Monday, November 16, 2020

४७ - परमार्थ का सब ज्ञान पैग़म्बरों और अवतारों द्वारा प्रकट हुआ

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४७ - परमार्थ का सब ज्ञान पैग़म्बरों और अवतारों द्वारा प्रकट हुआ ।


       जिस तरह मुतलिफ वक़्तों पर मुख़्तलिफ संस्कारी सुरतें संसार में आती हैं और इल्म व फन का प्रकाश करती हैं इसी तरह मुनासिब वक़्तों पर पैग़म्बर और अवतार भी तशरीफ लाते हैं और समयानुसार जीवों को परमार्थी फैज फायदा पहुँचाते हैं । वे उस वक़्त अपने निज धा का यानी जहाँ से वे आते हैं भेद प्रकट फरमाते हैं और सब जीवों उपदेश उस साधन की कमाई का करते हैं जिससे जीव उनके निजधान में रसाई हासिल कर सकें । जिस जमाने में जीव सीधे सादे और श्रद्धावान् थे , महापुरुषों का स्वच्छ जीवन और पाक रहनी गहनी इस काबिल थी कि जिसको देखकर जीवों के हृदय में उनका उपदेश जगह कर लेता था , जुनाँचे जो अंतरी भेद यानी साधन की युक्तियाँ उन्होंने बयान की , उनको लोगों ने पिला किसी हुज्जत व शक के अंगीकार कर लिया और उनकी कमाई करके परमार्थी यानी रूहानी लाभ भी उठाया । साधन की कमाई में , चाहे वह किसी दर्जे की हो , वे सब रुकावटें और मुरिकलें , जिनका हम आगे जिक्र करेंगे , जीवों को हमेशा पेश आती रहीं , इस वक़्त भी आती हैं और आईदा भी आती रहेंगी । सच्चे गुरु की मदद से , जो हर सच्चे मत या मजहब के शुरू में हमेशा अवतार या पैगम्बर हुए . और उनके बाद अगर किसी गुरुमुख ने ( यानी ऐसे शिष्य ने जिसने उनके सतसंग में रहकर युक्ति की कमाई पूरे तौर पर कर ली थी ) उनकी रूहानी कारवाई जारी रक्खी तो उसकी सहायता से , उन मुश्किलों को जीतना कोई कठिन काम न था लेकिन जब इस किस्म के महापुरुष नाद ( दुर्लम ) हो गये तो उनकी संगतों में सिर्फ जाहिरी रस्मियात का ब्रजालाना बाकी रह गया और अंतर में तरक्की करना करीब करीब बंद हो गया । माधन की कमाई से हमारा मतलय यहाँ पर अंतर में स्वप्न , सुपुति , सके और मौत की हालतों से गुजर कर ऊँचे मंडलों में चदाई से है । इस अंतरी चढ़ाई में हर नई मंजिल पर अभ्यासी के निचली मंजिल वाले मन , बुद्धि वगैरह लय हो जाते हैं और वहाँ की ये शक्तियाँ जगाने यानी चेतन करने के लिये उसको किसी सद्दायक यानी मददगार पुरुष की वैसी ही जरूरत है जैसी कि नन्हे बच्चे को यहाँ पर परवरिश पाने के लिये माता की जरूरत होती है ।


४८ - तहकीकात के लिये नये शौक का जागना ।


       इसमें शुबह नहीं कि पिछले वक़्तों में अवतार और पैग़म्बर अंतरी रोशनी की मदद से अपने प्रकट किये हुए भेद को दलीलों के जरिये पाये मुबूत तक पहुँचा सकते थे लेकिन वह जमाना इसके लिये तैयार न था , इस वजह से उन्होंने जीवों को विश्वास दिलाने की खातिर अंतरी रास्ते व स्थानों का भेद बयान करने के अलावा और कोई कोशिश नहीं की । आज कल के जमाने में बड़े जोर के साथ हवा बदल रही है और संसार भर की यही माँग है कि हर बात अमली जामे में और ठीक ठीक नाप य तौल के साथ बयान होनी चाहिए . और हर मुमामले के सुबूत के लिये , चाहे वह परमार्थी हो या स्वार्थी , अकली दलीलें पेश होनी चाहिए । मालूम हो कि लोगों की इस किस्म की माँग य चाह परमार्थी जिज्ञासा की रीति के विरुद्ध नहीं है पल्कि बरखिलाफ इसके इस चाह की वजह से अंतरी भेद ऐसी शक्ल में पेश किया जा सकेगा कि जिसको समझ कर मनुष्यों के शुबहे हमेशा के लिये दूर हो जायेंगे और वाजह हो कि आम लोगों के मन ने यह ढंग योंही यानी महज़ इत्तिफाक से इख्तियार नहीं कर लिया है बल्कि दरअसल यह नतीजा उनके उस दिली शौक का है जो उनके अंदर सदास्थायी लाभ के दिलाने वाले सब से ऊँचे भेद के जानने के लिये मौजूद है ।



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