Friday, December 18, 2020

६३ - ब्रह्मांड की रचना की सामग्री और उसके छः स्थानों का बयान

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६३ - ब्रह्मांड की रचना की सामग्री और उसके छः स्थानों का बयान

 कालपुरुष और आद्या की धारों के खारिज होने पर सत्यलोक से वह कम दर्जे बाला तमाम चेतन दूर हो गया जो निर्मल चेतन स्थानों में रहने के काबिल था और साथ ही ब्रह्मांड की रचना के लिये जरूरी सामान मुहय्या हो गया यहाँ पर यह जतला देना मुनासिब मालूम होता है कि इन दोनों धारों की क्रिया का रुख बहिर्मख यानी निर्मल चेतन धार के रुख से उलटा था क्योंकि इनका क्रियाक्षेत्र मादि न्यून अंग के सिरे से सटा हुआ देश है मतलब यह है कि आदि चेतन धार का क्रियाचेत्र विशेष अंग के करीब होने की वजह से उस धार का रुख विशेष अंग की तरफ था लेकिन काल आद्या का क्रिया क्षेत्र न्यून अंग के सिरे के करीब होने की वजह से इनका रुख न्यून अंग की जानिव था कालपुरुष और भाषा का क्रिया क्षेत्र ब्रह्मांड कहलाता है इसका ऊपर का सिरा महासुभ की रचना के सब से नीचे हिस्से से , जिस को अक्षरपुरुप का स्थान कहते हैं , जुड़ा हुआ है अक्षरपुरुष चूंकि महासुन की नीम रूहानी रचना के घनियों में से एक धनी है इस लिये वहाँ के दूसरे धनियों के मानिंद वह मृत्यु से प्रायः रहित है और इसी से अक्षर ( अविनाशी ) पुरुष कहलाता है काल और भाषा को धारों ने इस स्थान पर किसी कदर सम्मिलित अवस्था पानी मिली जुली हालत में पहला को कायम किया और यहाँ इन धारों के नाम पुरुष और प्रकृति हुए चूंकि अक्षरपुरुष निर्मल चेतन देश की एक कला थी इस बास्ने प्रांड के तमसुक में उसका वही दर्जा जो देह और मन के ताल्लुक में मनुष्य की सुरत का रहता है , इसी वजह से अचरपुरुष का स्थान ब्रह्मांड का सच्चा ' भारमपद ' कहलाता है चूंकि यह पुरुष न्यून अंग की महान् आत्मा यानी सुरत है इस लिये जो अम्पासी अधरपुरुप तक पहुँच जाता है उसको ' महात्मा ' यानी महान् पात्मा कहते है अक्षर पुरुष के साथ तअल्लुक होने पर काल और माया को बहुत कुछ तकविषत हासिल हो गई जिसमे ब्रह्मांड की रचना का काम फौरन जारी हो गया यानी निर्मल चेतन स्थानों की रचना के ढंग पर पुरुप प्रकृति और अधरपुरुप से घारें जारी हो कर इनके मुतअल्लिक ( ब्रह्मांड के ) स्थानों की रचना प्रकट हुई इस मुकाम पर ये तीनों धारें प्रकट हैं और त्रिवेणी के नाम से मशहर है अक्षरपुरुष की बैठक के मुकाम के नीचे एक बड़ा भारी केंद्र या पेतनता का सरोबर वाकै है जिसको मानसरोवर कहते हैं जब कोई अभ्यासी यहाँ पहुँचकर इस चेतन सरोपर में गोता लगाता है तो उसकी यह सब झीनी मलिनता , जो कालपुरुष पानी प्रश्न या प्रांडी मन के देश से गुजरने के दौरान में उस पर चढ़ गई हो , धुल जाती है वह मुक्काम , जहाँ पर ये तीन धारें मध्यल मरतबा मिली , प्रिटी पानी तीन पर्वतों का स्थान कहलाता है इन पर्वतों के नाम मेरु , मुमेरु और कैलाश हैं काल और भाषा को धारें , जो सत्यलोक में उतरी थीं , यहाँ पर प्रश्न और माया रूप में प्रकट हु यूंकि इस स्थान का असली ( आदि ) मसाला स्थूल यानी कम चेतन था इस लिये रचनात्मक क्रिया के सिलसिले में बैटौनी होने पर यहाँ से निहापत सूक्ष्म परमाणुषों के गिलाफ रूप बादल भारी मिकदार में खारिज हुए ' परमाणुओं से यहाँ हमारा मतलब उन मामूली जरों या अपनों से नहीं है जो इंसान के तजरुये में आते हैं क्योंकि वे परमाणु इनसे अत्यंत सूक्ष्म हैं विटी में चेतनता की कमी चमुकाविले ऊपर के स्थान के , जिसको सुन या दसवाँ द्वार कहते हैं , निहायत नुमायाँ पानी प्रकट शक्ल में जाहिर हुई जिसका असर दर्शनेंद्रिय पर उदय होते हुए सूर्य के चमकीले लाल रंग का सा पड़ता है

        त्रिकुटी से नीचे ये तीनों धार मिलकर चलीं और इनके अलावा दो नई मुख्य धारें माया और ब्रह्म से प्रकट हो कर नीचे उतरीं इन दो धारों ने नीचे उतर कर जो तीसरा ठेका लिया उसको सहसदलकँवल ( हजार पंखड़ियों वाला कमल ) कहते हैं और माया ब्रह्म ने यहाँ पर ज्योतिनारायण पानी निरंजन का रूप धारण किया।

     चूंकि ये तीन धारें , जिनका अभी ऊपर जिक्र हुआ , तीन कूटों यानी बुलंद घाटियों वाले स्थान से जारी हुई थीं इस लिये सहसदलबल की जानिय उतार में जो रास्ता उन्होंने अपने लिये बनाया उसमें उन धारों के उत्थान स्थान यानी त्रिकुटी का असर गया इस रास्ते को चंकनाल ( टेदी सुरंग ) कहते हैं जिस मुकाम से ये तीनों धारें एक बनकर नीचे की जानिय रवाना हुई वहाँ से रास्ता अव्वल ऊपर को जाता है और बाद में नीचे उतरता है थोड़ा आगे चलकर हम दिखलायेंगे कि ये ही तीन धारे तीन गुणों के निहायत सूक्ष्म और गुप्त ( बीज ) रूप हैं इनमें से एक में प्रपल सच अंग और दूसरी में उत्पत्ति का अंग और तीसरी में संहार का अंग मौजूद है त्रिकुटी स्थान में इन तीन धारों ने और नीज माया और ब्रह्म की दो धारों ने वहाँ के परमाणुओं का मंथन करके पाँच अलहदा अलहदा लेकिन निहायत सूक्ष्म और झीने स्तर या तह प्रकट किये जिनसे बाद में स्थूल प्रकृति यानी माहे की वे पाँच अवस्थाएँ जाहिर हुई जिनका दफा १२ में जिक्र किया गया है ब्रह्म धार से जो अवस्था जाहिर हुई यह प्राकाश तत्त्व , और माया धार से जो अवस्था जाहिर हुई वह अग्नि तत्व , और सत्त्वगुण ,. रजोगुण तमोगुण की धारों से जो अवस्थाएँ जाहिर हुई वे वायु , जल और पृथ्वी तत्व कहलाते हैं रचनात्मक अँटोनी के सिलसिले में जो परमाणु त्रिकुटी से नीचे गिरे वे इन पाँच अवस्थाओं का असर लिये हुए थे और सहसदलकँवल में जाकर वे अलहदा अलहदा पाँच तत्वों के रूप में जाहिर हुए चूँकि ये तत्त्व स्थूल प्रकृति के सब से छोटे जरों यानी अयनों से भी ज्यादा सूक्ष्म थे और शक्ति उनके अंदर कसकर भरी थी इस लिये ये सहसदलकँवल से अलहदा अलहदा रंगीन चमकती हुई धारों की शक्ल में रखाँ हुए आकाश तत्व का रंग गहरा नीला सा था , अग्नि का लाल , वायु का हरियाला , जल का श्वेत और पृथ्वी का पीत

          सहसदलबल से निकलते ही पांच तत्वों का फिर से मथन हुआ और तीनों गुण , ज्योति निरंजन जुदागाना मथन करके पाँच तत्वों के पचीस उपभाग प्रकट किये जिनमें से हर एक के अंदर अलहदा खास अंग या सिफत मौजूद थी इन पचीस उपभागों को पचीस प्रकृतियाँ कहते हैं

      इधर तो तत्वों और प्रकृतियों की हस्थ मजकूराबाला बोड़ बाँधी जा रही थी उधर सहसदलकवल के मंडल की रचना का काम जोर से जारी था जिसके सिलसिले में आठ बड़ी धारें काम कर रही थीं इनमें से दो धारें तो ज्योति और निरंजन की थीं और छः धारें तीन गुणों की थीं , जो पुरुष और स्त्री अंगों में अलग अलग फटकर तीन से छः हो गई थीं इन्हीं आठ धारों के लिहाज से पारिभाषिक बोली में सहसदलबल को मष्टदलकमल भी कहा जाता है इन आठ धारों में से हर एक ने अब्बल पाँच तत्वों पर कशिश करके पाँच पाँच पत्तियाँ कायम की और उनके तैयार होने पर हर पत्ती ने पचीस प्रकृतियों पर अपनी कशिश करके पचीस पचीस दल यानी पंखड़ियाँ कायम की जिससे आठ धारों के गिर्द एक हजार पंखड़ियाँ कायम हुई

 

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