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१०२ - गुणों का प्रकृतियों से मेल और चौरासी धारें ।
तीन गुण नीचे उतरते हुए रास्ते में उन पचीस प्रकृतियों से , जिनका दफा ९ ३ में जिक्र हुआ , मिले और नीज़ उन्होंने आपस में संयोग किया और इस तरीके से चौरासी मुरक्कब धारें - पचहत्तर धारें प्रकृति की और नौ धारें खालिस गुणों की तैयार हो कर पिंड देश में उतरीं । इन चौरासी सूक्ष्म धारों ही को चौरासी लक्ष कहते हैं । पिंड देश की जितनी भी जानदार व बेजान कायनात यानी सृष्टि है सब के शरीर का मसाला और सबकी क्रियाएँ इन्हीं चौरासी धारों से बरामद हुई । पचहत्तर प्रकृति की धारों का इजहार यहाँ पर मूल पदार्थों ( Elements ) के भाव में देखने में आता है जिनमें से हर एक के अंदर बवजह जुदागाना होने शक्ति की धारों के और नीज बवजह मुख़्तलिफ होने उन आदि - तत्वों के , जिनका मसाला उनमें लगा है , अलहदा अलहदा सिफ्रात कायम हैं।
१०३ - पिंड देश में चार खानि की रचना ।
दफा ९ ७ में यह बयान हुआ था कि आकाश ( ईथर ) के जिम्मे खास कर यही काम है कि शक्ति की धारों के लिये वाहन यानी सवारी का काम दे और यह किसी को मालूम नहीं है कि इसके अलावा वह तत्त्व और कौन फरायज अदा करता है । बाकी के चार तव सुरतों के लिये हमारे जैसे सूक्ष्म व स्थूल शरीरों का मसाला बहम पहुँचाते हैं । रचना के उस हिस्से में , जो ब्रह्मांड देश के तत्वों के पाँच मंडलों से नीचे कायम है , जिस क्रदर जानदार और बेजान कायनात है वह चार खानि में मुनकसिम है जिसको जरायुज , अंडज , स्वेदज और उद्भिज्ज कहते हैं । पहली तीन खानियों में सिर्फ जानदार आते हैं और चौथी खानि में धातुएँ और पृथ्वी से उपजने वाले सब पदार्थ शामिल हैं । जरायुज खानि के शरीरों में अग्नि तत्व प्रधान है और बाकी तीन खानियों के शरीरों में वायु , जल और पृथ्वी एक एक करके प्रधान हैं । इन सानियों के नामों के शब्दार्थ ये हैं :-( १ ) जरायुज - जरायु यानी झिल्ली से उत्पन्न होने वाला ( २ ) अंडज - अंडे से उत्पन्न होने वाला ( ३ ) स्वेदज - स्वेद यानी पसीने या जल से उत्पन्न होने वाला और ( ४ ) उद्भिज्ज --- पृथ्वी से या पृथ्वी फोड़कर उत्पन्न होने वाला । पिंड देश में जो तारागण और सूर्य पैदा किये गये हैं उनके जिम्मे विशेष करके वही काम है जो शरीर का रचनात्मक अंग कहलाता है ( ऊँचे दर्जे की योनियों में जो शरीर का बोधनात्मक अंग प्रकट होता है वह एक अलहदा बात है ) , चुनांचे उनका स्थूल मसाला हमारी रगों के केंद्रों के मसाले से मिलता है और रगों की तरह वे अपने कुल निजाम को ताकत पहुँचाते हैं और उसके जीवन के आधार हैं । इन लोकों के धनी या देवता अपने लोक के स्थूल मसाले के अंदर निवास नहीं करते बल्कि हर एक लोक के संग जो सूक्ष्म मंडल लगा है उसी में उसके देवता का निवास है और जैसे मनुष्य शरीर के अंदर रगों के केंद्र अपने मुतमल्लिक गुप्त चेतन घाटों ( चक्रों ) के मातहत है वैसे ही वे लोक भी अपने अपने देवता के मातहत हैं । पिंड देश के सबसे नीचे के हिस्से के इस किस्म के लोकों की चेतनता इस कदर न्यून है कि उनकी रचनात्मक क्रिया वनस्पति - योनि की रचनात्मक क्रिया के समान हो गई है।
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