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११५ - नीचे दर्जे के जीवों की मृत्यु का कायदा ।
मालूम होवे कि मृत्यु का यह इंतज़ाम , जो ऊपर की दफ़ा में बयान हुआ , सिर्फ मनुष्यों के लिये है । दूसरे जीवों की मृत्यु का कायदा बलिहाज उनकी सुरत की बैठक के मुकाम के किसी कदर मुख्तलिफ है । पृथ्वी पर पशुयोनि की बाज बाज देहें ऐसे नीचे दर्ज की हैं और नीज़ पृथ्वी से नीचे के तीन स्थानों की रचना ऐसी अदना है कि उनकी मृत्यु होने के लिये ब्रह्मांड में खिंचने की जरूरत नहीं है । पिंड देश के चौथे स्थान का धनी ही , जिसको शिव या पशुपति कहते हैं और जो नारायण की छाया है , चमदद ज्योति की छाया के , जो उसके संग रहती है , ज्योतिनारायण के तरीके पर इन नीच योनियों की मृत्यु कराता है ।
११६ - मनुष्य - शरीर धारण करने के योग्य जीवों की मृत्यु ।
वे जीव , जो ऊपर की जानिब रुख बाली धार की मारफत ऊँची योनियों में चढ़ते जाते हैं , जब उस मंजिल पर पहुँच जाते हैं कि आइंदा मनुष्य - शरीर के भागी हों तो उनकी मृत्यु दूसरी तरह से होती है यानी मृत्यु होने पर उनकी सुरत ब्रह्मांड में खींची जाती है और मनुष्य - शरीर धारण करने से पहले जो चेतन समाधि धारण की जाती है उसमें प्रवेश कराये जाते हैं । पिंड देश के सूर्यलोक और चंद्र स्थान की सुरतें मृत्यु होने पर ब्रह्मांड में खिंचती हैं और मुनासिब समाधि अवस्था धारण करने के बाद पृथ्वो पर मनुष्य - शरीर में जन्म लेती हैं ।
११७ - चेतन शक्ति और भौतिक शक्तियों में विरोध ।
चेतन शक्ति को पिंड देश में सात मुखालिफत का मुकाबला करना पड़ता है क्योंकि इस देश की सब की सब भौतिक शक्तियों का रुख चेतन शक्ति के विरुद्ध है । भौतिक शक्तियों का रुझान न्यून अंग के सिरे की तरफ है और चेतन शक्ति का स्वाभाविक मैलान ( जो हर सुरत के अंतर में मौजूद है ) निर्मल चेतन धाम पानी विशेष अंग की जानिय है । कुछ अरसे तक चेतन शक्ति भौतिक शक्तियों पर गालिब रहती है लेकिन विलअाखिर वे शक्तियाँ गालिब हो जाती हैं और सुर का रचा हुआ स्थूल शरीर ऐसा बिगड़ जाता है कि आइंदा काया नहीं रह सकता । ऐसी हालत हो जाने पर हस्वबयान दफा ११८ काल की धार उतर कर स्थूल शरीर का नाश कर देती है।
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