Tuesday, December 22, 2020

बाज गैस गंध से और बाज पदार्थ रस से क्यों खाली है


बाज गैस गंध से और बाज पदार्थ रस से क्यों खाली है।


अब असल मजमून से थोड़ा सा हट कर हम यह दिखलायेंगे कि पास गैस गंध से और पाश पदार्थ रस में क्यों खाली हैं । यह पपान किया जा चुका है कि पायो तस्यों की तन्मात्राएँ एक एक करके पाँच ज्ञानेंद्रियों के अंतर्गत कायम हैं । कि इन तन्मात्रामों और इनके संबंधी तत्वों के पाट एक ही हैं इस लिये जब तक किसी तत्व के अंदर बाहर से दखल फसल नहीं होता , उस तत्व का कोई असर उसकी तन्मात्रा वाली ज्ञानेंद्रिय पर नहीं परता । यही वजह है कि जिससे अकेला वायु तय हमारी नासिका इद्रिय पर कोई असर नहीं डाल सकता और न ही कोई ऐसा गैस भी , जो वायु तत्व की सी सूक्ष्मता रखता हो , कोई असर पहुँचा सकता है । हम दफा ९ ७ में पयान कर चुके हैं कि पाँच तस्य दर असल परमाणुओं की पाँच किस्म की जुदामाना तरतीच का नाम है और यह जो स्थूल अग्नि , जल , वायु वगैरह देखने में आते हैं , पाँच तच्च नहीं हैं । इस लिये जिस तरह स्वयं या अकेला वायु तत्व ( जो परमाणुओं की एक किस्म को तरतीय है ) हमारी नासिका इंद्रिय पर कोई असर नहीं पहुंचा सकता उसी तरह और तत्व भी ( जो परमाणुओं की दूसरी किस्म की तरतीबें हैं ) अपने मुतमल्लिक ज्ञानेंद्रियों पर स्वयं कोई असर नहीं पहुँचा सकते।
 

         यहाँ पर एक उदाहरण पेश करते हैं ताकि मजमून ज्यादा साफ हो जाये । देखो , गर्मी पानी ताप - अवस्था जब तक यक्ष्मता के उस दर्जे को प्राप्त नहीं हो जाती जिसमें परमाणु आकाश ( ईथर ) के पाट पर कारकुन शक्ति के साथ तमलुक कापम कर सकें उस वक्त तक गर्मी सिर्फ स्थूल शरीर के द्वारा हमारी त्वचा इद्रिय पर असर डालती है और दर्शनेंद्रिय द्वारा प्रकाश की शक्ल में नजर नहीं भाती लेकिन ज्यों ही ताप अवस्था को यह गति , जिसका ऊपर शिक्र हुआ , प्राप्त हो जाती है त्यों ही हमारी दर्शनेंद्रिय के अंतर में में मौजूद तन्मात्रा पर असर पहुँच कर हमको प्रकाश का ज्ञान होने लगता है । खुलासा यह है कि जब पाँच तत्वों के अंदर इस किस्म की हरकत आ जाती है कि जिससे उनके सूक्ष्म घाटों तक असर पहुँच जाये तो जो शहसं यानी ज्ञाता उस वक्त हरकत के दायरे के अंदर मौजूद होगा उसको ज्ञानेंद्रियों के द्वारा वह हरकत शब्द , प्रकाश , गंध , रस या स्पर्श में से किसी न किसी के रूप में महसूस होगी । अक्सर ऐसा भी होता है कि किसी शक्ति से पैदा होकर एक ही हरकत एक से ज़्यादा ज्ञानेंद्रियों पर असर डालती है जिससे एक ही वक्त एक से ज्यादा इंद्रियों के विषयों का ज्ञान प्राप्त होता है । मसलन अगर कहीं पर वारूद फटे तो हमारी श्रवण और दर्शन और वाज वक्त नासिका इंद्रिय पर भी असर पड़ता है । जाहिरन खयाल करने से दर्शनेंद्रिय के मुकाबिले में श्रवणेंद्रिय ज़्यादा स्थूल समझी जाती है लेकिन यह खयाल दुरुस्त नहीं है । इसका सुबूत आगे को दफा में पेश करते हैं ।






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