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५७ - प्रसाद ।
बाज औकात सतसंग शुरू होने से पहले प्रेमी सतसंगी संत सतगुरु को हार पहनाते हैं और उनके स्पर्श किए हुए हार कुल जमाअत में तवरु क के तौर पर तकसीम किये जाते हैं । इसी तरीके पर बाज औकात मिठाई वगैरह भी संत सतगुरु के स्पर्श करने पर तकसीम की जाती हैं और ये चीजें सतसंग का प्रसाद ( Sacrament ) समझी जाती हैं मगर चूँकि तादाद हाजिरीन सतसंग की दिन ब दिन तरक्की पर है और इन काररवाइयों के सरंजाम देने के लिए बहुत समय दरकार होता है इस लिये इनका रिवाज कमी पर है । अगर तरक्की का सिलसिला इसी तौर पर जारी रहा और हाजिरीन सतसंग की तादाद सैकड़ों व हजारों पर पहुँचने लगी तो इनको बिलकुल बंद करना होगा।
५८ - प्रसादी , चरणामृत , आरती व बंदगी ।
संत सतगुरु अपने निकटवर्ती शिष्यों पर कभी कमी प्रसादी की भी दया फरमाते हैं जिसके उसूल का बयान हम अभी आगे चल कर करेंगे । सतगुरु के बचे हुए भोजन , उनके इस्तेमाल किये हुए कपड़े और उनके चरणामृत की निसबत खपाल किया जाता है कि ये सब चीजें मारी रूहानिपत लिये रहती हैं इस लिये जिन शिष्यों को ये चीजें प्राप्त हो जाती हैं वे इनको रूहानी फायदे के सपाल से इस्तेमाल में लाते हैं । पाज मौकों पर सतसंगिों को संत सतगुरु के चरणों पर मत्था टेकने की भी इजाजत मिल जाती है ताकि जो चेतन धार संत सतगुरु के चरणों से जारी है उसको ये अपने अंदर ले सकें लेकिन इस तरीके से बंदगी करने की इजाजत थोड़े ही भादमियों को दी जाती है । मालूम हो कि प्रसादी की चीजों का इस्तेमाल करना या बंदगी करना सतसंग की काररवाई का जुज यानी अंग नहीं है । कभी कभी सतसंगियों को संत सतगुरु के साथ रष्टि जोड़ने की इजाजत दी जाती है और उस पत संत सतगुरु भी अपनी रष्टि उनकी आँखों व पेशानी की तरफ डालते हैं । ऐसे मौके पर साथ ही साथ इस किस्म के शब्दों का पाठ होता है जिनमें सुरत की निज धाम की तरफ अंतरी पढ़ाई का पपान दर्ज है या गहरे प्रेम प तड़प और सच्ची दीनता व शरण की उन दशाभों का जिक्र है जो अंतरी पढ़ाई के दौरान में सतसंगी के ऊपर आती हैं ।
सतसंगी इस पाठ के वक्त सतगुरु की दृष्टि की मदद से ध्यान का साधन किया करते हैं । ऐसे मौकों पर सुरत का सिमटाव अंतर में बड़े जोर के साथ होता है जिससे अम्पास करने वालों का मन निहायत सरशार हो जाता है । जब किसी सतसंगो के अंदर सिमटाव बरदाश्त से ज्यादा हो जाता है तो उसकी आँखें भाप से भाप बंद हो जाती हैं लेकिन अंतर में वह परावर पेदार व बाहोश रहता है और हिप्नॉटिपम के मामूल की तरह यह अपने आप को बिसार नहीं देता है । इस साधन के दौरान में , जिसको संतमत की बोली में भारती कहते हैं , जो मदद सतसंगी को मिलती है वह करीबन उसी तरह की होती है जैसी कि एक नौग्रामोज बच्चे को माँ या धाय चलना सिखलाते वक्त दिया करती है । आरती की कारवाई से जो असर सतसंगी के ऊपर पड़ता है उसको हिप्नॉटिज़म के अमल का सा असर खयाल करना बिलकुल गलत होगा क्योंकि भारती की मारफत जो मदद सतगुरु की तरफ से दी जाती है उसकी गरज यह होती है कि सतसंगी के होश हवास और स्वतंत्रता कायम रहते हुए उसकी सुरत की सोई हुई शक्तियाँ जागें और यह मतलब नहीं होता कि मेस्मरिज्म के अमल के मुबाफिक उसकी रूह की जाती ताकतों की मारफत उससे पामिल की इच्छाओं व वासनाओं में बरताव कराया जावे । मतलब यह है कि मेस्मरिम वगैरह के अमल में तो यह होता है कि मामूल बिलकुल बेहोश और परतंत्र हो कर आमिल की मरजी के मुवाफिक काम करता है और खयालात उठाता है लेकिन आरती के वक्त सतसंगी चिलकुल बाहोश व बाइरितयार रहता है और जैसे बच्चा माता की उँगली का सहारा लेकर अपने जिस्म में चलने फिरने की ताकत जगाता है वैसे ही सतसंगी भी संत सतगुरु की दृष्टि की मदद से अपनी मुरत की गुप्त शक्तियाँ चेतन करता है । जैसा कि हमने इस दफा के शुरू में वादा किया था अब प्रसादी के चारों तरीकों के उमूल का बयान करते हैं जिसमें स्पर्श से हार वगैरह के प्रसाद होने के उसूल की भी तशरीह हो जायेगी । देखने में आता है कि छूने पर जानदारों के जिस्म के अंदरूनी मसाले का असर छूने वाले के जिस्म में दाखिल हो जाता है मसलन् बहुत से कीड़े मकोड़े इस किस्म के हैं कि जिनके छूने से उनके अंदर के जहर का असर छूने वाले में प्रवेश कर जाता है जिससे पाज भौकात लोगों के जिस्म पर छाले पड़ जाते हैं ।
मालूम हो कि यह खासियत सिर्फ कीड़े मकोड़ों ही के लिये मखास नहीं है बल्कि किसी दर्जे तक सभी जानदारों में पाई जाती है । इससे साबित होता है कि हर शरीर की जाती रूहानियत शरीर के द्वारा अपने तुरत्म यानी चीज के मुतअल्लिक खास असर दूसरे शरीर के अंदर पहुंचा सकती है । चुनाँचे प्रसादी की मारफत भी इसी तरीके से असर पहुँचता है लेकिन जैसे स्थूल घाट यानी शरीर का असर स्थूल घाट पर महसूस होता है वैसे ही प्रसादी का रूहानी असर चेतन यानी रूहानी घाट पर मालूम होता है । जिस भक्तजन के अंदर रूहानी ताकत किसी कदर जग गई है वह प्रसादी की हुई चीज़ के इस्तेमाल में आते ही फौरन उसके रूहानी असर को महसूस करने लगता है , चाहे उसको यह मालूम भी न हो कि वह चीज प्रसादी की हुई है । अलावा इसके अगर यह बात दुरुस्त है कि हिप्नॉटिज्म का अमल होने पर मामूल के लिये किसी शरस के साथ उसकी इस्तेमाल की हुई चीज की मदद से तअल्लुक कायम करना आसान हो जाता है तो इससे भी हमारे उमूल की तसदीक होती है । चुनाये शिकारी कुत्ते भी कम व वेश इसी तरीके से मदद पाकर अपने शिकार का पता लगा लेते हैं यानी शिकार का जानवर रास्ते में कुछ छोड़ता चला जाता है ( जिसे गंध कहते हैं ) और शिकारी कुत्ते उसकी मदद से शिकार का खोज लगा लेते हैं । चूंकि बिजली शक्ति , जिसको सब तत्वों को जान कह सकते हैं , चेतन शक्ति से पमुकाबिले और सब चीजों के बहुत ज्यादा मुताविकत रखती है इस लिये चेतन शक्ति के मुतमल्लिक उमलों को ताईद में इस शक्ति की मिसाल का पेश करना पेजा न होगा । चुनाँचे देखने में आता है कि जिन चीजों में बिजली भरी होती है उनको स्पर्श करने पर स्पर्श करने वाली चीज के अंदर बिजली आ जाती है और इस आने वाली बिजली को मिकदार पहली चीज़ के अंदर मौजूद बिजली की तेजी ( Intensity ) के हिसाब से हुआ करती है । इस उमूल के मुताबिक साध , संत भी , जिनके शरीर के अंदर निहायत ऊँचे पाट को घेतनता यकसरत भरी होती है , स्पर्श में माने वाली पीनों के अंदर अपनी रूहानियत भर सकते हैं ।
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