Wednesday, November 4, 2020

चेतन शब्द का रुख अंतर्मुख है

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३० - चेतन शब्द का रुख अंतर्मुख है ।



       आम तौर पर शक्ति के इजहार या प्रकट होने से यह समझा जाता है कि शक्ति केंद्र से जारी होकर किसी वृत्त यानी गिर्दे में फैलती है लेकिन ऊपर की दफा में परम - शक्ति की निसबत जो जिक्र हमने किया है उससे हमारा यह मतलब नहीं है बल्कि चेतन शक्ति के इजहार से हमारी मुराद उस शक्ति के गुप्त से प्रकट दशा में तबदील हो जाने से है । चूंकि चेतन शक्ति की क्रिया अंतर्मखी और आकर्षक है इस लिए उसके इजहार के संग जो शब्द प्रकट हुआ उसका असर भी रचना पर अंतर्मुखी और आकर्षक होना चाहिए और जोकि चेतन शक्ति के इस प्रथम इज़हार का ठप्पा या छाप तमाम चेतन शब्दों पर लगी हुई है इस लिये जितने भी चेतन शब्द रचना में हैं उन सब के अंदर ये दोनों सपास मौजूद हैं और इस वजह से उन शब्दों के सुनने से अभ्यासी की सुरत का बड़े जोर के साथ खिचाव अंतर की जानिब होता है और यह अभ्यास बाकायदा तौर पर करने से अभ्यासी की सुरत ऊँचे मंडलों की जानिब , जहाँ से वे चेतन शब्द जारी होते हैं , खिंच यानी चढ़ जाती है । यही वजह है कि शब्द - अभ्यास अंतर में सुरत की चढ़ाई हासिल करने का साधन माना जाता है लेकिन चूंकि चेतन शब्द निहायत सूक्ष्म हैं इस लिये जब तक दूसरे दो साधन करके , जिनका जिक्र आगे किया जावेगा , मुरत की गुप्त शक्तियाँ किसी कदर जगाई न जावें उस वक्त तक वे अच्छी तरह मुनने में नहीं पाते । 

       इसी से शब्द - अभ्यास को योगसाधन के सिलसिले में ऊपर का जीना करार दिया गया है लेकिन इस वजह से शब्द - अभ्यास की कमाई ज्यादा अर्से तक मुल्तवी नहीं रखी जाती बल्कि छः हफ़्ते या दो महीने तक नाम के सुमिरन और स्वरूप के ध्यान का साधन करने पर यह अभ्यास शुरू कर दिया जाता है । इन दो साधनों यानी चेतन स्वरूप के ध्यान और नाम के सुमिरन की युक्तियों का बयान नीचे किया जाता है 

 ३१ - ध्यान के मुतअल्लिक़ ग़लतफ़हमियाँ । 


       मोटे तौर पर सृष्टि दो प्रकार की है यानी चेतन और जड़ । चेतन सृष्टि में चूंकि मनुष्य - योनि सब से उत्तम है इस लिये यह कहा जा सकता है कि मनुष्य के स्वरूप का ध्यान करना सब से बढ़ कर चेतन यानी रूहानी शक्ल का ध्यान करना है , लेकिन यह दुरुस्त नहीं है । मनुष्य को चेतनता का प्रकाश सिर्फ जागृत अवस्था में होता है क्योंकि सिर्फ इसी अवस्था में मनुष्य ज्ञान लेता है । स्वप्नावस्था में उसकी चेतनता यानी ज्ञान लेने की शक्ति दिमाग में पड़े हुए नक्शों के अधीन होती है और सुषुप्ति - अवस्था में दाखिल होने पर इसका बिलकुल प्रभाव हो जाता है , इस लिये मनुष्य के स्वरूप का ध्यान खालिस रूहानी शक्ल का ध्यान न रहा बल्कि एक ऐसे स्थूल शिलाफ या शक्ल का ध्यान ठहरा जिसके अंदर थोड़ी सी चेतनता और खफीफ सा नान मौजूद है ।

     इसी तरह अगर सच्चे मालिक को भाकाशवत् व्यापक खपाल करके ध्यान किया जाये तो इसको भी खालिस रूहानी पानी चेतन स्वरूप का ध्यान नहीं कह सकते क्योंकि आखिर यह एक स्थूल वस्तु के मानसिक अनुमान ही का ध्यान तो है ।



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