती है । अलावा इसके यह भी होता है कि बहुत सी बातें, मूल इन हालतों में पान करता है , गलत साबित होती हैं , जिससे जाहिर होता है कि इन गैरमामूली हालतों में जागने वाली असाधारण शक्तियाँ बहुत ही कम पैमाने पर दुनियवी अगराज हासिल करने के लिये इस्तेमाल हो सकती हैं ।
ऊपर के बयान से सिद्ध होता है कि अंतरी चेतनता या रूहानी ताकतें ऐसे स्थूल संसारी कामों के सरंजाम देने के लिये नहीं हैं जो प्रकृति की शक्तियों की मारफत किये जा सकते हैं बल्कि इनके जिम्मे कुदरत के इंतजाम में कोई और ही सेवाएँ रखी गई है । इसके साथ साथ यह भी दरयाफ़्त होता है कि गुप्त रूहानी ताकतें सिर्फ उन्हीं हालतों में जागती हैं और इस्तेमाल में पाती है जब शरीर की क्रियाएँ पूरे तौर पर और मन की क्रियाएँ किसी हद्द तक बंद या शिथिल हो जावें और इनके इस्तेमाल करने वाले की मर्जी किसी दूसरे की मर्जी के अधीन हो जाये । अब अगर इन दोनों बातों को कामिल पुरुपों पर घटा कर देखा जाये तो नतीजा निकलता है कि किसी ऊँचे मंडल या लोक में रसाई और ऊँचे दर्जे की रूहानी शक्तियाँ हासिल करने के लिये उनके वास्ते यह एक लाजिमी शर्त होनी चाहिए कि वे अपनी मर्जी को उस स्थान के धनी की मर्जी के कतई अधीन करें और ऐसी सूरत में दूसरा नतीजा यह निकलता है कि कामिल पुरुष उन सब कायदों को पूरी पाबंदी करें जिन पर धनी अपने स्थान में खुद कारबंद है और धनी की ताकतों के प्रकट करने की गरज से जो कुछ वे करें उसके लिये घनी की माज्ञा होनी चाहिए । कामिल पुरुषों के लिये यह इजाजत नहीं है कि अपनी मर्जी और खुशी के मुताबिक जब चाहें उन कायदों को तोड़ कर स्वार्थी जरूरतों के पूरा करने के लिये ऊँचे दर्जे की शक्तियों को इस्तेमाल में लायें ।
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