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७३ - दरमियानी अरसे में किस स्वरूप का ध्यान किया जाता है ।
पीछे यह बयान हुआ है कि राधास्वामी मत में सिर्फ जिंदा यानी वक़्त गुरु के स्वरूप का ही ध्यान करने के लिये हुक्म है । इससे कुदरती तौर पर खयाल हो सकता है कि वक़्त गुरु के गुप्त होने पर ध्यान का अभ्यास बंद कर दिया जाता होगा , लेकिन यह खयाल दुरुस्त नहीं है । सद्गुरु वक्त के गुप्त होने और उनके जानशीन के प्रकट होने के यक़फे में पिछले स्वरूप का ध्यान पदस्तूर जारी रहता है और इससे तबज्जुह के अंतर में लगने में सहायता मिलती है । लेकिन ऐसे ध्यान से तवज्जुह के लगने में और बात गुरु के स्वरूप के ध्यान से सुरत के सिमटाव में पड़ा फर्क रहता है जैसे किसी फ्रौतशुदा यानी मृत्यु को प्राप्त मित्र या रिश्तेदार की तसवीर देखने से जो खयालात हमारे अंदर पैदा होते हैं उनमें और उन भावों में , जो जिंदगी की हालत में उन लोगों को जानिब तवज्जुह करने से पैदा होते थे , फर्क रहता है । पहली हालत में यानी तसवीर देखने पर हमारे मन में वियोग का दुःख व्यापता है और दूसरी हालत में उमंग , प्रेम और हर्ष पैदा होते हैं ।
७४ - साधन को युक्तियाँ हर शख़्स को नहीं बतलाई जाती ।
अभ्यास की तीन युक्तियों को निसबत जो कुछ पीछे जिक्र हुआ है वह सिर्फ साधन के सिद्धांतों या उगलों और उनके माहात्म्प या फल का चपान है । साधन की असली युक्तियाँ राधास्वामी दयाल के उपदेश का सीना पसीना चलने वाला राज है इस लिये वे दीक्षा या मंत्र देते वक्त समझाई जाती है । दोधा के वक़्त सिर्फ युक्तियों की विधि के मुतअल्लिक हिदायतें दी जाती हैं और किसी तरह की बाहरी रस्म रघम की काररवाई नहीं कराई जातो । दीक्षा लेने वाले को अलपत्ता साफ तौर पर भागाह कर दिया जाता है कि पनौर एक सज्जन पुरुष पानी शरीफ प्रादमी के उसको बचन देना होगा कि वह साधन की युक्तियाँ किसी दूसरे शाहस को हरगिज न बतलावेगा , लेकिन उससे किसी किस्म की कसम नहीं उठवाई जाती क्योंकि जो शल्स अपने पचन का पालन नहीं कर सकता यह शराफत से खाली है और उसकी कसम का भी क्या एतबार हो सकता है ?
७५ - संसारी हालतों , मन की रुचियों और वासनाओं का साधन पर असर ।
साधन की युक्तियों की कमाई पर नीचे लिखी हुई बातों का भारी असर पड़ता है :-
( १ ) अम्पासी की निज की जिंदगी और जगत के संग व्यवहार के मुतमल्लिक दुनियवी हालातों का ।
( २ ) उसकी आदतों और सान पान का ।
( ३ ) उसके औरों के साथ बरताव का ।
( ४ ) उसकी मान पढ़ाई के लिये चाह की तेजी का ।
( ५ ) उसके अपने माल असबाब व रिश्तेदारों के साथ बंधन का ।
( ६ ) उसके दूसरे संसारी बंधनों का ।
इस पुस्तक के आखिरी भाग में , जिसमें जीयों के कर्मों का जिक्र होगा , बयान किया जायेगा कि शौकीन अभ्यासी को इन सब मामलात में किन किन कायदों की पाबंदी करनी चाहिए । इस वक्त हम रचना की तरतीब और उसके इंतजाम य उद्देश्य का बयान शुरू करते हैं क्योंकि रचना के वासियों के कर्मों पर सृष्टि नियमों का भारी असर पड़ता है और कर्मों का हिसाब उस वक्त तक पूरे तौर पर समझ में नहीं आ सकता जब तक कि सृष्टि नियमों से किसी कदर वाकफियत न हो जाये।
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