Wednesday, November 18, 2020

५१ – जीवोद्धार

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५१जीवोद्धार



      चूंकि किसी भी चीज का इल्म उस के साध चेतन धार का तअल्लुक कायम होने ही पर प्राप्त होता है इस लिये किसी धनी के जौहर और उसके धाम की रचना का हाल या तो खुद उसी को मालूम हो सकता है या उससे ऊपर के मुकाम के धनी को हो सकता है इसी वजह से जब किसी धनी को जरूरी और मुनासिब मालूम होता है कि अपने से नीचे स्थानों के वासियों को अपने धाम में वास देवे तो उस धाम का भेद बतलाने और उसमें पहुँचने की युक्ति सिखलाने के लिये अब्बल उसको खुद अवतार धारण करना पड़ता है लेकिन इस किस्म के अवतार कम होते हैं और जब उनकी आमद होती है तो निहायत गुप्त से गुप्त भेद प्रकट कर दिये जाते हैं और जो जीव उनके चरणों में लगते हैं वे अंतर में जल्द भारी तरक्की हासिल करते हैं ऐसे अवतार के चोला छोड़ने पर जीवोद्धार की कारवाई उनका गुरुमुख जारी रखता है और जिस दर्जे की रसाई गुरुमुख ने हासिल की है उसी दर्जे का फैज फायदा उसकी मारफत जीवों को पहुँचता है अगर गुरुमुख की रसाई अब्बल दर्जे की है यानी उसने धनी के जौहर के साथ सायुज्यगति हासिल कर ली है तो उस हालत में साधन करने वालों को उसकी मारफत अवतार स्वरूप के समान ही फैज फायदा प्राप्त होता है


५२ - अवतारों की आमद से पहले तैयारी 

     कभी कभी यह मुनासिब होता है कि किसी धनी के अवतार धारण करने से कुछ पहले बतौर रास्ता तैयार करने के धनी का जुवी भेद यपान कर दिया जाये और इसके लिये धनी के जौहर से उत्पन किसी सुरत को , जिसको उसका निज पुत्र या उसके धाम की सुरत कहना चाहिए , बल देकर इस लोक में उतारा जाता है वाजंह हो कि सिर्फ रचना के दूसरे दर्जे यानी ब्रह्मांड देश का मैद संसार में इस तरीके से प्रकट किया गया है बल्कि निर्मल चेतन देश के स्थानों का भी भेद इसी कायदे से प्रकट हुआ है और संत यानी ऐसे कामिल पुरुप , जिनको निर्मल चेतन देश में सालोक्य , सामीप्य , सारूप्य या सायुज्य गति हासिल थी और जो उस देश के मुख़्तलिफ स्थानों के धनियों के अंश यानी निज पुत्र थे , इस सिलसिले में संसार में पाये और शुरूआत कबीर साहब की तशरीफ पावरी से हुई उनके याज शब्दों से निहायत साफ तौर पर जाहिर होता है कि वे उस सब से ऊँचे धाम से तशरीफ लाये थे जो अलख और अगम के परे है और जिसको राधास्वामी - धाम कहते हैं कबीर साहय सच्चे कुल मालिक राधास्वामी के निज पुत्र थे और वे अपने सच्चे परम पिता के जलीलुल्कदर फरमान संसार में पहुँचाने की गरज से बतौर पेशवेमा के तशरीफ लाये चुनाँचे उन्होंने इशारे में नीचे लिखी हुई कड़ी के अंदर इन बातों का जिक्र किया है :-


कहें कबीर हम धुरघर के भेदो लाये हुकुम हुजूरी "

       यानी कबीर साहब , जो धुरघर यानी सब से ऊँची मंजिल के भेद के वाकिफ हैं , कहते हैं कि वे हुजूर यानी सच्चे मालिक के फरमान लेकर आये हैं


     कबीर साहब के पीछे मास्तलिफ बों के बाद दूसरे संत संसार में तशरीफ लाये , जैसे गुरू नानक साहब , जगजीवन साहब , पलटुदास , तुलसी साहब हाथरस वाले ( इनको और कवि तुलसीदास जो को , जो रामायण के रचयिता थे , एक नहीं समझना चाहिए ) इनके अलावा और भी कई एक महापुरुष , जो उनसे थोड़ा नीचा दर्जा रखते थे , संसार में प्रकट हुए , जैसे गरीबदास जी , दूलमदास जी , चरनदास जी , नाभा जी , दरिया साहब , रैदास जी , सूरदास जी , शम्सतप्रेज , मंबर , सरमद , मुईनुद्दीन चिरती वगैरह



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