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६२ - पवित्र चेतन नाम और साधारण मंत्रों में भेद है
निर्मल परमार्थ पानी खालिस रूहानी मशहप में ऐसे नामों पा मंत्रों की कोई पकमत नहीं है जिनके जरिये से सिर्फ दूसरों के नाश या वश करने की ताकत या जाती है पल्कि सिर्फ उस पवित्र नाम का सेवन किया जाता है जिसके जरिये से सुरत पानी मारमा को मन व माया की गुलामी से छुटकारा हासिल हो । इस लिये खयाल रखना चाहिए कि पहली किस्म के नामों का जिक्र करने से हमारी यह गरज हरगिज नहीं है कि लोग उन नामों या मंत्रों के जप की तरफ सपज्जुद दें । इनका जिक्र हमने उयल कायम करने के लिये सिर्फ मिसाल के सौर पर किया है । संत मत के साधनों का इस किस्म के नामों या मंत्रों से कोई वास्ता नहीं है ।
६३ - चेतन शक्ति के खवास ।
हमारी राय होती है कि हुजूर राधास्वामी दयाल के प्रकट किये हुए सच्चे पवित्र नाम की तशरीद करने से पेरतर सच्चे कुल मालिक की सिफात या मुख्य गुणों की निसबत तहकीकात करें और नीश सुरत यानी चेतन शक्ति के ( जिससे रचना जहूर में भाई है ) निज खवास दरियाप्त करें।
यह एक मामूली तजरुचे की बात है कि कोई भी प्रकृति की शक्ति परौर केंद्र और धारों के काम नहीं कर सकती है यानी जब तक धारें जारी नहीं होती उस वक्त तक शक्ति भव्यक्त यानी गुप्त अवस्था में रहती है और धारों के प्रकट होने ही पर , जो हमेशा शक्ति के केंद्र में पोम या हिलोर उठने के बाद जारी होती हैं , शक्ति अव्यक्त से व्यक्त पानी कारकुन हो कर अपनी क्रिया शुरू करती है । इससे जाहिर है कि वरोर भंडार की मौजूदगी के शक्ति की धारें हरगिज़ प्रकट नहीं हो सकतीं । मालूम हो कि प्रकृति की शक्तियों का यह नियम घेतन शक्ति भी पालन करती है , बल्कि यह कहना शायद उपादा दुरुस्त होगा कि प्रकृति की शक्तियों ने यह खास्सा यानी स्वभाव चेतन शक्ति ही से , जो आदि शक्ति है , हासिल किया है । अगर यह हमारा विचार दुरुस्त है तो मानना होगा कि रचना की उत्पत्ति भी इसी नियम के अनुसार हुई यानी अब्बल चेतन शक्ति के अनंत और अपार सिंधु सच्चे कुल मालिक के अंदर हिलोर या मौज उठी और बाद में उससे चेतन धारें प्रकट हुई और जब तक ये दो सूरतें जहूर में नहीं आई उस वक्त तक रचना प्रकट नहीं हुई और कुल मालिक ने अपने तई करतार रूप में प्रकट नहीं फरमाया । इस पुस्तक के रचना भाग में हम मुफस्सल तौर पर बयान करेंगे कि चेतन शक्ति की धारों ने किस तरीके से रचना को रूपवती किया है । यहाँ पर इस वक्त सिर्फ इतना बयान कर देना काफी होगा कि चेतन शक्ति कम व वेश चुम्बक शक्ति की मानिंद क्रिया करती है और क्रियाक्षेत्र ( Field of Action ) कायम करती है । चुम्बक शक्ति के क्षेत्र में जितने भी नुक्ते होते हैं चुम्बक शक्ति के असर की वजह से उन सब पर बैंच उसके ( चुम्बक शक्ति के ) केंद्र की तरफ रहती है । अगर हम दृष्टि चुम्बक शक्ति के सिर्फ इस केंद्र की जानिब खैच वाले अंग पर रखें तो उसके केंद्र से निकल कर क्षेत्र के अंदर फासले तक फैलने का खयाल ग़लत हो जाता है लेकिन अगर हम चुम्बक के सिरों को अपने नजदीक वाले आकाश ( ईथर ) के अयनों को चुम्बक बनाने वाली क्रिया को खयाल में लायें [ जो चुम्बक शक्ति के क्षेत्र में फैलने ही से जहूर में आती है और जिसका काम चुम्बक के धनात्मक ( Positive ) और ऋणात्मक ( Negative ) सिरों के गिर्द आकाश के धनात्मक और ऋणात्मक परमाणुओं को अलग अलग तरतीष देना है तो शक्ति का क्षेत्र में फैलना और आकर्षण या बैच की क्रिया करना दोनों सही हो जाते हैं और इससे किसी आकर्षक शक्ति की धारों के प्रकट होने का अमल भी ठीक तौर से समझ में आ जाता है । मालूम हो कि रचना के शुरू में चेतन भंडार से चेतन धार का इजहार भी इसी ढंग से हुआ।
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