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७१ - कबीर साहब का हवाला ।
हमने पीछे जिक्र किया था कि कपीर साहब ने अपने एक शब्द में इस परम पवित्र नाम का हवाला दिया है । जिस साखी में इसका जिक पाया है वह यह है :-
" कधीर धारा अगम की सतगुरु दई लमाय ।
उलट ताहि सुमिरन करो स्वामी संग मिलाय । "
यानी कबीर साहब फरमाते हैं कि सच्चे गुरु महाराज ने अगम यानी गम्प से परे पुरुष की धारा की परख करा दी है । ' धारा ' को उलट कर और ' स्वामी ' से जोड़ कर जो शब्द बने उसका सुमिरन करो ।
७२ - साधन की तीन युक्तियों के मुतअल्लिक खास बातें।
यहाँ पर साधन की उन तीन युक्तियों का वर्णन खतम हो जाता है जिनके जरिये से चेतनता का जगना और सुस्त का ऊँचे मंठलों में रसाई हासिल करना मुमकिन है । सुरत की बैठक के मुकाम पर परम पवित्र राधास्वामी नाम का अंतर में यानी मुरत की जवान से सुमिरन और उस मुकाम पर वक़्त गुरु के स्वरूप का ध्यान करने का अभ्यास आम तौर पर शुरू में प्रेमी भक्त से कराया जाता है ताकि उसकी सुरत का सिमटाव होने लगे और गुप्त रूहानी शक्तियाँ जाग उठे । इस साधन की मदद से उसकी सुरत में शब्द - अभ्यास की कमाई करने के लिये काफी योग्यता या बल आ जाता है लेकिन ऐसा नहीं होता कि शब्द - अभ्यास शुरू कर देने पर मुमिरन ध्यान की युक्तियों की कमाई बिलकुल छोड़ दी जावे । घरखिलाफ इसके इन युक्तियों का अभ्यास रोजमर्रा के साधन का अंग यानी जुज बना रहता है । कुछ तरक्की होने पर सुमिरन और ध्यान की कारवाई छठे चक्र के बजाय उससे ऊपर के स्थानों पर की जाती है और छठे चक्र की गुप्त शक्तियों की तरह ऊँचे स्थानों को गुप्त शक्तियाँ भी उसको मदद से जग सकती हैं लेकिन अगर वक्त गुरु रचना के सिर्फ दूसरे दर्जे तक रसाई रखने वाले हैं तो ब्रह्मदेश के परे के स्थानों पर उनके स्वरूप का ध्यान करना निष्फल होगा । अगर कोई अभ्यासी इस मामले में हठ यानी जिह से काम लेगा तो वह ध्यान अंतरी तरक्की में विघ्न यानी रुकावट की सूरत पैदा करेगा । इन स्थानों पर संत सद्गुरु यानी निर्मल चेतन देश में पहुंचे हुए वक्त गुरु के ही स्वरूप का ध्यान करना मुनासिय है । मगर खयाल रहे कि सद्गुरु स्वरूप का ध्यान करने से निर्मल चेतन देश से नीचे के स्थानों में भी पूरा फायदा हासिल होता है यानी ऐसा नहीं है कि यह ध्यान सिर्फ निर्मल चेतन देश के स्थानों ही पर मुफीद हो । यही वजह है कि संत मत में शुरू ही से संत सद्गुरु स्वरूप का ध्यान करने के लिये हुक्म दिया गया है । चूंकि वह फर्क , जो यहाँ पर स्वरूपों के ध्यान के बारे में पपान हुमा , मुनासिब रह व बदल के साथ ब्रह्म के पवित्र नाम ' ॐ ' और कुल मालिक के निज नाम ' राधास्वामी ' के सुमिरन में भी मौजूद है इस लिये संत मत में सुमिरन के लिये भी शुरू ही से कुल मालिक का निज नाम इस्तेमाल करने की हिदायत है ।
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