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१०४ - पिंड के छः स्थान और उनके धनी ।
चौरासी लक्ष धारों के अलावा , जिनका पीछे जिक्र हुआ , ज्योति और निरंजन की धारें भी पिंड देश में उतरीं । इनके सबसे सूक्ष्म स्वरूप का तअल्लुक पिंड देश की चोटी के स्थान के धनी के साथ है और वाकी दो स्वरूप जो पहले के मुकाविले कम सूक्ष्म हैं , नीचे के स्थानों के धनी हो रहे हैं । इसी तरह पर विष्णु , ब्रह्मा और शिव की धारें पिंड के निचले तीन स्थानों में अलहदा अलहदा ठहरी हुई हैं । मनुष्य - शरीर के अंदर ज्योति व नारायण की धारें इच्छा और मन की शक्ल में प्रकट हो रही हैं और अंशरूप से शरीर के हृदय - चक्र में कायम हैं जहाँ इच्छा और मन की क्रिया प्रकट रूप से जारी है । इनके सूक्ष्मरूप कंठ - चक्र और सुरत की बैठक के मुकाम यानी आज्ञा - चक्र में कायम हैं ( देखो दफा १८ ) , लेकिन इन चक्रों में उनकी क्रियाएँ प्रकट नहीं हैं और इस लिये सुरत की गुप्त शक्तियाँ जगने ही पर उनका ज्ञान हो सकता है । इसी तरीके पर मनुष्य - शरीर के नीचे के तीन चक्रों में विष्णु , ब्रह्मा और महादेव की शक्तियाँ मौजूद हैं और शरीर के पालन पोषण , संतानोत्पत्ति और मल मूत्र वगैरह के खारिज करने का काम कर रही हैं । मनुष्य - शरीर के इन छः चक्रों से मुताबिक्रत रखने वाले पिंड देश में जो छः स्थान हैं उनके नाम ये हैं : -चन्द्र स्थान , सूर्य , पृथ्वी , बृहस्पति , शनि और नेपच्यून ( Neptune ) यानी वरुण तारा । इनके अलावा जो दूसरे ग्रह मशहूर हैं वे दर असल उपग्रह हैं और अपने नजदीक के ग्रहों के सहायक हैं । मनुष्य - शरीर के रगमंडल के अंदर भी मुख्य केंद्रों के करीव इस नमूने के छोटे केंद्र काम कर रहे हैं । जैसे मनुष्य - शरीर में नीचे के तीन चक्रों का सेट ऊपर के तीन चक्रों के सेट से अलहदा बना है इसी तरह पिंड देश के निचले तीन स्थान भी ऊपर के तीन स्थानों से बहुत कुछ स्वतंत्र हैं । बृहस्पति ग्रह भी , जो कि विष्णु का अंश है , अपने धनी की तरह सूर्य से कम व वेश स्वतंत्र है । चंद्र स्थान से जो चेतन धार उतर कर पिंड के सब से निचले स्थान तक जाती है इन दोनों सेटों को परस्पर सूत्रबद्ध कराती है । चूंकि चंद्र स्थान और मनुष्य की सुरत का घाट एक ही है इस लिये ज्योतिषी लोग इसके जरिये मनुष्यों की राशि कायम करके उनके स्वाभाविक गुण मालूम किया करते हैं । यह चंद्र स्थान ही वह भंडार है जहाँ से पिंड देश की तमाम जानदार कायनात को आदि में चेतनता वहम पहुँची और जहाँ से एक दूसरी धार , जिसको जड़ - चेतन ( जड़ प्रकृति की जान ) कहते हैं , पिंड देश के स्थूल मसाले में उतर कर आती है । बिजली - शक्ति , जो पृथ्वी पर तजरुवे में आती है , इस जड़ - चेतन धार ही का इजहार है । संतों की वाणी में इस जड़ - चेतन धार को बिजली के नाम से मौसम किया गया है । चंद्र स्थान के नीचे तत्वों की पाँच धारों के सूक्ष्म मंडल कायम हैं और अलहदा अलहदा रंग लिये हुए चमक रहे हैं । नीचे लिखी हुई कड़ी में इसी मजमून को अदा किया गया है :-
" पाँचरंग निरखे तत सारा । चमक बीजली चन्द्र निहारा । फोड़ा तिल का द्वारा हो । "
यानी मैंने सार तत्त्वों के पाँच रंग देखे और चंद्र स्थान की बिजली की चमक को निहारा और बाद में तीसरे तिल यानी ब्रह्मांड देश का दरवाजा तोड़ डाला (देखो दफा १०१)।
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