Wednesday, December 23, 2020

श्रवणेंद्रिय दर्शनेंद्रिय की निसबत ज़्यादा सूक्ष्म है ।

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श्रवणेंद्रिय दर्शनेंद्रिय की निसबत ज़्यादा सूक्ष्म है ।


         हम लोगों को यहाँ पर शब्द का ज्ञान तब होता है जब शक्ति क्रियावती हो और उसकी क्रिया हमारे सुनने के औजार यानी कान तक पहुंच जावे । हमारा यह सुनने का औजार , जैसा कि देखने में प्राता है , ठोस , तरल और थोड़े से वायव्य मसाले से मिल कर बना है इस लिये इस पर सिर्फ ऐसी शक्ति असर डाल सकती है जो अपनी हरकत ठोस , तरल और वायव्य प्रकृति ( माद्दे ) के घाट तक पहुंचा सके । मगर यह सब बयान तो उस दौरान का है जिसमें शक्ति का तथल्लुक श्रवणेंद्रिय के स्थल घाटों तक महद्द रहता है , लेकिन तमाम शनियाँ स्थल घाटों पर नमूदार होने वाले कार्यरूप के अलावा अपने मूक्ष्म रूप भी रखती है और , जैसा कि नीचे के बयान से जाहिर होगा , पक्तियों का यही सूक्ष्म रूप हम को शब्द की शक्ल में महसूम होता है । दफा ८ में जिक्र किया गया था कि जन्म - दिन से लेकर परायर कसरत जारी रहने से हमारे शरीर की मुख़्तलिफ शक्तियाँ जग गई हैं और जो कुछ इल्म यानी मानसिक ज्ञान हम को हासिल है वह सब का सप शरीर की मारफत ग्रहण किये हुए नकशी यानी संस्कारों से प्राप्त हुआ है , इससे जाहिर है कि संस्कार ग्रहण करने वाले सूक्ष्म पर्दे यानी तन्मात्राएँ संस्कारों को अपने तक पहुँचाये जाने के लिये शरीर के विलाल आश्रित हैं । सुनाँचे जब अव्वल शरीर पर किसी क्रिस्म का संस्कार पड़ लेता है तभी कोई तन्मात्रा हरकत में पाती है और तभी उस तन्मात्रा वाली ज्ञानेंद्रिय को उस संस्कार का ज्ञान प्राप्त होता है । इससे नतीजा निकलता है कि जब तक कोई शक्ति हमारी श्रवणेंद्रिय के शरीर संबंधी मसाले पर अपना असर न डाले उस वक्त तक हमारी श्रवणेंद्रिय को उसका मुतलक ज्ञान नहीं हो सकता क्योंकि , जैसा पहले कह चुके हैं , हमारे अंदर श्रवण शक्ति क्रियावती ही तब होती है जब शरीर की मारफत उस तक कोई असर पहुँचे । श्रवणेंद्रिय के स्थूल औजार ( कान ) तक शक्ति के पहुँच जाने पर आईदा एक उलटी कारवाई शुरू होती है यानी वहाँ से ( श्रवणेंद्रिय के स्थूल घाट से ) शक्ति अपने सूक्ष्म रूप से उस इंद्रिय की तन्मात्रा के अंदर प्रवेश करती है । शक्ति का वह सूक्ष्म रूप , जिससे वह तन्मात्रा के अंदर प्रवेश करती है , आगे बयान करते हैं ।

          यह ऊपर बयान हो चुका है कि जो शक्ति हमारे स्थूल कानों पर अपना असर डालती है वही हम को शब्द की शक्ल में महसूस हो सकती है और कि हमारे स्थूल कान ठोस , तरल और वायव्य मसाले से बने में इस लिये जाहिर है कि जो शक्ति स्थूल कानों पर असर डालती है वह दर असल पृथ्वी को माध्याकर्षण शक्ति ( Force of Gravitation ) पर असर रालती है क्योंकि स्थूल प्रकृति इन तीन अवस्थाओं में विशेष करके इस आकर्षण शक्ति ही के प्रभाव से ठहरी हुई है । इस लिये जब कभी स्थून प्रकृति के इन पाटों में से किसी एक पर शक्ति की हिलोरें वाकै होती है तो पृथ्वी की आकर्षण शक्ति की जानिब से प्रतिक्रिया प्रकट होती है और यह प्रतिक्रिया ( उलटी हिलोर ) शक्ति की क्रिया ( हिलोरों ) के संग संग चारों तरफ फैल जाती है । मालूम हो कि शक्ति के सूक्ष्म रूप से हमारी मुराद आकर्षण शक्ति की इस प्रतिक्रिया ही से थी । 

         थोड़ा सा और गौर करने पर मालूम होगा कि इस पृथ्वी की माध्याकर्षण शक्ति सूर्य के पृथ्वी पर भाकर्षण होने की वजह से पैदा होती है । सूर्य का यह आकर्षण नुम्बक के आकर्षण से किसी कदर मुशावह है और पृथ्वी व सूर्य के दरमियान जो आकाश फैला है उसके द्वारा यह जहूर में आता है । पस मालूम होता है कि आकाश के अंदर जो शक्ति माध्याकर्षण के रूप में क्रियावती है वह हमारे शब्द ज्ञान की प्राप्ति के सिलसिले में हमेशा हिस्सा लेती है और इस लिये ऊपर के कुल बयान से यह नतीजा निकालना गलत न होगा कि जय शक्ति को हिलोरें पंच ज्ञानेंद्रियों के स्थूल घाटों पर हलचल मचाती हैं तो उनका असर ज्ञानेंद्रिय तक पहुँचता है वरना ज्ञानेंद्रियों को उनकी कोई खबर नहीं होती । लेकिन अगर कोई शख़्स राधास्वामी मत के अभ्यास की युक्ति की कमाई करके अपनी सुरत को मामूली घाटों के बजाय ऊँचे स्थानों या चक्रों पर जगावे तो अलबत्ता उसकी ज्ञानेंद्रियों की तन्मात्राएँ संस्कार लेने के लिये स्थूल शरीर की मोहताज न रहेंगी और अनेक दर्जे की सूक्ष्म हिलोरें , जो संसार में हमेशा चलती रहती हैं , सब की सब उसके ज्ञान में आने लगेंगी । मनुष्यों के अंदर ऊँचे घाटों से ताल्लुक रखने वाली असाधारण अवस्थाओं में प्रवेश करने पर जो सूक्ष्म शक्तियाँ जग जाती हैं वे इसी तरीके से जगा करती हैं । हमारी राय में अब काफी तौर पर वाजह हो गया है कि श्रवणेंद्रिय ऐसी स्थूल नहीं है जैसा कि आम तौर पर खयाल किया जाता है ।

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