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६० - निर्मल चेतन देश के दूसरे चार स्थान ।
आदिधार का प्रथम केंद्र तैयार होने में कुदरती तौर पर कुछ समय लगा और जब वह तैयार हो गया तो अगमपुरुप यानी निर्मल चेतन देश के ऊपर से दूसरे स्थान के धनी ने अपने तई चेतनता के महाप्रकाशवान् सिंधु के रूप में प्रकट किया और आदिधार अपनी चेतनता को गोया इस गहिर गम्भीर समुद्र में डाल कर उसकी तह में गुप्त हो गई यानी आदिधार का उतार उस लोक के तले तक पहुँचने पर खतम हो गया । इसके बाद रचना का सिलसिला अगमपुरुष ने आदि भंडार की कारवाई के नमूने पर जारी किया और अपना लोक और उसके मुतअल्लिक चंद्र , सूर्य और उनकी निवासी मुरतें प्रकट की । निर्मल चेतन देश के बाकी माँदा चार स्थानों की रचना भी इसी तौर से जाहिर हुई । यहाँ पर यह बयान कर देना ज़रूरी मालूम । होता है कि निर्मल चेतन देश के तीन ऊपर वाले और तीन नीचे वाले स्थानों के हर सेट यानी जोड़ में यह कायदा है कि ऊपर का स्थान अपने से नीचे के दो स्थानों को सिर्फ जान या चेतनता बर्दशता है और उन दो स्थानों के इंतजाम में काई सरगर्म हिस्सा नहीं लेता । यही बंदोबस्त किसी हद्द तक हमारे देह के अंदर भी देखने में आता है यानी सुरत देह को सिर्फ जान या शक्ति बहम पहुँचाती है और देह की संभाल और उसकी तमाम क्रियाएँ - सूक्ष्म व स्थूल - मन व शरीर को शक्तियों की मारफत कायम और जारी रहती हैं ।
६१ - महासुन्न का मैदान और उसके छः सूक्ष्म स्थान ।
यह जिक्र हो चुका है कि निर्मल चेतन देश के सब स्थान कुल मालिक के अपार देश के फैलाव के तौर पर रचे गये हैं जिसकी वजह से वे कुल मालिक के विशेष अंग का भाग या अंग बन गये हैं और इस लिये ये स्थान हर किस्म के रद्द च बदल और नाश से रहित हैं । रचनात्मक क्रिया ने , जिसका पीछे बयान हुआ और जिसने आदि मंडार से मुलहिक ( सटे हुए ) मध्य देश के ऊपर वाले हिस्से को निर्मल चेतन स्थानों में तबदील किया , इन स्थानों के नीचे ( मध्य देश के मध्य भाग में ) भारी शून्यता की सूरत पैदा कर दी । शून्यता के इस भारी मैदान को संत मत की बोली में महासुन्न का मुकाम कहते हैं । यह मैदान निर्मल चेतन स्थानों और ब्रह्म के स्थानों के दरमियान , जो मध्य देश के नीचे वाले हिस्से से प्रकट हुए , हदेफासिल यानी रोक का काम देता है । चूंकि महासुन का मैदान निर्मल चेतन स्थान प्रकट करने वाली रचनात्मक क्रिया के लगातार जेरप्रसर रहा इस लिये निर्मल चेतन स्थानों का सूक्ष्म ठप्पा इस पर भी लग गया और इस लिये इस मैदान में भी निर्मल चेतन स्थानों के मुताबिक छः सूक्ष्म दर्जे कायम हो गये । इन सूक्ष्म दजों को निर्मल चेतन स्थानों की छाया ( Sub - tone ) कह सकते हैं । इन स्थानों की रचना की क्रिया मैंवरगुफा यानी सबसे निचले चेतन स्थान के धनी सोहंग पुरुप से जाहिर हुई ।
६२ - कालपुरुष और आद्या का प्रकट होना ।
निर्मल चेतन स्थानों के रचे जाने पर आदि शक्ति के प्रथम रचनात्मक वेग के जाहिरा खतम हो जाने से प्राइंदा काररवाई का सिलसिला कुछ अरसे के लिये बंद हो गया लेकिन इस ठहराव के वक्फे में आदि शक्ति की भंडार की जानिय अनादि कशिश ज्यादा तेजी के साथ जारी रही क्योंकि अय निर्मल चेतन देश के निचले स्थानों का भी असर उसमें शामिल हो गया । ये निपले स्थान अगरचे इस कदर चेतन हो गये थे कि आदि भंडार के साथ जुड़े रह सकें लेकिन उनके अंदर फिर भी कुछ न कुछ कम दरजे वासी चेतनता मिली रह गई थी क्योंकि महासुन के स्थानों की तैयारी के सिलसिल में जो रचनात्मक क्रिया अमल में आई वह उसको पूरे तौर से खारिज करने के लिये काफी न थी , चुनाँचे यह बया हुमा नुक्रम बाद में रचना को क्रिया दोबारा शुरू होने पर दूर किया गया । यहाँ पर इस बात का जिक्र कर देना नामुनासिब न होगा कि छ : स्थानों के हर सेट में पाँचवाँ स्थान उत्पत्ति की क्रिया करने वाला होता है चुनांचे मनुष्य शरीर में मुरत की बैठक के स्थान से नीचे की जानिय जो पाँचवाँ ( इंद्रिय ) चक्र है उसी में औलाद पैदा करने का खास्सा रक्या गया है और इसी तरह ब्रह्मांड में भी जो पाँचवा यानी ब्रह्मा का स्थान है उसी के जिम्मे उत्पनि का काम है । पिंड और ब्रह्मांड देश के वासियों में पुरुष भाव और बी भाव की क्रियाओं में भेद प्रकट है लेकिन निर्मल चेतन देश के वासियों में , जैसा कि पहले कह चुके हैं , ये दोनों भाव इकट्ठी हैं और यहाँ की सी खी पुरुष वाली क्रियाएँ उस देश में नहीं होती । निर्मल चेतन देश के पांचवें स्थान यानी सत्यलोक में अलबत्ता मुरत और शब्द की धारों का परस्पर संगम ज्यादा प्रकट शक्ल में हुआ इस लिये जब रचना का सिलसिला दोबारा जारी हुआ तो ये दोनों खवास मय उस कम दर्जे की चेतनता के , जो ठहराव के वक्फे में सत्यलोक के अंदर शामिल हो गई थी , दो अलग अलग धारों के रूप में खारिज किये गये । पहली धार , जो सत्तपुरुष यानी सरपलोक के धनी से जारी हुई , शब्द पार की शास होने की वजह से हर किस्म की रुकावट पर रालपा पाने को समर्थता रखती थी ( इस धार को कालपुरुष या ब्रह्म कहते हैं । लेकिन चूंकि इसमें केंद्र कायम करने की शक्ति मौजूद न थी इस लिये यह अकेले अनादि मध्य देश के निचले दों में रचना नहीं कर सकती थी ।
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