Thursday, November 19, 2020

५३ - सब संतों का उपदेश समान है

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५३ - सब संतों का उपदेश समान है




     अंतरी साधन की कमाई के मुतअल्लिक जो कलाम और हिदायतें सब संतों और कामिल पुरुषों ने फरमाई वे सब एक समान हैं चुनाचे सभी ने महिमा जरूरत सत्तनाम, सतगुरु और सतसंग की वर्णन की है सतनाम के मानी सच्चा नाम है और मंशा यह है कि सच्चे यानी चेतन नाम का अंतर में श्रवण या उच्चारण किया जाये सतगुरु के मानी सच्चा गुरू है जिससे मुराद ऐसे कामिल पुरुष से है जिसको निर्मल चेतन देश तक रसाई हासिल है और जो अपने शिष्य को उस देश तक ले जा सकता है गुरू नानक साहब ने सच्चे गुरू की पहचान की निसबत फरमाया है:-

" घर महि घर दिखाय दे सो सत्गुरु पुरुष सुजान

पंच शब्द धुनकार धुन तह बाजै शब्द निशान "


     यानी जो कामिल पुरुष घर के अंदर घर दिखला सकता है वही वाकिफकार सच्चा गुरू है। पाँच अलहदा अलहदा स्थानों से पाँच अलहदा अलहदा शब्दों की झंकारें उठ रही हैं

    सतसंग के मानी सच्चे संग या सोहबत के हैं और चूंकि सतगुरु जगत में निर्मल चेतन जौहर के , जो अविनाशी होने के कारण असली सत्य बस्तु है , जीते जागते स्वरूप होते हैं इस लिये उनकी सोहबत में उठना बैठना बाहरी सतसंग कहलाता है और अंतर में चेतन धार का संग अंतरी सतसंग कहलाता है , जिसमें अंतरी चेतन शब्दों को सुनना होता है या अंतर में चेतन नामों का उच्चारण करना होता है अलावा इसके चूंकि सतगुरु को अपने शिष्यों के चेतन घाटों में रसाई हासिल रहती है इस लिये उनके बिला माँगे या प्रेम श्रद्धा से सतगुरु स्वरूप का चितवन करने पर या उनकी दया मेहर की मन में याद करने पर अगर उनके दर्शन अंतर में प्राप्त हों तो यह भी अंतरी सतसंग कहलाता है

५४ - राधास्वामी दयाल की तशरीफ़आवरी


    जब उन संतों भौर कामिल पुरुषों ने , जिनका पीछे जिक्र हुमा , जीवों के उद्धार के सिलसिले में कदम आगे बढ़ाने के लिये जमीन को तैयार कर दिया तब सबसे ऊँचे चेतन धाम के धनी यानी हुजूर राधास्वामी दयाल ने अवतार धारण फरमाया आपके तशरीफ लाने पर संतों के मत के उगल और उसकी शिक्षाएँ और साधन की युक्तियाँ , जो पहले से जाहिर हो चुकी थीं , निहायत सादी शक्ल में प्रकट की गई और अभ्यास ऐसा आसान कर दिया गया कि हर एक इंसान - पुरुष हो या स्त्री , बूढ़ा हो या जवान - प्रासानी और कामयाबी के साथ उसकी कमाई कर सकता है बशर्ते कि यह दुनियबी व्यवहार खान पान के मुतअल्लिक चंद सादे कायदों की पाबंदी करना मंजूर करे

      आज तक किसी की समझ में नहीं पाया था कि रचना किस तरतीब से और किस मतलब से रूपवती हुई और ही संतों ने इसकी ज्यादा तशरीह की थी लेकिन राधास्वामी दयाल ने इस भेद को निहायत मुकम्मल शक्ल में खोल कर गुनाया और नीज सब से ऊँचे धाम का शब्द यानी निज नाम , जो पिछले संतों ने जाहिर नहीं किया था , प्रकट फरमाया और अपने कलाम की सचाई साबित करने को रारज से सतसंग आम में , जो आपकी सदारत में रोजमर्रा हुआ करता था , अद्भुत बचन फरमाये और पचनों में इस किस्म की अगली दलीलों यानी युक्तियों से काम लिया जो न्याय यानी इस्मे मन्तिक के निपमों के ऐन मुताबिक थीं और आम तौर पर तजरुबे में आने पाली बातों से दृष्टांत देकर और अभ्यास के अंदरूनी तजरुवात की मदद से उन युक्तियों की तसदीक फरमाई इस पुस्तक के अंदर हुजूर राधास्वामी दयाल के प्रकट किये हुए भेद का वैज्ञानिक रीति से जो वर्णन किया गया है वह उन अमृत - वचनों ही के आधार पर है

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