Tuesday, December 29, 2020

१०५ - पिंड देश के वासी ।

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१०५ - पिंड देश के वासी ।



पिंड देश के वासियों के शरीर उनके निवास स्थान के मसाले से रचे गये हैं । मसलन् इस पृथ्वी के जानदारों के शरीर का मसाला पृथ्वी के स्थूल व सूक्ष्म मसाले ही से लिया गया है । सूर्यलोक और चंद्र स्थान , जो पृथ्वी से ऊँचे दर्जे पर वाकै हैं , पृथ्वी को निसबत बहुत ज्यादा सूक्ष्म व बारीक मसाले से रचे गये हैं और इसी लिये वे निहायत रोशन हैं और पृथ्वी के मुकाबिले में उनके अंदर चेतनता और शक्ति विशेष है और यही वजह है कि जिससे इन लोकों के वासियों के शरीर हम लोगों यानी पृथ्वी के वासियों की निसबत ज्यादा सूक्ष्म और रोशन हैं । उनका जीवन भी यहाँ के मुकाबिले में बहुत ज्यादा सुखदायक है । पाँच तत्त्व और चौरासी धारें , जिनका दफा १०२ में जिक्र हुआ , ब्रह्मांड से पिंड देश के अंदर उतरने में दर्ज बदर्ज स्थूल होती चली आई हैं । चंद्र स्थान और सूर्यलोक में ये धारें बहुत सूक्ष्म हैं लेकिन इनके अलावा दूसरे स्थानों में , ज्यों ज्यों चंद्र स्थान से दूरी होती गई , स्थूलता आती गई । पृथ्वी लोक के तजरुबे की बुनियाद पर हम लोग कुदरती तौर पर खयाल कर सकते हैं कि सब लोकों में ठोस , तरल और वायव्य मसाले के अंदर ही जीव बसते हैं लेकिन यह खयाल ठीक नहीं है क्योंकि हर एक लोक के सूक्ष्म मसाले के अंदर भी जीव वसते हैं , जिनके शरीर मसाले के लिहाज से सूक्ष्म रहते हैं । मनुष्य के इस पृथ्वी पर तीन शरीर हैं जिनको स्थूल सूक्ष्म और कारण शरीर कहते हैं और ये तीन शरीर गोया ब्रह्म के तीन शरीरों की छाया हैं । इस लिये हमारा यह बयान कि अकेली मूक्ष्म देह में भी जीव रह सकते हैं कथन मात्र नहीं है क्योंकि स्थूल शरीर के अंदर रहते हुए भी जीव का सूक्ष्म शरीर मौजूद रहता है । 

         जब तक हम स्थूल घाट पर बरतते हैं हमारा सूक्ष्म शरीर कम व घेश अचेत रहता है लेकिन जब हम स्वप्न , सक्ते वगैरह की अवस्थाओं में प्रवेश करते हैं तो उस वक्त वह सचेत हो जाता है । नीज़ प्रेत - योनि में , जिसकी निसवत अब किसी को शुबह नहीं रहा है और जिसमें हालत मनुष्य योनि के घरअक्स रहती है , सूक्ष्म शरीर हर वक्त कारकुन रहता है और स्थूल शरीर मौका बमौका प्रकट हुआ करता है । प्रेत - योनि से किसी कदर मिलते जुलते ढंग पर पिंड देश के सब लोकों के सूक्ष्म मंडलों में जीव निवास करते हैं । यह बयान करने की चंदाँ जरूरत नहीं है कि पृथ्वी से नीचे के स्थानों में जो जीव बसते हैं वे पृथ्वी के वासियों की निसबत बहुत नीचा दर्जा रखते हैं । प्रेत - योनि के जीव हमेशा संसारी वासनाओं और बंधनों के कारण इस पृथ्वी पर अपना इजहार किया करते हैं और उनकी वासनाओं और बंधनों के मुवाफिक उनकी क्रियाएं फायदा या नुकसान पहुँचाने वाली हुआ करती हैं । चूँकि नीचे के तीन चक्रों के जिम्मे ज्यादातर ऐसे काम हैं जो दोनों मनुष्य और पशु योनियों में शामिलात हैं इस लिये उनकी क्रियाओं से अदना खयालात और जज़्बात की बू आती है और ऊँचे दर्ज की वासनाओं व खयालात से उनका कतई वास्ता नहीं है । चुनाँचे निचले तीन स्थानों के वासी भी ज्यादातर पशुओं की सी हरकतें करते हैं औ वहाँ के सूक्ष्म शरीर वाले जीव दुष्ट स्वभाव वाले और अमूमन बदकार हैं । उनके सुख और भोग भी बहुत अदना किस्म के हैं जिनका मनुष्यों के सुखों और भोगों से किसी हालत में मुकाबिला नहीं हो सकता । इन सूक्ष्म शरीर वाले जीवों की खसलत कम व वेश नरक के जीवों की सी है ।

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