Thursday, December 31, 2020

१०८ - महाप्रलय और प्रलय का बयान ।


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१०८ - महाप्रलय और प्रलय का बयान । 

      

      जब कोई एक ब्रह्मांड सचदेश के गिर्द अपना लम्बा चक्कर खतम कर लेता है ( जिसके दौरान में अपने पिंट देशों को मदद पहुँचाने से उसकी चेतनता बहुत कुछ क्षीण हो जाती है ) तो यह सतलोक के करीबतरीन् पा जाता है यानी दोनों सम्मुख हो जाते हैं , जिसका नतीजा यह होता है कि सत्तलोक के आकर्षण से यह ब्रह्मांड मय अपने पिंड देशों के ऊपर की जानिब खिंच कर कम व वेश अपनी आदि अवस्था में लौट जाता है । इस तबदीली को महाप्रलय कहते हैं । महाप्रलय से जो दशा जहूर में आती है वह उस वक्त तक कायम रहती है जब तक कि ब्रह्मांड में दोबारा सृष्टि रचने के लिये काफी चेतनता नहीं आ जाती । काफी चेतनता के हासिल होने पर ब्रह्मांड और उसके पिंडों की रचना पहले की तरह दोबारा जाहिर होती है । पिंड देश का प्रलय भी ब्रह्मांड के ढंग पर होता है लेकिन पिंड प्रलय से ब्रह्मांड पर कोई असर नहीं पड़ता । प्रलय के बाद ब्रह्मांड की तरह पिंड देश भी दोबारा रचे जाते हैं । पिंड देश के नाश होने की क्रिया को प्रलय कहते हैं । 

१०६ - मनुष्य के अलावा और जीवों के शरीर की बनावट ।

           रचना में चोटी के मुकाम से लेकर सब से नीचे स्थान तक मनुष्य - शरीर छोड़ कर जितनी भी देहें हैं सब के अंदर यह इंतजाम है कि उनमें उस दर्जे के मुतअल्लिक , जिसमें उनका निवास स्थान वाकै है , सिर्फ तीन चक्र कारकुन रहते हैं और बाकी के तीन चक्र चिन्हमात्र कायम रहते हैं जिनको किसी तरह से जगाया नहीं जा सकता और न ही उनकी मारफत मालमेकचीर के स्थानों से कोई तअल्लुक पैदा किया जा सकता है । अलावा उस बड़े दर्जे के कि जिससे किसी देह का तअल्लुक है दूसरे बड़े दों के स्थानों का , चाहे वे ऊपर के हों या नीचे के , उस देह में निशान भी नहीं होता । मसलन् सबसे ऊपर के तीन स्थानों यानी राधास्वामी धाम , अगम और अलख के वासियों के इन तीन स्थानों से मुताविकत रखने वाले तीन गिलाफ या शरीर होते हैं और जिस स्थान का कोई यासी है उसके अंदर उस स्थान से मुताविकत रखने वाला गिलाफ या शरीर सबसे ज्यादा कारकुन रहता है । बाकी के दो शरीर सिर्फ कारकुन शरीर के मातहत रहते हैं लेकिन वे बिलकुल बेमसरफ नहीं होते । अनामी , सत्तलोक और भँवरगुफा के तीन स्थान उन वासियों के सबसे बाहर के गिलाफ के सबसे नीचे हिस्से में एक ही मुकाम पर महज़ नुक्ते की शक्ल में कायम रहते हैं और ये किसी तरह उन वासियों के लिये कारामद नहीं होते क्योंकि निर्मल चेतन देश के ऊँचे स्थानों के वासी बवजह अपनी कुदरती बनावट के अपने स्थान के पूर्णानन्द में इस कदर मग्न व सरशार रहते हैं कि उनके तई निचले स्थानों में उतरना नामुमकिन है । नौज वे अपने स्थान से ऊँचे मुकामों में पढ़ भी नहीं सकते क्योंकि रचना प्रकट होने के सिलसिले में जाती चेतनता के लिहाज से जिसको जहाँ पर पास मिला है उसको वहीं सदा रहना पड़ता है । मालूम हो कि निर्मल चेतन देश के वासियों वाला इंतजाम ब्रह्मांड के वासियों के अंदर भी मौजूद है मलबचा पिंड देश में ऊपर की जानिब रुख पाली घार पिंड के वासियों को हर देह के बदलने पर ऊपर की जानिब चढ़ाती है जिससे ये चोटी के मुकाम यानी चंद्र स्थान तक पहुँच सकते हैं और चूंकि नीचे यानी पिंड देश में उतरने वाली ब्रह्मांड की धार का महाप्रलप को भामद तक ऊपर की जानिब रुख नहीं बदलता इस लिये प्रांड के बहुत से बासी इस धार की मारफत पिंड देश के स्थानों में उतर आते हैं ।

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Wednesday, December 30, 2020

१०६ - नरक लोक और वहाँ के वासी ।

१०६ - नरक लोक और वहाँ के वासी । 

      पिंड देश के सब से नीचे स्थान के तले रचना से पहले के ऋणात्मक ध्रुव यानी न्यून अंग का असली सिरा वाकै है । इस मुकाम में कोई बाकायदा रचना नहीं है और इसको चेतनता की शून्यता का भारी मैदान कहना चाहिए । जो कुछ भी सृष्टि यहाँ पर है वह बहुत घटिया दर्जे की है और महासुन्न की व ब्रह्मांड के सब से निचले हिस्से की रचना से कुछ दूर पार की मुशावहत रखती है । इस घटिया दर्जे की सृष्टि ही को नरक लोक कहते हैं और यहाँ पर दुख व क्लेश की भरमार है । नरक के जीवों के अंदर निहायत ही चुरी वृत्तियाँ कायम हैं और जो कोई जीव ऊपर के स्थानों से इस दंट और दुरुस्ती के लोक में किस्मत का मारा हुआ पहुँच जाता है उसकी वे हमेशा दुर्गति करते रहते हैं । यहाँ पर रचना की तरतीय का बयान पूरा हो जाता है । यह बयान हरचंद नामुकम्मल है लेकिन इसमें रचना की भादि अवस्था से लेकर , जो निर्मल चेतन देश में है , अंत अवस्था तक का , जो नरक लोक में है , जिक्र  ा गया है । रचना के बड़े दर्जी की उत्पति का पयान करते वक्त कुल रचना के इंतजाम के मुतअल्लिक भी बहुत कुछ तफसील में जिक्र हो गया है । अब सिर्फ उस आम बंदोबस्त की शरह करनी बाकी रह जाती है कि जिसकी रू से तीनों बड़े दजों का परस्पर संबंध कायम है और जिससे हर एक का काम चल रहा है ।

 १०७ - तीन बड़े दजों के मुतअल्लिक माम इंतजाम ।

      रचना के पहले दर्जे ( निर्मल चेतन देश ) के स्थानों के इंतजाम की निसबत यहाँ पर थोड़ी ही शरह दरकार है । ये सब स्थान अपार कुल मालिक के सम्मुख बमंजिला उसके निज देश के वाकै हैं । रचना होते वक़्त सुरत व शब्द की धारों ने उन स्थानों के अंदर इस कदर चेतनता ( रूहानियत ) भर दी थी कि आईदा उनको किसी मदद की जरूरत नहीं रही । पहले दर्जे की रचना के दौरान में रचना की शुरूआत से पहले जमाने की जिस कदर पक्रिया मलिनता इस देश में छूट गई थी यानी बाकी रह गई थी यह सय दूसरे रचनात्मक वेग के जारी होने पर स्वारिज कर दी गई और जैसा कि ऊपर कहा गया अब निर्मल चेतन देश के सब स्थान हर तरह से मुकम्मल हैं और काल के प्रभाव यानी वक्त के गुजरने से उनमें किसी तरह के रह व पदल या कमी व पेशी की गुंजायश मुमकिन नहीं है । निर्मल चेतन देश की वसमत और दराजी घमुकाबिला दूसरे दो दों के बहुत ही ज्यादा है । दूसरे दो दों का हाल निर्मल चेतन देश का सा नहीं है । इनके अंदर चेतनता ऐसी मुकम्मल नहीं है कि बगैर बाहरी मदद के वे अपना काम पला सकें । चुनाँचे ब्रह्मांड के हर एक हिस्से को और नीज उसके असंख्य प्रमों और आ‌‌घाओं को पारी बारी से जरूरी मदद हासिल करने के लिये निर्मल चेतन देश के सम्मुख लाया जाता है और यही वजह है कि जिससे ब्रह्मांड सत्तलोक के गिर्द चक्कर लगाता है । चक्कर लगाने के दौरान में ब्रह्मांड से नीचे के देश यानी पिंड अपनी कशिश के जोर से ब्रह्मांड को सत्तलोक से मुनासिब फासले पर ठहराये रखते हैं । ब्रह्मांड च निर्मल चेतन देश का सा यह बाहमी तअल्लुक , जो अभी बयान हुआ , पिंड देश व ब्रह्मांड के दरमियान भी कायम है यानी पिंड देश भी ब्रह्मांड के गिर्द घूमता है और ब्रह्मांड से मदद हासिल करता है । लेकिन ब्रह्मांड और पिंड देश का रुख बिलकुल न्यून अंग के अंतिम यानी आखिरी सिरे की जानिब है क्योंकि ब्रह्मांड रचना से पहले के मध्य देश ( Neutral Zone ) के उस हिस्से में वाकै है जो आदि न्यून अंग से सटा हुआ था ( देखो दफा ९ १ ) । न्यून अंग के आखिरी सिरे की जानिब इस लगातार मुकाव के कारण ब्रह्मांड से नीचे की जानिय चेतनता बह रही है जिसको न्यून अंग के निचले स्थान , जो चालू के समान खुश्क है , बड़े शौक के साथ जाप कर रहे हैं । लेकिन रचना के पहले से इन स्थानों की बनावट इस क्रिस्म की है कि ये अपनी हैसियत से बढ़ की चेतनता अरसे तक अपने अंदर नहीं रख सकते । इस लिये जो चेतनता ब्रह्मांड से लगातार उतर कर जमा होती है वह ऊपर की जानिब सूक्ष्म रूप में उड़ने लगती है यानी उसको धार ऊपर की जानिए पहने लगती है जिससे जीव - सुधार के सिलसिले में , खास कर पिंड देश को , भारी फायदा हासिल होता है क्योंकि नरक लोक और पिंड देश के निचले स्थानों के जीव उसकी मारफत ऊँचे स्थानों पर चढ़ आते हैं । मगर चूंकि यह धार पिंड देश की चोटी के स्थान से परे नहीं जा सकती इस लिये इसकी मदद से जीव पिंड की चोटी यानी स्थान ही तक पहुँच सकते हैं । यहाँ पहुँचने पर इस धार का मेल रुख वाली धार से होने पर एक चक्कर खतम होकर दूसरा चक्कर शुरू होता है । इसी चक्कर को चौरासी का चक्कर कहते हैं । मालूम होवे कि कोई भी जीव इस चक्कर से बाहर नहीं निकल सकता जब तक कि इससे परे के स्थानों में रसाई हासिल करने का साधन खास तौर पर न कराया जाये । इस दफ़ा में जो कुछ बयान हुआ है वह कुल ब्रह्मांडों और कुल पिंड देशों को एक ब्रह्मांड और एक पिंड गरदान कर किया गया है । अब हम इन दो दों के एक एक जुज यानी एक ब्रह्मांड और एक पिंड को निगाह में रख कर उनके मजीद हालात बयान करेंगे ।





                                            👉👉https://youtu.be/2ZgHbzJEtgo




Tuesday, December 29, 2020

१०५ - पिंड देश के वासी ।

👉👉👉 :- https://dayalbaghsatsang123.blogspot.com/2020/12/blog-post_28.html

१०५ - पिंड देश के वासी ।



पिंड देश के वासियों के शरीर उनके निवास स्थान के मसाले से रचे गये हैं । मसलन् इस पृथ्वी के जानदारों के शरीर का मसाला पृथ्वी के स्थूल व सूक्ष्म मसाले ही से लिया गया है । सूर्यलोक और चंद्र स्थान , जो पृथ्वी से ऊँचे दर्जे पर वाकै हैं , पृथ्वी को निसबत बहुत ज्यादा सूक्ष्म व बारीक मसाले से रचे गये हैं और इसी लिये वे निहायत रोशन हैं और पृथ्वी के मुकाबिले में उनके अंदर चेतनता और शक्ति विशेष है और यही वजह है कि जिससे इन लोकों के वासियों के शरीर हम लोगों यानी पृथ्वी के वासियों की निसबत ज्यादा सूक्ष्म और रोशन हैं । उनका जीवन भी यहाँ के मुकाबिले में बहुत ज्यादा सुखदायक है । पाँच तत्त्व और चौरासी धारें , जिनका दफा १०२ में जिक्र हुआ , ब्रह्मांड से पिंड देश के अंदर उतरने में दर्ज बदर्ज स्थूल होती चली आई हैं । चंद्र स्थान और सूर्यलोक में ये धारें बहुत सूक्ष्म हैं लेकिन इनके अलावा दूसरे स्थानों में , ज्यों ज्यों चंद्र स्थान से दूरी होती गई , स्थूलता आती गई । पृथ्वी लोक के तजरुबे की बुनियाद पर हम लोग कुदरती तौर पर खयाल कर सकते हैं कि सब लोकों में ठोस , तरल और वायव्य मसाले के अंदर ही जीव बसते हैं लेकिन यह खयाल ठीक नहीं है क्योंकि हर एक लोक के सूक्ष्म मसाले के अंदर भी जीव वसते हैं , जिनके शरीर मसाले के लिहाज से सूक्ष्म रहते हैं । मनुष्य के इस पृथ्वी पर तीन शरीर हैं जिनको स्थूल सूक्ष्म और कारण शरीर कहते हैं और ये तीन शरीर गोया ब्रह्म के तीन शरीरों की छाया हैं । इस लिये हमारा यह बयान कि अकेली मूक्ष्म देह में भी जीव रह सकते हैं कथन मात्र नहीं है क्योंकि स्थूल शरीर के अंदर रहते हुए भी जीव का सूक्ष्म शरीर मौजूद रहता है । 

         जब तक हम स्थूल घाट पर बरतते हैं हमारा सूक्ष्म शरीर कम व घेश अचेत रहता है लेकिन जब हम स्वप्न , सक्ते वगैरह की अवस्थाओं में प्रवेश करते हैं तो उस वक्त वह सचेत हो जाता है । नीज़ प्रेत - योनि में , जिसकी निसवत अब किसी को शुबह नहीं रहा है और जिसमें हालत मनुष्य योनि के घरअक्स रहती है , सूक्ष्म शरीर हर वक्त कारकुन रहता है और स्थूल शरीर मौका बमौका प्रकट हुआ करता है । प्रेत - योनि से किसी कदर मिलते जुलते ढंग पर पिंड देश के सब लोकों के सूक्ष्म मंडलों में जीव निवास करते हैं । यह बयान करने की चंदाँ जरूरत नहीं है कि पृथ्वी से नीचे के स्थानों में जो जीव बसते हैं वे पृथ्वी के वासियों की निसबत बहुत नीचा दर्जा रखते हैं । प्रेत - योनि के जीव हमेशा संसारी वासनाओं और बंधनों के कारण इस पृथ्वी पर अपना इजहार किया करते हैं और उनकी वासनाओं और बंधनों के मुवाफिक उनकी क्रियाएं फायदा या नुकसान पहुँचाने वाली हुआ करती हैं । चूँकि नीचे के तीन चक्रों के जिम्मे ज्यादातर ऐसे काम हैं जो दोनों मनुष्य और पशु योनियों में शामिलात हैं इस लिये उनकी क्रियाओं से अदना खयालात और जज़्बात की बू आती है और ऊँचे दर्ज की वासनाओं व खयालात से उनका कतई वास्ता नहीं है । चुनाँचे निचले तीन स्थानों के वासी भी ज्यादातर पशुओं की सी हरकतें करते हैं औ वहाँ के सूक्ष्म शरीर वाले जीव दुष्ट स्वभाव वाले और अमूमन बदकार हैं । उनके सुख और भोग भी बहुत अदना किस्म के हैं जिनका मनुष्यों के सुखों और भोगों से किसी हालत में मुकाबिला नहीं हो सकता । इन सूक्ष्म शरीर वाले जीवों की खसलत कम व वेश नरक के जीवों की सी है ।

Monday, December 28, 2020

१०४ - पिंड के छः स्थान और उनके धनी ।

👉👉👉 :- https://dayalbaghsatsang123.blogspot.com/2020/12/blog-post_26.html

१०४ - पिंड के छः स्थान और उनके धनी


     चौरासी लक्ष धारों के अलावा , जिनका पीछे जिक्र हुआ , ज्योति और निरंजन की धारें भी पिंड देश में उतरीं इनके सबसे सूक्ष्म स्वरूप का तअल्लुक पिंड देश की चोटी के स्थान के धनी के साथ है और वाकी दो स्वरूप जो पहले के मुकाविले कम सूक्ष्म हैं , नीचे के स्थानों के धनी हो रहे हैं इसी तरह पर विष्णु , ब्रह्मा और शिव की धारें पिंड के निचले तीन स्थानों में अलहदा अलहदा ठहरी हुई हैं मनुष्य - शरीर के अंदर ज्योति नारायण की धारें इच्छा और मन की शक्ल में प्रकट हो रही हैं और अंशरूप से शरीर के हृदय - चक्र में कायम हैं जहाँ इच्छा और मन की क्रिया प्रकट रूप से जारी है इनके सूक्ष्मरूप कंठ - चक्र और सुरत की बैठक के मुकाम यानी आज्ञा - चक्र में कायम हैं ( देखो दफा १८ ) , लेकिन इन चक्रों में उनकी क्रियाएँ प्रकट नहीं हैं और इस लिये सुरत की गुप्त शक्तियाँ जगने ही पर उनका ज्ञान हो सकता है इसी तरीके पर मनुष्य - शरीर के नीचे के तीन चक्रों में विष्णु , ब्रह्मा और महादेव की शक्तियाँ मौजूद हैं और शरीर के पालन पोषण , संतानोत्पत्ति और मल मूत्र वगैरह के खारिज करने का काम कर रही हैं मनुष्य - शरीर के इन छः चक्रों से मुताबिक्रत रखने वाले पिंड देश में जो छः स्थान हैं उनके नाम ये हैं : -चन्द्र स्थान , सूर्य , पृथ्वी , बृहस्पति , शनि और नेपच्यून ( Neptune ) यानी वरुण तारा इनके अलावा जो दूसरे ग्रह मशहूर हैं वे दर असल उपग्रह हैं और अपने नजदीक के ग्रहों के सहायक हैं मनुष्य - शरीर के रगमंडल के अंदर भी मुख्य केंद्रों के करीव इस नमूने के छोटे केंद्र काम कर रहे हैं जैसे मनुष्य - शरीर में नीचे के तीन चक्रों का सेट ऊपर के तीन चक्रों के सेट से अलहदा बना है इसी तरह पिंड देश के निचले तीन स्थान भी ऊपर के तीन स्थानों से बहुत कुछ स्वतंत्र हैं बृहस्पति ग्रह भी , जो कि विष्णु का अंश है , अपने धनी की तरह सूर्य से कम वेश स्वतंत्र है चंद्र स्थान से जो चेतन धार उतर कर पिंड के सब से निचले स्थान तक जाती है इन दोनों सेटों को परस्पर सूत्रबद्ध कराती है चूंकि चंद्र स्थान और मनुष्य की सुरत का घाट एक ही है इस लिये ज्योतिषी लोग इसके जरिये मनुष्यों की राशि कायम करके उनके स्वाभाविक गुण मालूम किया करते हैं यह चंद्र स्थान ही वह भंडार है जहाँ से पिंड देश की तमाम जानदार कायनात को आदि में चेतनता वहम पहुँची और जहाँ से एक दूसरी धार , जिसको जड़ - चेतन ( जड़ प्रकृति की जान ) कहते हैं , पिंड देश के स्थूल मसाले में उतर कर आती है बिजली - शक्ति , जो पृथ्वी पर तजरुवे में आती है , इस जड़ - चेतन धार ही का इजहार है संतों की वाणी में इस जड़ - चेतन धार को बिजली के नाम से मौसम किया गया है चंद्र स्थान के नीचे तत्वों की पाँच धारों के सूक्ष्म मंडल कायम हैं और अलहदा अलहदा रंग लिये हुए चमक रहे हैं नीचे लिखी हुई कड़ी में इसी मजमून को अदा किया गया है :-

" पाँचरंग निरखे तत सारा चमक बीजली चन्द्र निहारा फोड़ा तिल का द्वारा हो "

 

         यानी मैंने सार तत्त्वों के पाँच रंग देखे और चंद्र स्थान की बिजली की चमक को निहारा और बाद में तीसरे तिल यानी ब्रह्मांड देश का दरवाजा तोड़ डाला (देखो दफा १०१)

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१२४ - रचना की दया किस रारज से हुई

     १२४ - रचना की दया किस रारज से हुई ?   कुल मालिक एक ऐसा चेतन सिंधु है कि जिसके परम आनंद व प्रेम का कोई वार पार ...