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६५- राधा और स्वामी शब्दों की तरतीब ।
पेश्तर इसके कि हम राधास्वामी नाम की तशरीह करें , यह मुनासिब मालूम होता है कि ऊपर के बयान से जो एक शंका पैदा हो सकती है उसको दूर कर दें । शंका यह है कि जब यह कहा जाता है कि अब्बल चेतन शक्ति के भंडार में मौज या हिलोर उठी और बाद में धार प्रकट हुई तो फिर मालिक का नाम ' स्वामीराधा ' होना चाहिए न कि ' राधास्वामी ' यानी जिस तरतीब से आदि में ( रचना के मुतअल्लिक ) क्रियाएँ हुई उसीके मुताविक निज नाम होना चाहिए । इस शंका का समाधान यह है : -दफा ६३ में बयान कर चुके हैं कि मादि धार का इजराय चुम्बक शक्ति की आकर्षण क्रिया यानी बैच के ढंग पर हुमा - यानी जैसे अव्वल नुम्बक शक्ति की धारें बाहर फैल जाती हैं और बाद में उसके क्षेत्र में कुल नुक्तों की खेंच उसके केंद्र यानी चुम्बक की तरफ शुरू होती है और जैसे चुम्बक क्षेत्र के नुक़्तए निगाह से अव्वल क्रिया चुम्बक शक्ति की धारों ही की होती है इसी तरह रचना के नुक़्तए निगाह से अब्बल क्रिया धार ही की हुई और जब पहले धार फैल गई तब भंडार की आकर्षण क्रिया शुरू हुई - या यों कहो कि भंडार की क्रिया का इजहार धारों को मारफत हुआ । इन बहात से रचना के नुक्तए निगाह से धार को अव्वल और भंडार को पीछे ही कहना मुनासिब है और इस लिये निज नाम ' राधास्वामी ' ही ठीक बनता है , न कि ' स्वामीराधा ' ।
६६ - राधास्वामी नाम ।
आदि चेतन धार से , जो कुल रचना की आदि यानी इब्तिदा है , जो शब्द प्रकट हुआ उसको इंसानी बोली में उच्चारण करने से ' राधा ' शब्द बनता है और जिस हिलोर या मौज से वह आदि धार प्रकट हुई उसके शब्द को उच्चारण करने से ' स्वामी ' शब्द बनता है इस लिये रचना के अंदर जिस कदर भी चेतनता है उस सब के सोतपोत पनिज भंडार का सच्चा पवित्र नाम या परम मंत्र ' राधास्वामी ' शब्द ठहरता है । दूसरे लफ़्ज़ों में जब सच्चे कुल मालिक ने अपने आप को सत्करतार रूप में जाहिर फरमापा और रचना की शुरूआत की , तो भंडार के अंदर की हिलोर और भंडार की धारों ने उस भारी चेतन मंडल में , जो सत्र के मादि में रचा गया , सच्चे मालिक का नाम ' राधास्वामी ' प्रकट किया । यह सच्चा नाम रचना में हर जगह मौजूद है और अंतर के अंतर घाट पर , जहाँ चेतन धार कारकुन है , इसको हर कोई सुन सकता है । जैसे हर एक किरण , जो सूर्य से निकलती है , अपने अंदर भंडार यानी सूर्य के खवास लिये रहती है इसी तरह हर ख कीफ से खफीफ चेतन किरण यानी सुरत - अंश के अंदर अपने भंडार के निज खवास यानी भंडार में हिलोर का उठना और भंडार से धार का जारी होना , जिनके आधार पर रचना की शुरूपात हुई , मौजूद रहते हैं और दरमिपानी तहों या गिलाफों को चीर कर उस अंतर्गत मुकाम तक पहुँचने पर , जहाँ चेतन किरण यानी सुरत - अंश विराजमान है , राधास्वामी शब्द छोटे पैमाने पर सुना जा सकता है । जैसे और पवित्र नाम या मंत्र मुख़्तलिफ अवतारों ने प्रकट किये इसी तरह यह पवित्र ' राधास्वामी ' नाम भी राधास्वामी दपाल के अवतार ने प्रकट फरमाया मौर इस नाम की निसबत जो कुछ बयान ऊपर हुमा वह उन दयाल के उपदेश के बमुजिब ही किया गया । लेकिन यह शायद ज्यादा इतमीनानदेह होगा अगर कुछ सुबूत पेश करके दिखलाया जावे कि धार और भंडार के शब्दों को मुख से उच्चारण करने में ' राधास्वामी ' नाम ही बनता है
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