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११८ - आवागमन से क्या मुराद है ?
मालूम हो कि ऊपर बयान किये हुए तरीके पर शरीर के नाश हो जाने से जीव की संसारी वासनाएँ और वृत्तियाँ नष्ट नहीं हो जातीं । देह छूटने पर जीव अपनी वासनाओं से संबंध रखने वाले स्थूल मंडल की जानिब फिर खिंचकर आता है और वहाँ ऐसी योनि में दोबारा जन्म लेता है जिसके अंदर उसकी प्रबल वासना से मिलता हुआ अंग गालिब हो । मालूम होवे कि इस एक योनि से दूसरी में आने जाने ही को आवागमन कहते हैं । चूँकि पिंड देश और नीज ब्रह्मांड के अंदर वर्तमान शक्तियों का रुझान बड़े वेग के साथ न्यून अंग के सिरे की जानिब है इस लिये इन देशों से रिहाई हासिल करने के मुतअल्लिक जीव की जाती कोशिश लाहासिल रहती है । यह मुमकिन है कि दफा १०७ में बयान किये हुए सृष्टि - नियम के अनुसार वह कुछ हद तक ऊपर चढ़ जावे लेकिन सच्ची मुक्ति उसको तभी प्राप्त हो सकती है जब सच्चे संत सतगुरु उसके सहायक हों और उनकी मदद से निर्मल चेतन देश में रसाई कराने वाले साधनों की बाकायदा कमाई उससे बन पड़े । हम इस पुस्तक के कर्म - भाग में उन कायदों का ज़्यादा मुफस्सल जिक्र करेंगे जिनकी रू से सुरत को देहों और दूसरी बातों का इंतजाम उसके रचना में आने के वक्त से लेकर सरंजाम पा रहा है ।
चूँकि निर्मल चेतन देश और उसके वासी अजर और अमर हैं यानी हर तरह की तबदीली और मृत्यु से रहित हैं इस लिये आवागमन के नियम का उस देश के इंतजाम में दखल नहीं है । बेशक यह जिक्र हुआ था कि निर्मल चेतन देश से संत सुरतें ब्रह्मांड और पिंड देश में सुरतों को मन व माया की गुलामी से रिहाई दिलाने और नीचे दर्जो की रचना में चेतनता बढ़ाने की दया की गरज से आया करती हैं लेकिन उनकी मामद मामूली आवागमन के नियमानुसार नहीं होती क्योंकि संसार में संतरूप धारण करने पर उनका कुल मालिक राधास्वामी दयाल के साथ चेतन सूत बदस्तूर कायम रहता है । साधारण जीव पैदा होने पर पहले जन्मों का हाल और जन्म धारण करने से पहले के रिश्ते उम्मन भूल जाते हैं लेकिन इस किस्म की मुस्तनद मिसालें भी मिलती हैं जिनसे पिछले जन्म की कुछ बातों का याद रहना साफ साबित होता है । वैज्ञानिक तहकीकात के लिये ये मिसालें बहुत पुरमतलब हैं और मुनासिब है कि उनकी तलाश करके इस मुमामले को हमेशा के लिये एक मुसल्लिमा वैज्ञानिक उमूल की हैसियत दी जाये । इस मामले की तहकीकात करने से न सिर्फ चेतन शक्ति के सवास पर बहुत कुछ रोशनी पड़ेगी बल्कि एक प्रत्यक्ष और पक्का सुबूत भावागमन के मसले के मुतअल्लिक मिल जावेगा । इसमें शक नहीं कि प्रांड और पिंड देश की रचना के इंतजाम के मुतअल्लिक जो पपान पीछे हुआ है उससे इस मसले की हिमायत में बहुत कुछ दलीलें मिल जाती हैं लेकिन पह पादा इतमीनानदेह होगा अगर प्रत्पध मुबूत हस्थ मजकूरा पाला मिल जाये ।
में पिंड देश की तरह बार बार देह बदलना नहीं पड़ता । भावागमन का मकसद यह है कि अव्वल तो जीयों को देह धारण करते वक्त हरमरतबा किसी कदर नई चेतनता प्राप्त हो दूसरे उनको मागे पीछे मौका अपने सच्चे सुधार के लिये मिले , तीसरे उनको अपने पुरे कर्मों के फल का जाती तजरुया हासिल हो और चौथे नीचे देश में पास होने की वजह से जो माया के बंधनों का बोझ लाशिमी तौर पर उनके सिर पर पड़ जाता है यह बार बार मृत्यु के त्रास सहने और दुःख व संताप के झेलने से किसी कदर हलका हो ।
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