Wednesday, December 2, 2020

६७ - राधा शब्द ।

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६७ - राधा शब्द ।


       हर कोई आसानी से देख सकता है कि सीटी , घंटे वगैरह की आवाज की नकल उतारने के लिये हमको अपने आवाज़ निकालने के औजार यानी मुँह के अंदर कम व वेश वैसी ही सूरत पैदा करनी होती है जैसी कि बाहर में आवाज पैदा करने वाली चीज के अंदर होती है । मिसाल के तौर पर देखो कि फॅक से बजने वाले बाजों ( बाँसरी , नफीरी वगैरह ) में यह होता है कि नली में फूंकने से उसके अंदर की हवा में धर्राहट पैदा हो जाती है और जब यह थर्राहट नली के खुले हुए सिरे से बाहर निकलती है तो उन बाजों की आवाज पैदा होती है । इस लिये अगर हम चाँसरी की आवाज की नकल उतारा चाहें तो अब्बल हमको अपना आवाज निकालने का औजार ऐसी सूरत में बदलना होगा कि जिससे हमारे मुँह के अंदर एक नली सी बन जावे और उसका खुला सिरा हमारे होंठों के मुकाम पर कायम हो । बाद में मुँह के अंदर की हवा थर्राहट के साथ पाहर निकालने पर जब होंठों से चनाये हुए सूराख से निकलती है तो वाँसरी की सी आवाज पैदा हो जाती है । चुनाँचे मह के अंदर इस तरह की सूरत पैदा करने पर जो ' सकार ' वर्ण प्रकट होता है यह घाँसरी को आवाज की नकल उतारने में जरूर शामिल रहता है और इस लिये बाँसरी की आवाज की नकल इस अक्षर का इस्तेमाल किये बगैर नहीं बन सकती । इसी तौर से घंटे की आवाज की नकल करने के लिये , जो किसी धातु की थाली या बरतन के पहलू पर कसकर चोट मारने से पैदा होती है , किसी मर्धस्थानीय वर्ण का इस्तेमाल करना जरूरी होता है क्योंकि चोट मारने से उत्पन्न होने वाले शब्द की नकल मुँह से तभी बनती है जब जबान मूर्धन्य वर्ण उच्चारण करने के लिये मूर्धा के साथ टकराती है । चुनाँचे घंटे की आवाज को अँगरेजी जबान में ' डिङ्ग - डॉङ्ग ' ( ding - dong ) और हिन्दुस्तानी चोली में ' टन् - टन् ' कहते हैं । मालूम होवे कि इन दोनों शब्दों में पहले पर्ण मूर्धन्य हैं और आखिरी वर्ण अनुनासिक यानी गुनगुने हैं । इससे साबित होता है कि पाहरी आवाजों की मुँह से नकल उतारने के लिये खास खास वर्गों का इस्तेमाल करना लाजिमी है । भव इस उमूल को लगाकर दरयाफ़्त करते हैं कि कौन वर्ण किस ढंग से इस्तेमाल करने में भंडार और धार की क्रियाओं के संग जाहिर होने वाले शब्द मुँह से उच्चारण हो सकते हैं ।

      चूँकि यह बयान हो चुका है कि मुरत पानी चेतन शक्ति की क्रिया चुम्बक शक्ति की क्रिया से किसी कदर मिलती जुलती है इस लिये चुम्बक शक्ति के क्षेत्र के अंदर वर्तमान दशाओं की जाँच करने से हमारा मतलब निकल आयेगा । आकाश ( ईघर ) अपनी असली हालत में , जैसा कि रचना की उत्पत्ति के सिलसिले में प्रकट हुआ , एक ऐसा हमजिस मसाला है कि जिसके अंदर धनात्मक ( Positive ) और ऋणात्मक ( Negative ) अपनों में बँट जाने की योग्यता रहती है । जब आकाश ( ईघर ) पर शक्ति का किसी दूसरे घाट से असर पड़ता है तो उसके ये दो किस्म के अयन अलग अलग हो जाते हैं लेकिन रचनात्मक मैलान ( Creational Tendency ) अपनों को उनकी असली अवस्था में लौटाने की कोशिश करता है और इसी वजह से चुम्बक के धनात्मक और ऋणात्मक सिरों ( Poles ) में बाहमी कशिश होती है और दोनों सिरों के मध्य में एक शून्य स्थान ( Neutral Zone ) बन जाता है । चुम्बक शक्ति के घनात्मक और ऋणात्मक सिरे दरअसल शक्ति की एक तरफ विशेषता और दूसरी तरफ न्यूनता कायम होने का इजहार हैं । अब अगर हम चुम्बक शक्ति के क्षेत्र में अलहदा अलहदा अपनों पर नजर डालें तो मालूम होगा कि उन पर दो विरुद्ध ताकतों का अमल हो रहा है जिसकी वजह से सब अपनों के अंदर झीनो धर्राहट हो रही है । मालूम हो कि आकर्षक शक्ति का अपने कार्यक्षेत्र में अव्वल यही असर होता है । इसके बाद धर्राहट के एक तरफ में तार बंध जाने से क्षेत्र के अंदर फैला हुआ आकर्षण धाररूप इख़्तियार कर लेता है । चूंकि चेतन शक्ति की धार का इज़हार मी कम व येश इसी तरीके पर हुमा इस लिये अब यह दरयाफ्त करना चाहिये कि किन वों को जोड़ कर उच्चारण करने में हमारे भावाज निकालने के भौजार पानी मुँह के अंदर ऊपर लिखी हुई अवस्था पैदा होती है । चुनाचे ऐसा वर्ण ' रकार ' है जिसके उच्चारण करने में हमारी जवान जोर से थर्राती है । इस लिये चेतन धार की किसी नुक्ते पर क्रिया से ( जिसको धर्राहट पैदा करने की क्रिया कहना चाहिए ) जो आवाज प्रकट होती है उसको मुँह से अदा करने के लिये अव्वल हमें इस ' रकार ' वर्ण का इस्तेमाल करना होगा , इसके बाद धारों के ( केंद्र की तरफ ) आकर्षण या बहाव की नकल उतारनी होगी जिसके लिये ' धकार ' दन्त्य वर्ण इस्तेमाल करना होगा क्योंकि इस वर्ण के उच्चारण करने ही में साँस अंदर को खींचना पड़ता है । इस लिये चेतन शक्ति की धार से जो धुन प्रकट हुई उसकी इंसानी बोली में करीवतरीन् नकल ' राधा ' शब्द ठहरता है ।



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