Monday, December 7, 2020

७६ - रचना से पहले क्या दशा वर्तमान थी

👉👉👉 :- https://dayalbaghsatsang123.blogspot.com/2020/12/blog-post_6.html

बयान रचना के रूपवती होने का यानी रचना

के जाहिर होने की असली तरतीब

का और उसके इंतजाम

उद्देश्य का

७६ - रचना से पहले क्या दशा वर्तमान थी


     रचना के रूपवती होने की तरतीच ( सिलसिले ) का बयान करने के लिये चुंकि यह लाजिमी है कि अब्बल रचना से पहले की दशा वस्त्र यी समझ ली जाये इस लिये यहाँ पर उस दशा का खाका पेश करते हैं चूंकि विज्ञान की दृष्टि में सिर्फ ऐसे ही बाद अनुमान माननीय होते हैं जो हमारे इंद्रिय ज्ञान की बुनियाद पर कायम हों इस लिये आदि दशा का वर्णन करने के लिये हमको उचित सामग्री इस प्रत्यक्ष सृष्टि ही से लेनी चाहिए चुनाँचे विचार करो कि अगर रचना की मौजूदा हर एक चीज़ की तोड़ फोड़ शुरू की जाये तो क्या सूरत नमूदार होगी इस अमल से सब टोस मसाला दजें बदले सूक्ष्म ( तरल , वायव्य वगैरह ) अवस्थाओं में प्रवेश करता जावेगा ( देखो सफा ६८ ) और होते होते शक्तिमय अवस्था हो जायेगी अलबत्ना उसके अंदर काबिलियत हाल के मुतलिफ दर्जी की तफरीक कबूल करने यानी भिन्नता को प्राप्त होने की मौजूद होगी क्योंकि उसके बगैर मौजूदा रूप में रचना का इजहार मुमकिन था बेहतर अलफाज मौजूद होने की वजह से इस अवस्था को शक्ति की निचली वह ' ( Lower Stratum ) कह सकते हैं प्रादि दशा की निसयत जो पक्ष या सिद्धांत यहाँ पर स्थापित किया गया उसकी मिसयत यह बयान में लाने की चंदा जरूरत नहीं है कि वह एक प्रसिद्ध सचाई की बुनियाद पर कायम है यामी इस बात पर कि मौज्दा रूपवती रचना ऊपर बयान किये हुए तरीके के बमुजिब उलट जाने की योग्यता ( क्राबिलियत ) रखती है अब एक और बात देखिए - स्थूल प्रकृति यानी माहे के अंदर शक्ति के मुकाबिले में यह खुसूसियत है कि मादा शक्ति पर कैद यानी रोक लगाता है चुनाँचे माद्दे के तमाम ज़रों ने , चाहे वे परमाणु करार दिये जावें या अयन या उनसे भी कोई ज्यादा सूक्ष्म चीज़ , जिस कदर शक्ति अपने अंदर जज्ब कर रक्खी है वह हमेशा जकड़बंद रहती है अब अगर माहे के इस गुण को खपाल में रख कर शक्ति की अवस्था पर गौर करें तो नतीजा निकलता है कि रचना से पहले जब शक्ति और उसके अंदर कायम माहे वाले गुण के सिवाय कुछ था और शक्ति गुप्त अवस्था में थी क्योंकि शक्ति के चलायमान ( कारकुन ) होने ही से रचना की शुरुवात हुई - हालत यह थी कि शक्ति के क्षेत्र में लातादाद नुक्तों पर शक्ति की असंख्य धारें काम कर रही थीं लेकिन शक्ति को धारों का रुख अंतर्मख था जिसकी वजह से शक्ति को शून्यता सी हो रही थी और नीज़ शक्ति पर रोक लगाने वाला नुत्तों ( माहे ) का गुण , जिसकी निसबत ऊपर जिक्र हुआ , शक्ति से न्यारा तमीज़ होता था दूसरे लफ़्जों में हालत यह थी कि नुक़्तों को मारफ़त अंतर्मुखी होकर शक्ति नुक्तों के अंदर गुप्त थी

७७ - आदि - शक्ति का न्यूनाधिक ( ध्रु बीय ) भाव

     शक्ति की ' गुप्त ' अवस्था की निसवत जो जिक्र ऊपर हुआ उसके मतलब को जरा और वाजह कर देना जरूरी मालूम होता है जब शक्ति किसी ऐसे घाट से , जो उसका असल निवास स्थान नहीं है , अपने असली स्थान में खिंची हो , लेकिन उसमें सामर्थ्य यानी काबिलियत इस दूसरे पाट पर प्रकट होने की मौजूद रहे , तो शक्ति पहले पाट पर गुप्त कही जाती है शक्ति का इस प्रकार खिंचाव होने  ही के कारण वह शून्य क्षेत्र , जिसका ऊपर की दफ़ा में जिक्र किया गया , ज़ाहिर हुआ और वही आदि शक्ति के ध्रुवीय यानी न्यूनाधिक भाव का न्यून अंग था जाहिर है कि अगर इस प्रकार का अनादि न्यूनाधिक भाव मौजूद होता तो इस वक़्त प्रकृति की सब शक्तियों के अंदर जो न्यूनाधिक भाव का खेल देखने में आता है वह सुमकिन ना था

https://dayalbaghsatsang123.blogspot.com/2020/12/blog-post_6.html

No comments:

Post a Comment

१२४ - रचना की दया किस रारज से हुई

     १२४ - रचना की दया किस रारज से हुई ?   कुल मालिक एक ऐसा चेतन सिंधु है कि जिसके परम आनंद व प्रेम का कोई वार पार ...