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११३ - जन्म लेने से पहले सुरतें किस अवस्था में रहती हैं ?
यह बयान किया जा चुका है कि निर्मल चेतन देश के वासी मृत्यु से रहित हैं क्योंकि उनका देश अविनाशी है । रचना के दूसरे दजें यानी ब्रह्मांड में भी पृथ्वीलोक की सी मृत्यु नहीं होती है और यहाँ के वासी ज्यादातर महाप्रलय के जमाने तक बराबर जिंदा रहते हैं । ब्रह्मांड का नाश होने पर वहाँ के वासी रचना से पहले की अवस्था में उलट जाते हैं और ब्रह्मांड की नये सिरे से रचना होने पर उनका फिर से जन्म हो जाता है । ब्रह्मांड देश के जीव जब पिंड देश में उतरते हैं तो उनके अंदर मनुष्य के मृत्यु - समय की सी तबदीली नहीं होती , अलबत्ता ऐसे मौके पर उनको मनुष्य के जन्म लेने से पहले की अवस्था धारण करनी पड़ती है ।
इस अवस्था से हमारा मतलब गर्भवास की अवस्था से नहीं है बल्कि उस चेतन समाधि की दशा से है जो जन्म लेने वाला जीव जन्म लेने से पहले धारण करता है । हर कोई जानता है कि बच्चा जब तक माता के गर्भ में रह कर परवरिश पाता है उस वक़्त तक वह साँस नहीं लेता है और गर्म से पाहर निकलने पर साँस लेने की क्रिया जारी होती है । गर्भवास के दौरान में बच्चे को परवरिश माता के खून से हुआ करती है इस लिये गर्भवासी बच्चे के शरीर की तैयारी का सब काम माता के जिम्मे रहता है और जो जीव आगे चलकर उस गर्भ वाले शरीर को धारण करता है उसका उस शरीर से बहुत दूर पार का संबंध रहता है । गर्भवास की हालत को , जिसमें साँस पंद रहता है , मूर्खा की अवस्था से तशवीह दी जा सकती है जिसमें मूर्छित की सुरत का उसके शरीर के साथ महज एक निहायत बारीक चेतन डोर के जरिये रिश्ता कायम रहता है वरना उसकी सुरत ज्यादातर मुर्दा शाइस की रूह की तरह जिस्म से आजाद होती है । सुरत की इस जन्म लेने से पेरतर पाली अवस्था को चेतन समाधि कहते हैं । मनुष्य शरीर धारण करने वाली सुरत यह समाधि ज्योतिनारायण के स्थान में लगाती है क्योंकि मनुष्य की सुरत का देह में कपाम छठे चक्र में रहने से उसकी मृत्यु - समय की देह से अलहदगी तभी हो सकती है जब वह खिंच कर छठे चक्र से परे प्रह्मांड के किसी स्थान में दाखिल हो और चूंकि ब्रह्मांड के निचले तीन स्थानों में नीचे की जानिय उतार के लिये झुकाव बहुत जोर के साथ है इस लिये वे स्थान समाधि लगाने के काबिल नहीं हैं और इस वास्ते ज्योति का स्थान , जिसमें कि मुकाविलतन् स्थिरता विशेष है , मनुष्य - शरीर में आने वाली सुरत के क़याम के लिये मौजूं है । देह के छोड़ने पर भी मनुष्य की सुरत ज्योति के सम्मुख खिंचकर पहुँचती है जिसका मुफस्सल जिक्र हम आइंदा दफा में करेंगे ।
चूँकि पिंड देश में ब्रह्मांड की निसबत प्रलय ज़्यादा मरतबा होता है इससे नतीजा निकलता है कि ऊँचे दर्जे की शक्ति का घाटा पूरा करने के लिये रचना के कम चेतनता वाले देशों में बमुकाविले ऊँचे देशों के ज्यादा जल्द जल्द रद्द व बदल की जरूरत है जिसकी वजह से पिंड देश के वासियों को भी बार बार मृत्यु झेलनी पड़ती है चुनाँचे इसी लिये पिंड देश को मृत्युलोक भी कहते हैं ।
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